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'भारत धर्मशाला नहीं': सुप्रीम कोर्ट की श्रीलंकाई शरणार्थी याचिका पर सख्त टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंकाई नागरिक की शरण याचिका खारिज करते हुए कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। कोर्ट ने कहा कि देश पहले ही 140 करोड़ की आबादी से जूझ रहा है।

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ शब्दों में कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से आने वाले शरणार्थियों को बसाया जा सके। यह टिप्पणी उस वक्त आई जब एक श्रीलंकाई नागरिक ने देश में शरण की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि भारत पहले ही 140 करोड़ लोगों की जनसंख्या के साथ जूझ रहा है, ऐसे में हर विदेशी नागरिक को शरण देना संभव नहीं।

श्रीलंकाई नागरिक और LTTE कनेक्शन

यह याचिका एक ऐसे श्रीलंकाई नागरिक की थी, जिसे 2015 में भारत में गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप था कि वह LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) से जुड़ा हुआ है, जो कभी श्रीलंका में सक्रिय एक आतंकवादी संगठन था। गिरफ्तारी के बाद उसके खिलाफ UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) और Foreigners Act के तहत मामला दर्ज हुआ।

कोर्ट से की गई अपील

याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई कि अगर उसे श्रीलंका वापस भेजा गया तो उसकी जान को खतरा होगा। उसने यह भी कहा कि वह भारत में एक शरणार्थी शिविर में रहना चाहता है, क्योंकि श्रीलंका में उसकी जिंदगी सुरक्षित नहीं है। उसने अनुरोध किया कि भारत उसे शरण दे।

सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी

सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा- भारत कोई धर्मशाला नहीं है। हम पहले ही अपने 140 करोड़ नागरिकों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। क्या हम हर किसी को यहां रहने की अनुमति दे सकते हैं?

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर तुम्हें खतरा है, तो "किसी अन्य देश चले जाओ"।

सजा और कानूनी प्रक्रिया

इस व्यक्ति को एक हत्या के मामले में भारत में 7 साल की सजा मिली थी, जिसे वह अब पूरी कर चुका है। साल 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे UAPA के तहत 10 साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सजा घटाकर 7 साल कर दी।

हाई कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि सजा पूरी होने के बाद उसे भारत छोड़ना होगा, लेकिन निर्वासन से पहले वह शरणार्थी शिविर में रह सकता है।

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