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Parshuram Jayanti 2025: भगवान परशुराम के 5 अद्भुत रहस्य जो जानकर मिलेगा दिव्य आशीर्वाद

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इस साल परशुराम जयंती आज यानी 29 अप्रैल को है। भगवान परशुराम विष्णु के अवतार माने जाते हैं और उन्हें चिंरजीवी होने का वरदान प्राप्त है। कलियुग में भगवान कल्कि के जन्म के बाद, परशुराम उन्हें अधर्म के नाश के लिए मदद करेंगे।

परशुराम जयंती हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस साल परशुराम जयंती 29 अप्रैल को है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम का जन्म इसी दिन प्रदोष काल में हुआ था। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है और वे चिरंजीवी भी हैं, यानी उनकी मृत्यु नहीं होती। आइए, जानते हैं भगवान परशुराम से जुड़ी 5 महत्वपूर्ण और रहस्यमयी बातें, जो उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर करती हैं।

भगवान परशुराम का असली नाम था 'राम'

बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान परशुराम का जन्म नाम केवल राम था। बचपन में उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। शिवजी उनकी भक्ति से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उन्हें एक विशेष फरसा (battle axe) प्रदान किया। इस फरसे के कारण ही उन्हें परशुराम नाम मिला, जिसका अर्थ है "फरसा धारण करने वाला राम"। यह नाम उनके अद्वितीय पराक्रम और शक्ति को दर्शाता है, क्योंकि परशुराम को अत्यधिक ताकत और साहस प्राप्त था। उनके इस नाम से जुड़ी यह कहानी उनके धार्मिक समर्पण और शक्ति को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।

भगवान परशुराम ने श्रीराम को दिया था शिव का अजेय धनुष

भगवान परशुराम और भगवान श्रीराम के बीच एक महत्वपूर्ण घटना जुड़ी हुई है। एक बार, राजा जनक की सभा में श्रीराम ने भगवान शिव का धनुष तोड़ा। यह सुनकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और सभा में पहुंच गए। उनकी श्रीराम से तीखी बहस भी हुई। लेकिन बाद में जब परशुराम को यह पता चला कि श्रीराम वास्तव में भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो उन्होंने श्रीराम को अपना धनुष उपहार में दे दिया। 

यह घटना यह दिखाती है कि परशुराम ने अपनी आध्यात्मिक समझ से श्रीराम की महानता को स्वीकार किया और धर्म और परंपरा के अनुसार अपने क्रोध को शांत किया। यह उनकी धार्मिक परिपक्वता और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र की दीक्षा दी

द्वापर युग में भगवान परशुराम ने एक अहम घटना में हिस्सा लिया। जब बलराम और श्रीकृष्ण ने जरासंध के हमले से बचने के लिए दक्षिण दिशा की यात्रा की, तब वे भगवान परशुराम से मिलने के लिए उनके आश्रम पहुंचे। परशुराम जी ने श्रीकृष्ण का स्वागत किया और उन्हें सुदर्शन चक्र की दीक्षा दी। यह चक्र भगवान श्रीकृष्ण के पास एक अत्यधिक शक्ति और अधिकार का प्रतीक था। 

सुदर्शन चक्र को प्राप्त करने के बाद, श्रीकृष्ण ने उसे अपने युद्धों में अपनी रक्षा के लिए उपयोग किया। इस घटना ने यह सिद्ध किया कि भगवान परशुराम न केवल महान योद्धा थे, बल्कि उन्हें विशेष शास्त्रों और शक्तियों का ज्ञान भी था। यह घटना उनके ज्ञान, शक्ति और उनके आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रतिष्ठा को और मजबूत करती है।

परशुराम ने हर युग में अलग-अलग अवतार लेकर किए महान कार्य

भगवान परशुराम एक अद्वितीय और अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति थे, जिनकी उपस्थिति और कार्यों का प्रभाव हर युग में देखने को मिला। उन्होंने सतयुग, तृेतायुग और द्वापर युग जैसे विभिन्न युगों में अपने अवतार से कई महत्वपूर्ण कार्य किए। सतयुग में, उन्होंने गणेश जी का एक दांत तोड़ा था, जो एक बड़ा घटनाक्रम था और इसका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व था। इसके बाद त्रेतायुग में, परशुराम ने राजाओं का सम्मान किया और भगवान राम का स्वागत किया। यह घटना उनकी महानता और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है।

द्वापर युग में परशुराम ने भगवान कृष्ण का साथ दिया और महाकवि कर्ण को श्राप दिया, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसके साथ ही, उन्होंने महान योद्धाओं जैसे भीष्म पितामह, द्रौणाचार्य और कर्ण को शास्त्र विद्या सिखाई। परशुराम का यह कार्य यह सिद्ध करता है कि वह हर युग में अपने योगदान से धर्म और न्याय की रक्षा करने के लिए सक्रिय रहे।

भगवान परशुराम ने फरसा फेंककर समुद्र को किया पीछे

भगवान परशुराम का एक और महत्वपूर्ण कार्य था समुद्र को पीछे धकेलना। जब भगवान परशुराम ने महर्षि कश्यप से वह सोने की वेदी ली, जिस पर उन्होंने कई यज्ञ किए, तो महर्षि ने उनसे पृथ्वी छोड़ने का आदेश दिया। इसके बाद परशुराम जी ने समुद्र को पीछे धकेलने का प्रण किया और वरुणदेव की तपस्या की। वरुणदेव ने उन्हें एक उपाय बताया कि वह अपना फरसा समुद्र में फेंकें। 

जैसे ही फरसा समुद्र में गिरेगा, वहां का जल सूख जाएगा और वह भूमि परशुराम की हो जाएगी। इसी उपाय के परिणामस्वरूप केरल राज्य का अस्तित्व आया। परशुराम ने वहां भगवान विष्णु का मंदिर भी बनवाया, जो आज तिरूक्ककर अप्पण के नाम से प्रसिद्ध है।

भगवान परशुराम के महत्वपूर्ण योगदान

भगवान परशुराम ने केवल युद्धों में अपनी वीरता और कौशल का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी समाज के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने ऐसी परंपराएं स्थापित कीं, जो आज भी हमारे जीवन में प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि धर्म की रक्षा के लिए हमें कभी भी संघर्ष से पीछे नहीं हटना चाहिए और सच्चाई के रास्ते पर हमेशा चलना चाहिए।

परशुराम जयंती पर क्या विशेष करें?

परशुराम जयंती के दिन भगवान परशुराम की पूजा करने से अपार लाभ मिलते हैं। इस दिन लोग विशेष रूप से हनुमान जी, शिव जी, और परशुराम की पूजा करते हैं, ताकि वे भगवान की कृपा प्राप्त कर सकें। इस दिन तर्पण, दान, और पवित्र स्नान का विशेष महत्व है। परशुराम जयंती हमें भगवान परशुराम के जीवन से प्रेरणा लेकर धार्मिक और नैतिकता की राह पर चलने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह पर्व सच्चाई, न्याय, और धर्म की रक्षा के महत्व को उजागर करता है।

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