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63 साल बाद मिला अपना ही घर: सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार से दिलाई प्रॉपर्टी की वापसी

63 साल बाद मिला अपना ही घर: सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार से दिलाई प्रॉपर्टी की वापसी

उत्तर प्रदेश के एक परिवार को अपने ही घर को वापस पाने में 63 साल लग गए। किराएदार ने लंबे समय तक प्रॉपर्टी पर कब्जा बनाए रखा, जिस पर 1952 से कानूनी लड़ाई जारी थी। दो पीढ़ियों ने यह केस लड़ा और आखिरकार अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने मालिक के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने किराएदार को दिसंबर 2025 तक प्रॉपर्टी खाली करने का आदेश दिया।

प्रॉपर्टी पर कब्जे की शुरुआत

1952 में एक व्यक्ति (A) ने अपने स्वामित्व वाली प्रॉपर्टी को 10 साल की अवधि के लिए किराए पर दिया था। यह प्रॉपर्टी एक शहरी और विकसित इलाके में स्थित थी। 1962 में यह संपत्ति किसी नए व्यक्ति (C) को बेच दी गई, जिन्होंने 1965 में पाया कि पुराने किराएदार अब भी वहां रह रहे हैं और उन्होंने बिना अनुमति के कब्जा बनाए रखा है। नए मालिक ने कानूनी प्रक्रिया शुरू करते हुए किरायेदारों के खिलाफ बेदखली का मुकदमा दायर किया।

अदालतों में लंबी कानूनी लड़ाई

1965 में दायर किया गया पहला केस 1974 में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां मालिक को हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद 1975 में उन्होंने दोबारा जिला अदालत में नया केस दाखिल किया। मामला वर्षों तक अदालतों में चलता रहा और 1999 में यह हाई कोर्ट पहुंचा। 2013 में हाई कोर्ट से भी फैसला किरायेदारों के पक्ष में आया।

इस बीच संपत्ति के मूल मालिक का निधन हो गया और उनके बेटों ने यह कानूनी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 24 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने आखिरकार मालिक के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और तर्क

किरायेदारों की ओर से यह तर्क दिया गया कि चूंकि मामला मूल मालिक की व्यक्तिगत आवश्यकता पर आधारित था, इसलिए उनके निधन के बाद उत्तराधिकारी इसे नहीं चला सकते। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि "बोनाफाइड आवश्यकता" केवल स्वर्गीय मालिक तक सीमित नहीं होती, बल्कि उनके परिवार के वैध उत्तराधिकारियों तक विस्तारित होती है।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश शहरी भवन (नियमन अधिनियम), 1972 की धारा 21(7) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि मालिक के देहांत के बाद उनके उत्तराधिकारी पूरी तरह से इस मुकदमे को आगे बढ़ाने के हकदार हैं।

कोर्ट की सख्ती और आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किरायेदार 73 साल से इस प्रॉपर्टी में रह रहे हैं, जिसमें से 63 साल उन्होंने बिना वैध अधिकार के बिताए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किरायेदारों ने इतने लंबे समय में कभी वैकल्पिक व्यवस्था करने का प्रयास नहीं किया, जिससे साफ जाहिर होता है कि उन्होंने जानबूझकर संपत्ति पर कब्जा बनाए रखा।

कोर्ट ने आदेश दिया कि किरायेदारों को 31 दिसंबर 2025 तक प्रॉपर्टी खाली करनी होगी। यदि उन्होंने अब तक किराया नहीं चुकाया है, तो वह राशि भी अदा करनी होगी।

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