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कोरोना के मामलों में फिर बढ़ोतरी: नया वेरिएंट नहीं, कमजोर हुई इम्यूनिटी है मुख्य वजह?

कोरोना के मामलों में फिर बढ़ोतरी: नया वेरिएंट नहीं, कमजोर हुई इम्यूनिटी है मुख्य वजह?
अंतिम अपडेट: 1 दिन पहले

भारत में कोविड-19 फिर से फैलने लगा है और देशभर में अब तक कोरोना वायरस के 1,000 से ज्यादा नए मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इसके साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ अन्य देशों में भी कोविड का संक्रमण दोबारा उभर रहा है।

Covid-19: देश में एक बार फिर कोविड-19 के मामले बढ़ने लगे हैं। कई राज्यों में प्रतिदिन एक हजार से अधिक नए मरीजों का पता चल रहा है। हालांकि इस बार चिंता की बात इतनी गंभीर नहीं मानी जा रही, क्योंकि ज्यादातर मामलों में लक्षण हल्के हैं और अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वायरस अब एक स्थिर, एंडेमिक स्थिति की ओर बढ़ रहा है और इस वजह से संक्रमण की लहरें बार-बार उभर रही हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर कोरोना के मामले क्यों फिर से बढ़ रहे हैं? क्या इसके पीछे नया वेरिएंट है या कुछ और कारण हैं? आइए विस्तार से जानते हैं।

कोरोना के मामले फिर क्यों बढ़ रहे हैं?

कोविड-19 महामारी के शुरुआती दौर के बाद से अब वायरस का व्यवहार बदल चुका है। अब SARS-CoV-2 वैसा ही व्यवहार कर रहा है जैसे अन्य मौसमी वायरस करते हैं, जिसमें मौसमी उतार-चढ़ाव और संक्रमण की दोबारा लहरें आती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत सहित कई देशों में हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ चुकी है। इसका मतलब यह है कि जिन लोगों को वैक्सीन लगी थी या जो पहले संक्रमित हो चुके थे, उनमें अब संक्रमण से बचाव की क्षमता धीरे-धीरे कम हो गई है।

इसके अलावा, कई लोगों ने एक साल या उससे ज्यादा समय से बूस्टर डोज नहीं लिया, जिससे उनकी इम्यूनिटी कमजोर हुई है। महामारी के बाद पैदा हुए छोटे बच्चे, जो न तो वायरस से संक्रमित हुए हैं और न ही वैक्सीन लगे हैं, वे भी आसानी से संक्रमण के शिकार हो सकते हैं और वायरस को फैलाने में भूमिका निभा सकते हैं।

क्या नए वेरिएंट जिम्मेदार हैं?

कोविड-19 के नए मामलों में वृद्धि को लेकर अब तक किसी विशेष नए वेरिएंट के कारण होने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारतीय स्वास्थ्य एजेंसियां JN.1, LF.7, NB.1.8.1 जैसे कुछ नए वेरिएंट्स पर नजर रख रही हैं, लेकिन इनमें से कोई भी ऐसा वेरिएंट नहीं है जो ओमिक्रॉन के पहले के वेरिएंट्स से ज्यादा खतरनाक या संक्रामक साबित हुआ हो। जीनोम सीक्वेंसिंग की कमी के कारण पूरी स्थिति का विश्लेषण करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन फिलहाल कोई गंभीर खतरा नहीं दिख रहा।

वर्तमान मामलों की गंभीरता

हालांकि कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश हल्के लक्षण वाले हैं। WHO के अनुसार, नए वेरिएंट्स ज्यादा संक्रामक जरूर हैं, लेकिन गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने वाले मामलों की संख्या में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। ज्यादातर मरीजों में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं, जो कुछ दिनों में बिना किसी विशेष इलाज के ठीक हो जाते हैं। गंभीर मामले अधिकतर बुजुर्गों और उन लोगों में देखे जा रहे हैं, जिनकी पहले से कोई गंभीर बीमारी है जैसे मधुमेह, फेफड़ों की समस्या या हृदय रोग।

कोविड के लक्षण क्या हैं?

कोविड-19 के नए वेरिएंट्स में लक्षण भी बदल गए हैं। अब अधिकांश मरीजों को हल्का बुखार, सूखी खांसी, गले में खराश, नाक बहना या बंद होना, थकान, शरीर में दर्द जैसे लक्षण होते हैं। पहले की तुलना में स्वाद और गंध का नुकसान कम देखा जा रहा है। सांस लेने में कठिनाई, निमोनिया या ऑक्सीजन की कमी जैसी गंभीर समस्याएं कम हो गई हैं, खासकर उन लोगों में जिन्होंने वैक्सीन लगवाई है या पहले संक्रमित हो चुके हैं।

कोरोना से बचाव के लिए क्या करें?

कोविड संक्रमण की बढ़ती लहर के बीच कुछ सावधानियां अपनाना बेहद जरूरी है:

  • मास्क पहनना जारी रखें, खासकर भीड़भाड़ वाले स्थानों पर।
  • नियमित रूप से हाथ धोएं और सैनिटाइजर का उपयोग करें।
  • फ्लू जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत कोविड टेस्ट करवाएं और यदि पॉजिटिव आए तो आइसोलेट हो जाएं।
  • बुजुर्ग और गंभीर बीमारियों वाले लोग खास ध्यान रखें और लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करें।

क्या बूस्टर डोज लेना जरूरी है?

फिलहाल विशेषज्ञों का मानना है कि आम लोगों के लिए बूस्टर डोज की सख्त जरूरत नहीं है। मौजूदा वैक्सीन गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने से बचाव करती हैं, इसलिए वैक्सीनेशन जरूरी है। हालांकि, 60 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गों, गंभीर बीमारियों से पीड़ित और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को वैक्सीन की बूस्टर डोज जरूर लेने की सलाह दी जा रही है।

वैश्विक स्तर पर कोविड-19 को अब महामारी की स्थिति से एंडेमिक यानी सामान्य वायरल संक्रमण की स्थिति में लाने की दिशा में काम हो रहा है। इसका मतलब यह है कि वायरस हमारे जीवन का हिस्सा तो रहेगा लेकिन इसे नियंत्रित किया जाएगा। इसलिए सामूहिक वैक्सीनेशन की जगह जोखिम-आधारित रणनीति अपनाई जाएगी, जिसमें मुख्य ध्यान उच्च जोखिम वाले समूहों को सुरक्षा देने पर रहेगा।

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