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Jagannath Rath Yatra 2025: जानिए क्यों होती है सोने की झाड़ू से सफाई और क्या है इसका पवित्र महत्व?

Jagannath Rath Yatra 2025: जानिए क्यों होती है सोने की झाड़ू से सफाई और क्या है इसका पवित्र महत्व?

ओडिशा के पुरी में हर साल निकलने वाली भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा इस वर्ष 27 जून 2025 को आयोजित की जाएगी। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाने वाली यह यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि भक्ति, परंपरा और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक भी है। इस यात्रा के दौरान कई पुरातन और विशेष रस्में निभाई जाती हैं, जिनमें से एक है — सोने की झाड़ू से रथ मार्ग की सफाई।

क्या है सोने की झाड़ू से सफाई की परंपरा?

रथ यात्रा से पहले जिस रास्ते से भगवानों के रथ गुजरते हैं, उस मार्ग को पुरी के गजपति राजा (Gajapati King) खुद झाड़ू लगाकर साफ करते हैं। यह कोई सामान्य झाड़ू नहीं होती, बल्कि इसमें सोने का हत्था (हैंडल) होता है। इस रस्म को स्थानीय भाषा में ‘छेड़ा पाहरा’ (Chhera Pahara) कहा जाता है।

गजपति राजा नंगे पैर आते हैं, सिर झुकाकर रथों के चारों ओर झाड़ू लगाते हैं और जल छिड़कते हैं। यह परंपरा दर्शाती है कि भगवान के सामने हर इंसान समान है – चाहे वह राजा हो या साधारण भक्त।

धार्मिक महत्व: क्यों होती है झाड़ू सोने की?

सोना भारतीय संस्कृति में हमेशा से शुभ, शुद्ध और शक्तिशाली धातु माना गया है। रथ मार्ग की सफाई के लिए सोने की झाड़ू का उपयोग भगवान के प्रति भक्तों की सर्वोत्तम श्रद्धा को दर्शाने का प्रतीक है।

  • पवित्रता का प्रतीक: सोना शुद्ध धातु मानी जाती है और इसे देवी-देवताओं की पूजा में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
  • श्रद्धा का उच्चतम स्तर: जब राजा खुद अपने हाथों से सोने की झाड़ू लगाते हैं, तो यह जताया जाता है कि भक्त अपने आराध्य को अपनी सबसे मूल्यवान चीज अर्पित कर रहे हैं।
  • सामाजिक संदेश: एक राजा द्वारा सफाई करना यह भी दिखाता है कि भगवान के सामने सभी समान हैं। यह समानता, सेवा और विनम्रता का पाठ पढ़ाती है।

छेड़ा पाहरा रस्म का ऐतिहासिक पक्ष

छेड़ा पाहरा की परंपरा कई शताब्दियों से चली आ रही है, जब ओडिशा में गजपति वंश का शासन था। माना जाता है कि इस परंपरा को निभाने से गजपति राजा को पुण्य की प्राप्ति होती है और वह स्वयं को प्रभु का सेवक मानते हैं।

आज भी इस परंपरा को पूरे सम्मान और नियमों के साथ निभाया जाता है। गजपति महाराज पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं और मंदिर के सेवकों की सहायता से रथ मार्ग की सफाई करते हैं।

रथ यात्रा के मुख्य आकर्षण

  • तीन रथों की भव्य यात्रा – भगवान जगन्नाथ (नंदिघोष रथ), बलभद्र (तालध्वज रथ) और सुभद्रा (दर्पदलन रथ) के विशाल रथों को भक्त खींचते हैं।
  • सैकड़ों साल पुरानी परंपराएं – जैसे छेड़ा पाहरा, रथ निर्माण की प्रक्रिया, वैदिक मंत्रों का उच्चारण आदि।
  • सैकड़ों किलोमीटर से आए भक्त – देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं।
  • भक्ति और उल्लास का संगम – यात्रा के दौरान शहर का वातावरण पूरी तरह धार्मिक रंग में रंगा होता है।

क्या है गुंडिचा मंदिर का महत्व?

गुंडिचा मंदिर पुरी से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है और जगन्नाथ रथ यात्रा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथ यात्रा पर निकलते हैं, तो वे इसी मंदिर में सात दिन तक विश्राम करते हैं। इस मंदिर को भगवान जगन्नाथ की ननिहाल भी माना जाता है, इसलिए यहां रुकने को बहुत पवित्र और विशेष माना जाता है। सात दिन बाद भगवान अपने मूल मंदिर लौटते हैं, जिसे "बहुड़ा यात्रा" कहा जाता है। यह पूरी परंपरा भक्तों के लिए बहुत ही श्रद्धा और भक्ति से जुड़ी होती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और भक्ति का जीवंत उदाहरण है। सोने की झाड़ू से मार्ग की सफाई जैसी परंपराएं यह सिखाती हैं कि भगवान को पाने के लिए मन, शरीर और आत्मा की शुद्धता जरूरी है, और प्रभु के मार्ग को साफ करना वास्तव में अपने भीतर के रास्ते को भी निर्मल बनाना है।

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