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राम दरबार प्राण प्रतिष्ठा एवं अरणी मंथन: प्राचीन वैदिक परंपरा का अद्भुत संगम

राम दरबार प्राण प्रतिष्ठा एवं अरणी मंथन: प्राचीन वैदिक परंपरा का अद्भुत संगम

भारतीय संस्कृति और धर्म में मंदिरों का विशेष स्थान है। मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा, धर्म, संस्कृति और श्रद्धा का केंद्र होते हैं। मंदिरों में स्थापित मूर्तियां केवल पत्थर या धातु की वस्तुएं नहीं होतीं, बल्कि उनमें प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से जीवन का संचार होता है। वर्तमान में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन चल रहा है, जिसमें वैदिक परंपराओं के अनुसार मूर्तियों को जीवन प्रदान किया जा रहा है। इसी प्राचीन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है 'अरणी मंथन'। आइए जानें कि राम मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जा रही है और अरणी मंथन का क्या धार्मिक महत्व है।

राम दरबार में प्राण प्रतिष्ठा का महत्व

राम मंदिर की स्थापना न केवल एक ऐतिहासिक और धार्मिक घटना है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और धर्म के पुनरुत्थान का प्रतीक भी है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों को ‘प्राण प्रतिष्ठा’ द्वारा जीवंत बनाया जाता है। इसका अर्थ है कि मूर्ति में देवता की आत्मा, ऊर्जा और चेतना का आवास हो जाता है, जिससे वे वास्तविक रूप में पूजनीय बन जाते हैं।

राम मंदिर में 3 जून से शुरू हुई प्राण प्रतिष्ठा का दूसरा दिन भी विशेष महत्व रखता है। इस दौरान आठ देवी-देवताओं की उत्सव मूर्तियां पालकी यात्रा के माध्यम से रामलला के दर्शन कराईं जाती हैं। इस पूजा-अर्चना में मंत्रोच्चार के बीच इन मूर्तियों को अन्नाधिवास कराया जाता है, जिससे वे अधिक ऊर्जा और शक्ति प्राप्त करें।

अरणी मंथन: अग्नि उत्पन्न करने की वैदिक पद्धति

अरणी मंथन एक प्राचीन वैदिक प्रक्रिया है, जिसका उपयोग यज्ञ के दौरान अग्नि उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। आधुनिक युग में जहां चूल्हा और आग जलाने के अनेक साधन उपलब्ध हैं, वहीं प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा अग्नि उत्पन्न करने की यह पद्धति एक दिव्य और पावन क्रिया मानी जाती है।

अरणी मंथन में शमी और पीपल के लकड़ी के टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शमी को अग्नि का रूप माना जाता है, जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप। इन दोनों वृक्षों की लकड़ी से बने अरणी तख्ते पर एक लकड़ी की छड़ी को तेजी से घुमाया जाता है, जिससे घर्षण उत्पन्न होता है और चिंगारी निकलती है। इस चिंगारी को हवा देकर बढ़ाया जाता है, जो अंततः प्रबल अग्नि का रूप ले लेती है। इस अग्नि का उपयोग यज्ञ में किया जाता है।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता

अरणी मंथन केवल अग्नि उत्पन्न करने की क्रिया नहीं, बल्कि इसका आध्यात्मिक और धार्मिक भी गहरा महत्व है। प्राचीन ऋषि-मुनि मंत्रोच्चार के साथ इस प्रक्रिया का आयोजन करते थे, जिससे अग्नि देवता की कृपा प्राप्त होती थी और अग्नि कुंड में उनकी दिव्य उपस्थिति होती थी। इसे अग्नि की शुद्धि और ऊर्जा का स्रोत माना जाता था।

राम मंदिर में अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि में देवी-देवताओं की मूर्तियों को प्राण प्रतिष्ठा दी जाती है, जिससे मंदिर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है। यह प्राचीन परंपरा आज भी वैदिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्राण प्रतिष्ठा की अन्य महत्वपूर्ण विधियां

अरणी मंथन के साथ-साथ प्राण प्रतिष्ठा के दौरान अन्य अनुष्ठान भी संपन्न होते हैं जैसे:

  • मंत्रोच्चार: मंत्रों के उच्चारण से मूर्ति में ऊर्जा का संचार होता है।
  • अन्नाधिवास: मूर्तियों को अनाज अर्पित कर जीवन शक्ति दी जाती है।
  • पालकी यात्रा: उत्सव मूर्तियों को पालकी में विराजमान कर पूरे मंदिर परिसर में घुमाया जाता है, जिससे सभी श्रद्धालु उनकी आराधना कर सकें।

राम मंदिर में हो रही प्राण प्रतिष्ठा और अरणी मंथन जैसी प्राचीन वैदिक प्रक्रियाएं हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं। ये अनुष्ठान न केवल धार्मिक क्रियाएं हैं, बल्कि संस्कृति, ज्ञान और आध्यात्मिकता का संदेश भी हैं। आज जब आधुनिकता और विज्ञान की दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, तब भी इन प्राचीन विधियों का महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि वे हमें शाश्वत सत्य की याद दिलाती हैं।

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