मणिपुर में बीजेपी गठबंधन ने 44 विधायकों के समर्थन से नई सरकार गठन का दावा किया। एन बीरेन सिंह की जगह नए मुख्यमंत्री की चर्चा शुरू हो गई है।
Manipur: मणिपुर की सियासत एक बार फिर चर्चा में है। राज्य में जातीय हिंसा के लंबे दौर के बाद अब राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। हाल ही में बीजेपी (BJP) के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) गठबंधन के 10 विधायकों के डेलिगेशन ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात कर 44 विधायकों के समर्थन का दावा किया और नई सरकार बनाने की तैयारी जताई। इस घटनाक्रम ने सभी की नजरें मणिपुर की राजनीति पर टिका दी हैं। आखिर क्या है इस अचानक सरकार बनाने की कवायद के पीछे की कहानी? क्या एन बीरेन सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे या कोई नया चेहरा सामने आएगा? आइए जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से।
मणिपुर में दो साल से जारी अस्थिरता और जातीय हिंसा
मणिपुर पिछले दो सालों से जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। मेइती और कूकी समुदाय के बीच चले आ रहे तनाव ने राज्य की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को अस्थिर कर दिया। इस बीच, फरवरी 2024 में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन (President's Rule) लगा दिया गया। अब जब हालात धीरे-धीरे सामान्य होते दिख रहे हैं, तो बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एक बार फिर सरकार बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।
44 विधायकों का समर्थन, बीजेपी का दावा
बीजेपी विधायक थोकचोम राधेश्याम सिंह की अगुवाई में एनडीए के 10 विधायकों का डेलिगेशन राज्यपाल से मिला। उन्होंने दावा किया कि उनके पास 44 विधायकों का समर्थन है और वे नई सरकार बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। बीजेपी के मुताबिक, विधानसभा अध्यक्ष ने भी 44 विधायकों से व्यक्तिगत और समूह में मुलाकात की है और किसी ने भी सरकार गठन का विरोध नहीं किया।
इसका मतलब साफ है कि बीजेपी के पास बहुमत का आंकड़ा मौजूद है। मणिपुर विधानसभा की कुल 60 सीटों में से एक सीट फिलहाल रिक्त है, इसलिए कुल 59 सीटों में से 44 विधायकों का समर्थन मजबूत स्थिति दिखाता है।
अचानक सरकार गठन की पहल क्यों?
सवाल उठता है कि आखिर अचानक सरकार गठन की यह कवायद क्यों शुरू हुई? मणिपुर में जारी राष्ट्रपति शासन के बीच यह कदम कई राजनीतिक संकेत देता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कवायद मणिपुर का "सेंटीमेंट टेस्ट" करने के लिए है। यानी बीजेपी यह देखना चाहती है कि जनता और अन्य वर्गों का मूड क्या है।
पूर्वोत्तर के वरिष्ठ पत्रकार जोसफ लेप्चा के मुताबिक, मणिपुर में धीरे-धीरे हालात पहले से बेहतर हुए हैं। बीजेपी शायद इस माहौल को भांपकर यह देखना चाहती है कि सरकार बनाने का कदम कितना फायदेमंद रहेगा। बीजेपी की कोशिश हो सकती है कि वो अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखे, खासकर ऐसे समय में जब विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं।
बीरेन सिंह लौटेंगे या नया चेहरा आएगा?
एक बड़ा सवाल यह है कि अगर मणिपुर में फिर से सरकार बनती है, तो क्या एन बीरेन सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे या कोई नया चेहरा सामने आएगा?
राजनीतिक समीकरणों पर नजर डालें तो यह साफ होता है कि बीरेन सिंह का दोबारा मुख्यमंत्री बनना फिलहाल तय नहीं है। थोकचोम राधेश्याम सिंह, जो खुद भी मैतेई समुदाय से आते हैं, डेलिगेशन का नेतृत्व कर रहे हैं। यह संकेत दे सकता है कि बीजेपी इस बार बीरेन सिंह की जगह किसी और नेता को मौका दे सकती है।
मणिपुर की राजनीति में मैतेई समुदाय का वर्चस्व है। बीजेपी के पास 44 विधायकों में 32 मैतेई विधायक, 3 मणिपुरी मुस्लिम, 9 नगा विधायक और कुछ कूकी विधायक थे। हालांकि, हिंसा के बाद सात कूकी विधायक बीजेपी गठबंधन से अलग हो गए थे। ऐसे में मैतेई वोट बैंक को नाराज करना बीजेपी के लिए जोखिम भरा होगा। इसलिए किसी ऐसे नेता को आगे लाना संभव है जो मैतेई समुदाय से हो, लेकिन जिसका दूसरे समुदायों में भी अच्छा तालमेल हो।
बीरेन सिंह के विरोध की वजह क्या है?
बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग लंबे समय से उठती रही है। कूकी संगठनों ने सरकार पर पक्षपाती रवैये का आरोप लगाया, जिससे राज्य में हालात और खराब हुए। हालांकि, बीरेन सिंह मैतेई वोट बैंक के दम पर सीएम पद पर टिके रहे। लेकिन अब बीजेपी की रणनीति बदली नजर आ रही है। पार्टी शायद इस बार नया चेहरा लाकर मैसेज देना चाहती है कि वह सबको साथ लेकर चलने की कोशिश कर रही है।
मणिपुर में विधानसभा की ताकत: मैतेई का दबदबा
मणिपुर विधानसभा की मौजूदा तस्वीर देखें तो कुल 59 विधायकों में 37 विधायक मैतेई समुदाय से आते हैं। बीजेपी गठबंधन के 44 विधायकों में 32 मैतेई, 3 मणिपुरी मुस्लिम और 9 नगा विधायक शामिल हैं। कांग्रेस के सभी 5 विधायक भी मैतेई समुदाय से हैं। ऐसे में मैतेई बहुमत किसी भी सरकार की रीढ़ है।
कूकी विधायकों की संख्या बहुत कम है और वे पहले ही बीजेपी गठबंधन से अलग हो चुके हैं। ऐसे में बीजेपी की प्राथमिकता मैतेई समुदाय को साधे रखना है। इसलिए यह संभव है कि पार्टी मैतेई समुदाय के किसी दूसरे नेता को मुख्यमंत्री बनाए, जो बीरेन सिंह की जगह ले सके और विरोध को भी कम कर सके।
मणिपुर में बीजेपी की अगली रणनीति क्या हो सकती है?
बीजेपी के लिए मणिपुर में सरकार बनाना केवल सत्ता में वापसी का सवाल नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा राजनीतिक दांव है। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए जरूरी है कि वह राज्य में स्थिरता दिखाए और यह संदेश दे कि बीजेपी के नेतृत्व में मणिपुर सुरक्षित और स्थिर है।
सरकार बनाने के इस कदम को बीजेपी एक सकारात्मक संदेश के तौर पर पेश कर सकती है कि अब हालात सामान्य हो रहे हैं और राज्य को एक स्थिर नेतृत्व की जरूरत है। हालांकि, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका यहां अहम होगी, क्योंकि मुख्यमंत्री का चेहरा तय करने का फैसला दिल्ली में ही होगा।