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निर्जला एकादशी 2025: इन 7 भूलों से बचें वरना व्रत के पुण्य का फल हो सकता है नष्ट

निर्जला एकादशी 2025: इन 7 भूलों से बचें वरना व्रत के पुण्य का फल हो सकता है नष्ट
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हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है, लेकिन इन सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी का स्थान सबसे श्रेष्ठ माना गया है। यह व्रत अत्यंत कठिन होने के बावजूद अत्यधिक पुण्यदायक होता है। वर्ष 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को रखा जाएगा और पारण 7 जून को किया जाएगा। यह एकमात्र ऐसी एकादशी है जिसमें व्रती पूरे दिन अन्न-जल का त्याग करता है। कहते हैं कि इस दिन व्रत करने से वर्ष भर की 24 एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होता है। लेकिन अगर इस दिन कुछ गलत कार्य अनजाने में भी कर लिए जाएं, तो व्रत का पुण्यफल नष्ट हो सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि निर्जला एकादशी के दिन किन 7 भूलों से बचना चाहिए।

व्रत के दिन जल का सेवन – पुण्य में रुकावट

निर्जला एकादशी का अर्थ ही है 'निर्जल' – यानी बिना जल के। इस दिन जो व्रती होते हैं, उन्हें जल का भी त्याग करना होता है। यदि किसी कारणवश जल त्याग संभव नहीं है, तो व्यक्ति को यह व्रत नहीं रखना चाहिए, बल्कि केवल सात्विकता और भगवान विष्णु के स्मरण में समय बिताना चाहिए। जल पी लेने से व्रत की गंभीरता भंग होती है और इसका पुण्य भी समाप्त हो जाता है।

मांस, मदिरा, लहसुन-प्याज का सेवन – आध्यात्मिक ऊर्जा का ह्रास

इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक आहार जैसे मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज आदि का सेवन पूर्णत: वर्जित होता है। ये पदार्थ मन में विकार उत्पन्न करते हैं और सात्विक ऊर्जा को नष्ट करते हैं। यहां तक कि जो लोग व्रत नहीं भी रख रहे हैं, उन्हें भी इस दिन शुद्ध और सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए ताकि वातावरण की पवित्रता बनी रहे।

ब्रह्मचर्य का पालन न करना – व्रत की साधना में बाधा

निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन बहुत आवश्यक होता है। यह दिन आत्मसंयम और साधना का होता है। मानसिक, शारीरिक और आत्मिक पवित्रता इस दिन की आधारशिला है। दांपत्य संबंधों से भी इस दिन परहेज़ किया जाता है ताकि साधना में पूर्ण एकाग्रता बनी रहे।

तुलसी के पत्ते तोड़ना – धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन

हिंदू मान्यता के अनुसार, निर्जला एकादशी के दिन तुलसी माता स्वयं व्रत रखती हैं। ऐसे में इस दिन उनके पत्तों को तोड़ना उनके व्रत में विघ्न डालने जैसा माना जाता है। इसलिए न केवल तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचें बल्कि उन पर जल चढ़ाने की भी मनाही होती है। आप तुलसी के समक्ष दीपक जलाकर उन्हें प्रणाम करें।

विवाद, क्रोध और झगड़े – मन की अशांति और पुण्य की हानि

निर्जला एकादशी का दिन ईश्वर के चिंतन और आत्मचिंतन का दिन होता है। यदि इस दिन आप क्रोध करते हैं, बहस या झगड़े में पड़ते हैं तो मन की शांति भंग होती है और आप ईश्वर से विमुख हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि व्रत केवल शरीर से नहीं, मन और वाणी से भी किया जाना चाहिए।

पशु-पक्षियों पर अत्याचार – करुणा और दया का त्याग

इस दिन आपको किसी भी प्रकार के जीव-जंतुओं पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। यह दिन करुणा, दया और सेवा का है। आप चाहें तो पक्षियों को दाना-पानी दें या किसी जानवर की सेवा करें। ऐसा करने से आपकी व्रत साधना को और अधिक बल मिलता है और दैवी कृपा बढ़ती है।

चावल का सेवन – प्राचीन परंपरा का उल्लंघन

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि पर विशेष रूप से चावल न खाने की परंपरा है। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से पाप का भागी बनना पड़ता है। खासकर निर्जला एकादशी जैसे विशेष व्रत पर तो चावल से पूरी तरह परहेज़ करना चाहिए। यहां तक कि व्रत न रखने वाले लोग भी इस दिन चावल न खाएं तो उत्तम होता है।

निर्जला एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व

निर्जला एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व बहुत बड़ा माना जाता है। यह एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे कठिन और पुण्यदायी मानी जाती है, क्योंकि इसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे करने से पूरे साल की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, निर्जला व्रत से पापों का नाश होता है और आत्मा को शुद्धि मिलती है। यह व्रत संयम, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति तक संभव मानी जाती है।

व्रत का सार – श्रद्धा, संयम और सेवा

निर्जला एकादशी का व्रत केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता का पर्व है। इस दिन व्रत करने वाले को केवल शरीर से ही नहीं, मन, वचन और कर्म से भी पवित्र रहना होता है। व्रत रखने के साथ-साथ भगवान विष्णु का स्मरण, श्रीमद्भगवद्गीता या विष्णु सहस्रनाम का पाठ, गरीबों को दान, और घर में शांति बनाए रखना इस व्रत की पूर्णता को दर्शाते हैं।

निर्जला एकादशी वर्ष की सबसे कठिन लेकिन फलदायक एकादशी मानी जाती है। यदि आप इस दिन व्रत रखते हैं तो उपरोक्त 7 बातों का विशेष ध्यान रखें। यह व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि आत्मिक साधना, संयम और सेवा का अवसर है। भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इस दिन हर कार्य सोच-समझकर करें और मन, वचन, कर्म से शुद्ध रहकर व्रत को पूर्ण करें। तभी जाकर आपको इस कठिन तपस्या का पूर्ण पुण्य प्राप्त होगा।

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