प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए पेप्सिको इंडिया ने एक नई और अनोखी पहल ‘टाइडी ट्रेल्स’ की शुरुआत की है। यह पहल ‘द सोशल लैब’ के सहयोग से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में शुरू की गई है।
बुसनेस: प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या को ध्यान में रखते हुए पेप्सिको इंडिया ने ‘द सोशल लैब’ के साथ साझेदारी कर दिल्ली में ‘टाइडी ट्रेल्स’ नामक पहल की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने, छांटने और रीसायकल करने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत स्ट्रीट फर्नीचर का निर्माण भी हो रहा है। इस पहल का उद्देश्य स्वच्छता की संस्कृति को बढ़ावा देना और टिकाऊ विकास में सहयोग करना है।
प्लास्टिक प्रबंधन की दिशा में पहल
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के अवसर पर पेप्सिको इंडिया ने सामाजिक संस्था 'द सोशल लैब' के साथ मिलकर दिल्ली में प्लास्टिक कचरे के जिम्मेदार प्रबंधन की दिशा में ‘टाइडी ट्रेल्स’ कार्यक्रम की शुरुआत की। यह कार्यक्रम न केवल कचरा इकट्ठा करने और उसके निपटान तक सीमित है, बल्कि इसके ज़रिए आम लोगों में जागरूकता फैलाकर दीर्घकालिक बदलाव की कोशिश की जा रही है।
क्या है 'टाइडी ट्रेल्स'
‘टाइडी ट्रेल्स’ एक कम्युनिटी-बेस्ड कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य प्लास्टिक कचरे को जिम्मेदारी के साथ इकट्ठा करना, छांटना और रीसायकल करना है। यह पहल विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में संचालित की जा रही है जहां प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा अधिक होती है। इस परियोजना के पहले चरण में इसे दिल्ली के व्यस्त बाजार क्षेत्र चांदनी चौक में लागू किया गया है।
कार्यक्रम के तहत दुकानदारों और स्थानीय व्यापारियों को प्लास्टिक कचरा एकत्र करने के लिए बड़े डस्टबिन दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त एक विशेष मोबाइल वैन के माध्यम से नियमित रूप से प्लास्टिक कचरा एकत्र किया जा रहा है।
पेप्सिको इंडिया का विज़न
पेप्सिको इंडिया एंड साउथ एशिया की चीफ कॉरपोरेट अफेयर्स ऑफिसर और सस्टेनेबिलिटी प्रमुख याशिका सिंह ने बताया कि यह पहल ‘उन्नति की साझेदारी’ की सोच पर आधारित है। इसके ज़रिए केवल कचरा प्रबंधन ही नहीं, बल्कि सामाजिक भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। कार्यक्रम में स्थानीय प्रशासन, बाजार संघ, दुकानदारों और ग्राहकों को एक साझा प्लेटफॉर्म पर लाया गया है।
इस पहल के तहत 1,200 से अधिक दुकानदारों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे समुदाय स्तर पर प्लास्टिक रीसायक्लिंग की आदत को विकसित किया जा सके।
किस प्रकार काम कर रही है यह योजना
‘टाइडी ट्रेल्स’ योजना में निम्नलिखित चरणों पर कार्य किया जा रहा है:
- कचरा संग्रहण: दुकानों और अन्य संस्थानों से प्लास्टिक अपशिष्ट एकत्र किया जाता है।
- छंटाई और वर्गीकरण: प्लास्टिक कचरे को उसके प्रकार के अनुसार छांटा जाता है, जिससे उसकी रीसायक्लिंग प्रक्रिया आसान हो जाती है।
- रीसायक्लिंग और पुनः उपयोग: एकत्रित प्लास्टिक का पुनः उपयोग करके स्ट्रीट फर्नीचर जैसे बेंच और कुर्सियों का निर्माण किया जा रहा है।
- स्थापना: इन फर्नीचरों को पार्कों, सामुदायिक भवनों और बाजार क्षेत्रों में लगाया जा रहा है।
इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य है कि प्लास्टिक अपशिष्ट का उपयोग समाज के लिए लाभकारी वस्तुओं में किया जाए।
प्लास्टिक से बन रहा स्ट्रीट फर्नीचर
इस पहल की सबसे खास बात यह है कि इसमें एकत्रित प्लास्टिक कचरे से बेंच और अन्य सार्वजनिक उपयोग की वस्तुएं बनाई जा रही हैं। इस प्रकार, कचरा न केवल रीसायकल हो रहा है बल्कि वह समाज के लिए उपयोगी भी बन रहा है। इन बेंचों को सार्वजनिक स्थानों जैसे पार्क, सामुदायिक केंद्र और बाजार में स्थापित किया जा रहा है। इससे न केवल स्थानों की उपयोगिता और सौंदर्य बढ़ रहा है, बल्कि नागरिकों को पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश मिल रहा है।
जागरूकता और भागीदारी
इस कार्यक्रम के अंतर्गत केवल कचरा प्रबंधन तक ही सीमित न रहकर जागरूकता बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। विभिन्न माध्यमों से जन सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है:
- साइनबोर्ड और सूचना पटल के माध्यम से जागरूकता अभियान
- स्थानीय समुदायों, दुकानदारों और छात्रों की भागीदारी
- स्वच्छता की शपथ और सामुदायिक गोष्ठियां
- इन अभियानों से लोगों में स्वच्छता और प्लास्टिक प्रबंधन को लेकर सकारात्मक सोच विकसित हो रही है।
सरकार और उद्योग की साझेदारी
टाइडी ट्रेल्स जैसा कार्यक्रम यह दिखाता है कि यदि सरकार, उद्योग और समाज एक साथ मिलकर प्रयास करें तो किसी भी पर्यावरणीय समस्या का समाधान संभव है। केंद्र और राज्य सरकारें भी स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन पर लगातार काम कर रही हैं। स्वच्छ भारत मिशन और प्लास्टिक प्रतिबंध जैसी योजनाएं इसी दिशा में प्रयास हैं।
प्लास्टिक अपशिष्ट से जुड़े आंकड़े
भारत में हर साल लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा अनउपयोगी रह जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 60% प्लास्टिक रीसायकल होता है, जबकि शेष अपशिष्ट खुले में फेंक दिया जाता है। ऐसी स्थिति में ‘टाइडी ट्रेल्स’ जैसी पहलें प्लास्टिक अपशिष्ट के जिम्मेदार निपटान की दिशा में सकारात्मक कदम के रूप में देखी जा रही हैं।