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काला जादू: अंधविश्वास की गिरफ्त में समाज, जागरूकता और कानून से ही होगा समाधान

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भारत जैसे विविधता भरे देश में जहां परंपराएं, आस्थाएं और रीति-रिवाज सामाजिक ताने-बाने में गहराई से रचे-बसे हैं, वहीं कुछ कुप्रथाएं आज भी समाज को भीतर से जकड़े हुए हैं। इन्हीं में से एक है काला जादू, जिसे आम भाषा में टोना-टोटका या ब्लैक मैजिक कहा जाता है। अंधविश्वास से उपजी यह प्रथा न केवल लोगों को भ्रमित करती है, बल्कि कई बार हिंसा, हत्या और सामाजिक बहिष्कार जैसी त्रासदियों को भी जन्म देती है।

क्या है काला जादू

काला जादू तंत्र-मंत्र आधारित एक ऐसी प्रथा है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को नुकसान पहुँचाने, वश में करने या अनिष्ट करवाने के लिए गुप्त, रहस्यमयी और कथित तांत्रिक उपायों का सहारा लेता है। यह विद्या अक्सर रात के समय, सुनसान स्थानों या श्मशानों में की जाती है, और इसके पीछे की मान्यता यह होती है कि कुछ विशेष क्रियाओं से अदृश्य शक्तियों को बुलाया जा सकता है जो इच्छित परिणाम देती हैं।

हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह पूरी तरह निराधार और अंधविश्वास पर आधारित है, फिर भी समाज के कई हिस्सों में लोग आज भी इसे सही मानकर चलते हैं।

अपराधों का जरिया बनता जा रहा है काला जादू

हाल के वर्षों में काला जादू के नाम पर हो रही घटनाओं ने इसे केवल एक मान्यता तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि यह एक सामाजिक अपराध का रूप ले चुका है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 से 2020 के बीच काला जादू, डायन प्रथा और टोने-टोटके के नाम पर 900 से अधिक हत्याएं दर्ज की गईं। इनमें अधिकांश पीड़ित महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग थे।

झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इस तरह की घटनाएं आम हैं। कुछ मामलों में लोगों ने तांत्रिकों के बहकावे में आकर अपने ही परिजनों की हत्या तक कर दी।

काला जादू से जुड़ी कानूनी व्यवस्था

भारत में काला जादू को लेकर कोई केंद्रीय कानून नहीं है, लेकिन कई राज्यों ने इसे रोकने के लिए विशेष कानून बनाए हैं:

  • महाराष्ट्र ने 2013 में “महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन अधिनियम” लागू किया।
  • बिहार और झारखंड में डायन प्रथा के खिलाफ कानून 1999 और 2001 में बने।
  • ओडिशा और राजस्थान में भी इस प्रकार के अंधविश्वास विरोधी अधिनियम मौजूद हैं।

हालांकि, केंद्रीय स्तर पर अभी तक कोई सर्वसमावेशी कानून नहीं बना है। 2016 में 'The Prevention of Witch Hunting Bill' संसद में पेश किया गया था, लेकिन यह अभी तक कानून का रूप नहीं ले सका है।

न्यायपालिका की पहल

2025 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने काला जादू अधिनियम पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इस कानून का उद्देश्य धार्मिक आस्थाओं को नहीं, बल्कि उन हानिकारक और धोखाधड़ीपूर्ण प्रथाओं को नियंत्रित करना है जो किसी की जान या स्वास्थ्य को खतरे में डालती हैं। कोर्ट ने साफ किया कि वैध धार्मिक परंपराओं को इस कानून की आड़ में रोका नहीं जा सकता।

सामाजिक जागरूकता की ज़रूरत

काला जादू को केवल कानूनी माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए व्यापक स्तर पर सामाजिक जागरूकता ज़रूरी है। शिक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मीडिया की भूमिका इसमें अहम हो सकती है।

  • शिक्षा का प्रसार: स्कूली पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक सोच और अंधविश्वास विरोधी विषयों को शामिल किया जाना चाहिए।
  • तांत्रिकों की पहचान और निगरानी: प्रशासन को तंत्र-मंत्र के नाम पर ठगी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
  • जनसंवाद और मीडिया: रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में जागरूकता फैलाना जरूरी है।

काला जादू केवल एक अंधविश्वास नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती है जो समाज के कमजोर तबकों को शिकार बनाती है। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा का एक बड़ा कारण यह भी है। ऐसे में जरूरी है कि समाज मिलकर वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे, कानून को सख्ती से लागू किया जाए और इस प्रथा को जड़ से उखाड़ फेंका जाए।

काला जादू से जुड़ी कुरीतियों को अगर समय रहते नहीं रोका गया, तो यह ना सिर्फ सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करेगा बल्कि मानवाधिकारों के हनन का बड़ा कारण भी बनता जाएगा।

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