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यूपी सियासत में हलचल: निषाद पार्टी के दावे से बढ़ी बीजेपी की चुनौती, सीटों पर रस्साकशी तेज

निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने 2027 चुनाव में 200 सीटों पर लड़ने का दावा किया है। सहयोगी दल की इस दावेदारी से बीजेपी की रणनीति पर असर पड़ सकता है। गठबंधन में खींचतान के संकेत।

UP Politics: उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गरमाने लगी है। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में अभी दो साल का समय बचा है, लेकिन सभी प्रमुख दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। बीजेपी, सपा, कांग्रेस और बसपा के साथ-साथ अब उसके सहयोगी दल भी सियासी मोर्चे पर खुलकर उतर आए हैं। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में है बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी और उसके मुखिया संजय निषाद का ताज़ा बयान, जिसने बीजेपी के लिए एक तरह से सियासी दबाव की स्थिति पैदा कर दी है।

संजय निषाद का बड़ा दावा - 200 सीटों पर प्रभाव

योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद लगातार यह दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की 200 विधानसभा सीटों पर उनका समाज निर्णायक भूमिका में है। यही नहीं, उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंचों से ये बात दोहराई है कि उनकी पार्टी इन 200 सीटों पर अपने सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहती है।

हाल ही में संजय निषाद ने अपनी संविधान यात्रा के दौरान सहारनपुर से सोनभद्र तक विभिन्न जिलों में संवाद करते हुए यह मुद्दा बार-बार उठाया। उनकी इस यात्रा का मकसद निषाद समाज को जागरूक करना और अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करना है।

बीजेपी को मिली खुली चेतावनी?

संजय निषाद का ये भी कहना है कि बीजेपी को “दूसरे दलों से आए विभीषणों” से सावधान रहना चाहिए। उनका इशारा उन नेताओं की ओर है, जो अन्य पार्टियों को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं और जिन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारियां दी जा रही हैं। संजय निषाद का यह बयान एक तरह से चेतावनी जैसा है — कि अगर निषाद पार्टी को उपेक्षित किया गया, तो उसके नतीजे 2027 में देखने को मिल सकते हैं।

क्या बीजेपी करेगी समझौता या दिखेगा सियासी तनाव?

राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से निषाद पार्टी के अभी सिर्फ 5 विधायक हैं, लेकिन पार्टी का दावा है कि उनके समाज की मौजूदगी 200 से अधिक सीटों पर प्रभावशाली है। यह दावा, विश्लेषकों के अनुसार, बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है ताकि चुनाव में अधिक सीटें हासिल की जा सकें।

लोकसभा चुनाव 2024 में भी संजय निषाद ने बीजेपी नेतृत्व से निषाद पार्टी को कुछ सीटों पर टिकट देने की मांग की थी, लेकिन वह मांग पूरी नहीं हो सकी। ऐसे में अब संजय निषाद विधानसभा चुनाव में पहले से ही अपने पत्ते खोल रहे हैं।

वोट बैंक की अहमियत बढ़ी

उत्तर प्रदेश की राजनीति जातीय समीकरणों पर आधारित है, और इसमें निषाद समुदाय का अपना खास महत्व है। गोरखपुर, संत कबीरनगर, मऊ, जौनपुर, प्रयागराज, भदोही, जालौन और बलिया जैसे जिलों में निषाद वोटरों की संख्या खासा असर डालती है। इसीलिए संजय निषाद की पार्टी बार-बार यह दोहरा रही है कि उन्हें नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

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