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राज ठाकरे का सियासी तंज: महाराष्ट्र से ठाकरे-पवार ब्रांड खत्म करने की कोशिश नाकाम

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राज ठाकरे ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि महाराष्ट्र की राजनीति से ठाकरे-पवार ब्रांड को खत्म करने की कोशिश हो रही है, लेकिन यह संभव नहीं है। मराठी अस्मिता की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।

Maharashtra News: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर से गरमा गई है, और इस बार चर्चा में हैं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे। एक कार्यक्रम में बोलते हुए राज ठाकरे ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ कहा कि महाराष्ट्र की राजनीति से ठाकरे और पवार ब्रांड को खत्म करने की कोशिश हो रही है, लेकिन यह ब्रांड खत्म नहीं होगा। उनके इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है और कई सवालों को जन्म दे दिया है।

ठाकरे-पवार ब्रांड पर मंडरा रहा खतरा?

राज ठाकरे ने 'मुंबई तक' के एक खास कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कहा कि जब भी महाराष्ट्र की राजनीति की चर्चा होती है, तो दो बड़े नाम सबसे पहले दिमाग में आते हैं – ठाकरे और पवार। इन दोनों सरनेम ने दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई है। लेकिन क्या अब इन दोनों ब्रांड्स को खत्म करने की कोशिश हो रही है? इस सवाल पर राज ठाकरे ने कहा, "इसमें कोई विवाद नहीं है कि ठाकरे-पवार ब्रांड को खत्म करने की कोशिश हो रही है। जरूर हो रही है। लेकिन यह खत्म नहीं होगा।" राज ठाकरे का यह बयान सीधे तौर पर बीजेपी पर निशाना साधता नजर आया, हालांकि उन्होंने किसी पार्टी का नाम नहीं लिया।

ठाकरे-पवार ब्रांड का मतलब क्या है?

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे और पवार सरनेम सिर्फ परिवारों के नाम नहीं हैं, बल्कि ये एक विचारधारा, एक संघर्ष और मराठी अस्मिता का प्रतीक भी हैं। ठाकरे परिवार ने शिवसेना के जरिए महाराष्ट्र में मराठी लोगों के हितों की आवाज उठाई, तो वहीं शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के जरिए महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी अलग जगह बनाई। राज ठाकरे ने साफ कहा कि इस ब्रांड को कमजोर करने के लिए चाहे कितनी भी कोशिशें हो जाएं, लेकिन ठाकरे-पवार ब्रांड खत्म नहीं किया जा सकता।

हिंदी भाषा को लेकर भी खुला मोर्चा

राज ठाकरे ने हिंदी भाषा को लेकर भी महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत हिंदी भाषा को स्कूलों में अनिवार्य किए जाने के प्रस्ताव पर राज ठाकरे ने विरोध जताया था। उन्होंने साफ कर दिया था कि महाराष्ट्र में यह नीति लागू नहीं होने देंगे। उनके इस विरोध के बाद सरकार को भी झुकना पड़ा और हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के फैसले को रोक दिया गया। राज ठाकरे के इस कदम से मराठी अस्मिता की राजनीति को एक बार फिर बल मिला और उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि महाराष्ट्र में स्थानीय भाषा और संस्कृति को दबाया नहीं जा सकता।

क्या राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे फिर आएंगे साथ?

महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों एक और दिलचस्प चर्चा चल रही है – क्या उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे फिर से साथ आ सकते हैं? लंबे समय से अलग-अलग रास्तों पर चल रहे ये दोनों ठाकरे नेता अब एक बार फिर एक मंच पर आने की संभावनाओं को लेकर चर्चा में हैं। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों इस पर सकारात्मक बयान दे चुके हैं। उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (UBT) ने भी साफ किया था कि अगर राज ठाकरे बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट से दूरी बना लें, तो उनके साथ आने में कोई समस्या नहीं है। 'सामना' में छपे लेख के मुताबिक, ठाकरे भाइयों के एक होने की संभावनाओं ने विरोधियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं।

'सामना' ने यह भी कहा कि राज ठाकरे हमेशा से मराठी लोगों के मुद्दों को उठाते रहे हैं, और शिवसेना की भी यही पहचान रही है। ऐसे में अगर दोनों नेताओं के बीच मतभेद सुलझ जाते हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।

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