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चातुर्मास 2025: कब से शुरू होगा, क्या हैं नियम और क्यों बंद होते हैं मांगलिक कार्य

चातुर्मास 2025: कब से शुरू होगा, क्या हैं नियम और क्यों बंद होते हैं मांगलिक कार्य
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हिंदू धर्म में साल के कुछ खास महीने ऐसे होते हैं, जो तप, साधना और ईश्वर की सेवा के लिए समर्पित होते हैं। इन्हें चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। यह चार महीने आध्यात्मिक अनुशासन और संयम का समय होते हैं, जब धार्मिक क्रियाओं में गहरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ भाग लिया जाता है। वर्ष 2025 में चातुर्मास कब से शुरू होगा, इसकी तारीख क्या है और इस दौरान किन किन बातों का ध्यान रखना होता है, जानना हर श्रद्धालु के लिए आवश्यक है। इस लेख में हम विस्तार से चातुर्मास 2025 की शुरुआत, समाप्ति, नियम, महत्व और इस दौरान बंद रहने वाले मांगलिक कार्यों के बारे में जानेंगे।

चातुर्मास कब से शुरू होगा? (Chaturmas 2025 Start Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से होती है, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। 2025 में यह तारीख 6 जुलाई है। यानी इस साल चातुर्मास 6 जुलाई 2025 से शुरू होगा। चातुर्मास चार महीने तक चलता है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक रहता है। इस बार यह समाप्ति 1 नवंबर 2025 को होगी, जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं और साधना के कठिन नियमों में ढील मिलती है।

चातुर्मास का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

चातुर्मास को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा की स्थिति में चले जाते हैं, यानी वे चार महीने तक गहन निद्रा में रहते हैं। इसी कारण से इसे ‘देवशयनी काल’ भी कहते हैं। इस समय सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इसलिए यह समय तप, साधना और संयम का होता है।

श्रद्धालु इस चार महीने के दौरान विशेष व्रत, पूजा, जप, ध्यान और धर्मकर्म करते हैं। साधु-संत और योगी इस अवधि में कहीं भी भ्रमण नहीं करते, बल्कि किसी एक स्थान पर ठहरकर ध्यान और भक्ति में लीन रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में किया गया तप और पूजा विशेष फलदायी होता है।

चातुर्मास में किन मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है?

चातुर्मास के चार महीनों में शुभ कार्यों पर पूर्णतया प्रतिबंध रहता है। इनमें विवाह, तिलक, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार, गृह प्रवेश, घर बनवाना जैसे मांगलिक कार्य शामिल हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये चार महीने पूर्णतया साधना और संयम के लिए निर्धारित हैं। इस दौरान धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मांगलिक कार्य करने से शुभता कम हो जाती है और मनुष्य का ध्यान भक्ति से हटकर सांसारिक कृत्यों में लग जाता है।

चातुर्मास में वर्जित कार्य

इस अवधि में केवल मांगलिक कार्य ही नहीं, बल्कि कई अन्य व्यवहारिक प्रतिबंध भी होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है:

  • पलंग पर सोना: चातुर्मास के दौरान कई जगह इसे वर्जित माना जाता है। साधु-संत और भक्त इस नियम का कड़ाई से पालन करते हैं।
  • मांसाहार और नशीले पदार्थों का सेवन: इस अवधि में मांसाहार, मद्यपान और नशीले पदार्थों से दूर रहना जरूरी होता है। यह शरीर और मन दोनों की शुद्धि के लिए आवश्यक है।
  • किसी दूसरे का भोजन नहीं करना: भले ही कोई भोजन करे तो उसे स्वीकार न करें, क्योंकि इस दौरान शुद्धता का खास ध्यान रखा जाता है।
  • झूठ बोलना: चातुर्मास में संयम और सत्य की विशेष महत्ता होती है, इसलिए झूठ बोलना वर्जित होता है।
  • दही, मूली, बेंगन और साग-पात का सेवन: कुछ क्षेत्रों में चातुर्मास के दौरान इन चीजों का सेवन भी वर्जित माना गया है।

चातुर्मास के दौरान किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान और व्रत

चातुर्मास का समय व्रत-पूजा और जप का होता है। भक्त इस अवधि में भगवान विष्णु और भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। वे प्रतिदिन तुलसी, आमलकी, या किसी अन्य पवित्र वृक्ष की पूजा करते हैं। साधु-संत इस दौरान अपनी यात्रा रोककर एक स्थान पर ध्यान लगाते हैं। वे उपवास करते हैं, आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और मौन रहने की कोशिश करते हैं। साथ ही जरूरतमंदों को दान देना, भिक्षा देना, दीपक जलाना, वस्त्र और अन्न वितरण करना भी चातुर्मास की महत्त्वपूर्ण परंपराओं में शामिल है।

चातुर्मास के दौरान यात्रा की मान्यता — ब्रज की यात्रा

धार्मिक मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान पृथ्वी के सभी तीर्थ स्थल ब्रज में निवास करते हैं। इसलिए इस समय भक्तों को ब्रज की यात्रा करने का विशेष पुण्य मिलता है। चातुर्मास में ब्रज की यात्रा करना अत्यंत शुभ माना गया है। इस अवधि में ब्रज में घूमना और वहां के धार्मिक स्थलों का दर्शन करना अत्यंत फलदायी होता है।

चातुर्मास क्यों जरूरी है?

चातुर्मास साधना का पर्व मात्र नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धि की ओर अग्रसर करता है। चार महीने तक संयम, तपस्या, शुद्ध आहार और धार्मिक क्रियाओं का पालन कर व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है। यह अवधि जीवन में अनुशासन लाती है और भक्तों को ईश्वर की भक्ति में एकरसता प्रदान करती है। इसके साथ ही चातुर्मास जीवन को समर्पण, सेवा और दया का पाठ भी पढ़ाता है।

2025 में चातुर्मास का समापन 1 नवंबर, देवउठनी एकादशी को होगा। इस दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत संस्कार जैसे शुभ कार्यों का आयोजन किया जा सकेगा। यह दिन विष्णु भगवान के जागरण का प्रतीक है, जो नए शुभ कार्यों की शुरुआत का समय माना जाता है।

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