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लोन लेते समय बैंक कैसे बेचते हैं अनचाहे प्रोडक्ट, जानिए सच

अगर आपने कभी पर्सनल लोन के लिए किसी बैंक या वित्तीय संस्था से संपर्क किया हो, तो आपने यह जरूर महसूस किया होगा कि लोन के साथ-साथ आपको क्रेडिट कार्ड, इंश्योरेंस पॉलिसी या टॉप-अप लोन जैसे अन्य प्रोडक्ट्स भी ऑफर किए जाते हैं।

भारत में बैंकिंग सेवाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही एक नई चुनौती भी सामने आ रही है – क्रॉस सेलिंग। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बैंक या फाइनेंशियल कंपनियां ग्राहकों को उनकी जरूरत के साथ-साथ अन्य उत्पाद भी बेचने की कोशिश करती हैं, जो जरूरी नहीं होते। कई बार ग्राहक को यह तक पता नहीं होता कि उन्होंने क्या-क्या खरीद लिया है।

क्या है क्रॉस सेलिंग और यह कैसे काम करता है

क्रॉस सेलिंग का मतलब होता है कि जब कोई ग्राहक किसी बैंक या वित्तीय संस्था से कोई सेवा लेता है, जैसे कि पर्सनल लोन, तो उसी समय उसे अतिरिक्त सेवाएं जैसे क्रेडिट कार्ड, बीमा पॉलिसी, टॉप-अप लोन या म्यूचुअल फंड लेने का भी प्रस्ताव दिया जाता है।

बैंक और एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) इसे एक व्यापारिक रणनीति के रूप में अपनाते हैं ताकि अपने राजस्व को बढ़ाया जा सके और ग्राहकों को अपने साथ लंबे समय तक जोड़े रखा जा सके। हालांकि, इसका असर ग्राहकों के वित्तीय स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है, खासकर तब जब वे इन उत्पादों की शर्तों को ठीक से समझे बिना इन्हें ले लेते हैं।

बैंक कैसे करते हैं ये ‘चुपके से’ बिक्री

आपने अक्सर देखा होगा कि बैंक में लोन के लिए आवेदन करते समय अधिकारी कहते हैं कि आपके लिए एक स्पेशल ऑफर है – एक फ्री क्रेडिट कार्ड या बेहद कम प्रीमियम पर बीमा पॉलिसी। कई बार ये उत्पाद ग्राहक की जानकारी के बिना लोन दस्तावेजों के साथ जोड़ दिए जाते हैं।

ऑनलाइन आवेदन करते समय पहले से टिक किए गए बॉक्स, ‘बंडल ऑफर’ या छिपे हुए चार्ज के जरिए भी बैंक यह सुनिश्चित करते हैं कि ग्राहक अतिरिक्त प्रोडक्ट खरीद ले, भले ही उसे उसकी जरूरत न हो।

आखिर ग्राहक को क्या होता है नुकसान

क्रॉस सेलिंग के जरिए बेचे गए उत्पादों से ग्राहक को दोहरा नुकसान हो सकता है – एक तो उन्हें वो चीजें लेनी पड़ती हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, और दूसरा, उनकी जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।

उदाहरण के लिए, अगर आप 5 लाख का पर्सनल लोन ले रहे हैं और उसके साथ बीमा पॉलिसी जोड़ दी जाती है जिसकी प्रीमियम राशि 15 हजार है, तो आपका लोन अमाउंट बढ़ जाता है या EMI पर असर पड़ता है।

वहीं, अगर आप क्रेडिट कार्ड बिना जरूरत ले लेते हैं, तो भविष्य में आपके खर्चे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं और आप अनजाने में कर्ज के जाल में फंस सकते हैं।

इन बातों का रखें खास ध्यान

  • सभी डॉक्युमेंट्स पढ़ें  लोन आवेदन करते समय या बैंक से कोई अन्य सेवा लेते समय सभी दस्तावेज ध्यान से पढ़ें। जो भी बॉक्स पहले से टिक किए गए हों उन्हें चेक करें और जरूरी न होने पर अनचेक करें।
  • बैंक की बातों में न आएं  कई बार बैंक अधिकारी दबाव बनाते हैं कि आप यह प्रोडक्ट लें, वरना लोन में देरी हो सकती है। याद रखें, यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक दबाव होता है।
  • EMI की गणना खुद करें  EMI की राशि में किसी तरह की असामान्यता नजर आए तो कारण पूछें और स्पष्ट करें कि आप अतिरिक्त उत्पाद नहीं लेना चाहते।
  • क्रेडिट कार्ड से दूरी बनाएं  अगर आपको क्रेडिट कार्ड की आवश्यकता नहीं है तो उसे लेने से इनकार करें, क्योंकि इससे भविष्य में फिजूल खर्च बढ़ सकता है।
  • मौखिक वादों पर भरोसा न करें  बैंक अधिकारी जो भी वादा करें, उसे लिखित रूप में मांगें। जैसे “बीमा फ्री है”, तो उसकी पॉलिसी और प्रीमियम डिटेल्स खुद पढ़ें।

क्या क्रॉस सेलिंग वैध है? जानिए RBI का नियम

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि कोई भी बैंक या वित्तीय संस्था किसी भी ग्राहक को लोन स्वीकृत करने के बदले थर्ड पार्टी उत्पाद खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।

इसका मतलब है कि यदि कोई बैंक आपसे यह कहता है कि जब तक आप बीमा नहीं लेंगे, लोन पास नहीं होगा, तो यह नियमों का उल्लंघन है।

अगर आपके साथ ऐसा होता है तो आप तुरंत बैंक के ग्रिवांस सेल में शिकायत कर सकते हैं। यदि वहां समाधान न मिले तो आप बैंकिंग लोकपाल (Banking Ombudsman) के पास भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

क्या करें अगर पहले ही ले चुके हैं ये प्रोडक्ट

अगर आपने अनजाने में कोई प्रोडक्ट जैसे बीमा पॉलिसी या क्रेडिट कार्ड ले लिया है, तो आप उसकी कस्टमर केयर पर कॉल करके उसे रद्द करने की मांग कर सकते हैं। बीमा पॉलिसी में अक्सर एक ‘फ्री लुक पीरियड’ होता है जिसमें आप बिना नुकसान के उसे रद्द कर सकते हैं।

क्रेडिट कार्ड के मामले में अगर आपने कोई ट्रांजैक्शन नहीं किया है, तो आप कार्ड वापस कर सकते हैं और कोई शुल्क नहीं लगेगा।

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