उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दलित वोट बैंक को साधने के लिए कमर कस ली है। पार्टी अब एक नई रणनीति के तहत बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों और प्रतीकों के सहारे दलित समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2024 लोकसभा चुनाव के बाद एक अहम बदलाव देखने को मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारियां अभी से शुरू कर दी हैं, और इस बार पार्टी का फोकस है – दलित मतदाता। अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले की काट खोजने के लिए BJP ने बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के नाम पर योजनाबद्ध तरीके से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू की है।
योग दिवस पर 'दलित कनेक्ट' का प्रदर्शन
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर लखनऊ के आंबेडकर पार्क में BJP द्वारा आयोजित कार्यक्रम सिर्फ योग सत्र नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी था। इस कार्यक्रम में लगभग 5000 दलित समुदाय के लोगों को आमंत्रित किया गया, जिन्हें पार्टी की ओर से सफेद टी-शर्ट दी गई थी। खास बात यह रही कि इन टी-शर्ट पर किसी BJP नेता की तस्वीर नहीं थी, बल्कि बाबा साहब आंबेडकर की छवि प्रमुखता से दिखाई गई।
शहर भर में लगे होर्डिंग्स में भी मोदी या योगी नहीं, बल्कि बाबा साहब का चेहरा प्रमुखता से नजर आया। यह बदलाव BJP की रणनीति को पूरी तरह स्पष्ट करता है, पार्टी अब सीधे दलित पहचान और अस्मिता को संबोधित करने की कोशिश कर रही है, जिससे वह उस वर्ग का दोबारा विश्वास जीत सके, जिसने 2024 में दूरी बना ली थी।
बीजेपी को 2024 में क्यों हुआ नुकसान?
2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे BJP के लिए उत्तर प्रदेश में एक स्पष्ट संदेश थे। पार्टी को प्रदेश में 26 सीटों का नुकसान हुआ और वोट शेयर 49.98% से घटकर 41.37% तक आ गया। इसका एक प्रमुख कारण था दलित मतों का खिसकना। सर्वे रिपोर्टों के अनुसार, गैर-जाटव दलितों का 56% और जाटवों का 25% वोट इंडिया ब्लॉक को मिला, जबकि 2019 में BJP को दलित वर्ग से लगभग 50% समर्थन मिला था।
यह गिरावट न केवल सीटों में, बल्कि पार्टी के अंदरूनी समीकरणों में भी चिंता का कारण बनी। क्योंकि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में दलित मतदाता लगभग 21% हैं, और वे किसी भी चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकते हैं।
'संविधान बदलेगा' नारे ने बिगाड़ी BJP की स्क्रिप्ट
BJP के रणनीतिकारों का मानना है कि विपक्ष द्वारा फैलाया गया यह नैरेटिव कि "संविधान बदला जाएगा" खासकर दलितों और वंचित वर्गों के बीच ने पार्टी के खिलाफ एक डर का माहौल बना दिया। इस डर ने दलित वोटरों को विपक्ष की ओर झुका दिया। वहीं, मायावती के BSP से लगातार कमजोर होते जनाधार ने दलित मतदाताओं को नए राजनीतिक विकल्पों की ओर देखने पर मजबूर किया।
यही वजह है कि BJP अब डैमेज कंट्रोल मोड में आ चुकी है और बाबा साहब के नाम को केंद्र में रखते हुए एक नई "सामाजिक समावेश" रणनीति पर काम कर रही है। पिछले दो महीनों में लखनऊ और आस-पास के क्षेत्रों में BJP ने आंबेडकर के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं — जिनमें "आंबेडकर मैराथन", विचार गोष्ठियां और स्थानीय स्तर पर सामुदायिक बैठकें शामिल हैं।
इन आयोजनों का नेतृत्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे और लखनऊ से विधायक नीरज सिंह कर रहे हैं। यह पहल न केवल पार्टी के पुराने चेहरों के इतर एक युवा नेतृत्व की छवि पेश करने का प्रयास है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि BJP ग्राउंड लेवल पर सामाजिक संपर्क को प्राथमिकता दे रही है।
PDA बनाम BJP: कौन बनेगा दलितों का असली प्रतिनिधि?
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने 2024 में अपने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के जरिए काफी सफलता पाई। अब 2027 के लिए उन्होंने इसी फॉर्मूले को और मजबूत करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके जवाब में BJP का आंबेडकर कार्ड यह संकेत देता है कि पार्टी अब जातीय समीकरणों को समझकर जवाबी हमला कर रही है।
BJP जानती है कि मायावती की BSP अब उस ताकत में नहीं रही, जिससे वह दलितों को एकजुट कर सके। ऐसे में यदि BJP समय रहते बाबा साहब के विचारों, संवैधानिक मूल्यों और दलित अस्मिता को लेकर जमीन पर विश्वसनीयता बना पाए, तो वह दलित वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।