वक्फ संशोधन कानून 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। CJI ने कहा, संसद के कानून को बिना ठोस आधार के चुनौती नहीं दी जा सकती। सिब्बल ने अनुच्छेद 25 का हवाला दिया।
Waqf Bill: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने सरकार की दलीलों का जोरदार विरोध किया।
CJI की स्पष्ट टिप्पणी: संसद के कानून में होती है संवैधानिकता की धारणा
सुनवाई के दौरान सीजेआई बी.आर. गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून में संवैधानिकता की धारणा होती है। जब तक किसी कानून के असंवैधानिक होने का स्पष्ट और ठोस प्रमाण न हो, तब तक अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। उनका इशारा साफ था कि सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी एक्ट को रोका नहीं जा सकता।
तीन बिंदुओं तक सीमित हो सुनवाई: केंद्र सरकार का आग्रह
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता पर सुनवाई को केवल तीन अहम मुद्दों तक सीमित रखा जाए:
- वक्फ बाय कोर्ट, यूजर और डीड द्वारा घोषित संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का बोर्ड का अधिकार
- वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना, जिसमें याचिकाकर्ता सिर्फ मुस्लिम सदस्यों की मांग कर रहे हैं
- कलेक्टर की जांच प्रक्रिया, जब वक्फ घोषित की गई जमीन पर सरकारी स्वामित्व का दावा हो
सिब्बल का विरोध: सुनवाई सिर्फ तीन मुद्दों पर क्यों?
कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने केंद्र की मांग का विरोध किया। सिब्बल ने कहा कि इस तरह के अहम और व्यापक कानून पर टुकड़ों में सुनवाई नहीं हो सकती। उन्होंने यह तर्क भी रखा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। उन्होंने मांग की कि पूरे अधिनियम की समग्र समीक्षा और विस्तृत सुनवाई होनी चाहिए।
बाबरी मस्जिद और पुराने वक्फ कानूनों का जिक्र
सिब्बल ने कोर्ट को याद दिलाया कि बाबरी मस्जिद जैसी संपत्तियां वक्फ बाय यूजर के तहत मानी गई थीं और यह अवधारणा कानून में वर्षों से मान्य रही है। उन्होंने यह भी कहा कि संशोधित अधिनियम वक्फ संपत्तियों के अस्तित्व को खत्म करने जैसा है, जिसमें पंजीकरण और जांच जैसी प्रक्रियाएं उस भावना के खिलाफ हैं, जिसमें वक्फ संपत्ति ‘अल्लाह के नाम’ पर दी जाती है।
CJI ने पूछे सख्त सवाल, सिब्बल ने दी सफाई
जब कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिदों में मंदिरों जैसा चढ़ावा नहीं होता और यह वक्फ की आय सीमित करता है, तो सीजेआई ने कहा कि वे खुद दरगाह और चर्च गए हैं और हर जगह चढ़ावा देखा है। सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वह मस्जिदों की बात कर रहे हैं, जो विशुद्ध रूप से दान और न्यास के सहारे चलती हैं।
क्या पंजीकरण अनिवार्य था?
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि क्या पुराने वक्फ कानूनों के तहत वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य था। सिब्बल ने कहा कि पुराने अधिनियमों में 'shall' शब्द का प्रयोग था, जिससे यह सुझाव मिलता है कि पंजीकरण जरूरी है। लेकिन अदालत ने पूछा कि अगर पंजीकरण नहीं हुआ तो क्या उसका कोई कानूनी परिणाम था? सिब्बल ने स्वीकार किया कि केवल मुत्तवल्ली का अधिकार खत्म हो सकता था, संपत्ति की वैधता नहीं।
ASI संरक्षित संपत्तियों पर वक्फ अधिकार का सवाल
सीजेआई ने उदाहरण देते हुए पूछा कि अगर कोई मंदिर ASI संरक्षित है और लोग वहां पूजा कर सकते हैं, तो क्या वक्फ संपत्ति घोषित करना या रद्द करना किसी के धार्मिक अधिकार को प्रभावित करता है? इस पर सिब्बल ने कहा कि अगर संपत्ति की वक्फ मान्यता ही खत्म हो जाती है तो धर्म का पालन बाधित होता है।
धारा 3 और धार्मिक पहचान की शर्त पर विवाद
सिब्बल ने वक्फ अधिनियम की नई धारा 3 पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें कम से कम 5 साल से मुस्लिम धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति द्वारा ही संपत्ति वक्फ में देने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद 14 और 25 का उल्लंघन है क्योंकि धर्म को प्रमाणित करना किसी की निजता और स्वतंत्रता के खिलाफ है।