रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के सबसे करीबी सहयोगियों में गिने जाने वाले प्रकाश शाह ने सभी को चौंकाते हुए सांसारिक जीवन का त्याग कर साधु जीवन अपना लिया है।
भारत के कॉर्पोरेट जगत में एक असाधारण और प्रेरणादायक निर्णय ने सभी को चौंका दिया है। देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक, प्रकाश शाह ने 75 करोड़ रुपये की वार्षिक सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर साधु जीवन को अपनाने का निर्णय लिया है। यह न केवल एक असामान्य घटना है, बल्कि आधुनिक जीवन और पारंपरिक सनातन मार्ग के बीच के द्वंद्व को भी दर्शाती है।
प्रकाश शाह रिलायंस इंडस्ट्रीज में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत थे और उन्हें अंबानी परिवार का राइट हैंड माना जाता था। उनके इस फैसले ने जहां कॉर्पोरेट दुनिया को चकित किया है, वहीं आध्यात्मिक जगत में एक नई चेतना भी जागृत की है।
कॉर्पोरेट से मोक्ष की राह
प्रकाश शाह ने 63 वर्ष की उम्र में नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। रिटायरमेंट के तुरंत बाद उन्होंने अपनी पत्नी नैना शाह के साथ दीक्षा ग्रहण की। यह दीक्षा महावीर जयंती के अवसर पर दी गई, जो जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक विशेष दिन माना जाता है। इस अवसर पर उन्होंने भौतिक जीवन की सारी सुविधाओं और वैभव को त्याग कर एक साधु का जीवन अपनाया।
दीक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति सांसारिक मोह, विलासिता, और भौतिक संपत्ति को त्याग कर सादगी, संयम और आत्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है। जैन परंपरा में दीक्षा का विशेष महत्व होता है, जहां यह मोक्ष प्राप्ति की दिशा में पहला कदम माना जाता है।
शिक्षा और पारिवारिक पृष्ठभूमि
प्रकाश शाह का शैक्षणिक जीवन भी अत्यंत प्रभावशाली रहा है। उन्होंने केमिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया और फिर प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी बॉम्बे से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। उनकी पत्नी नैना शाह कॉमर्स ग्रेजुएट हैं। उनके दो बेटे हैं, जिनमें से एक पहले ही दीक्षा ले चुका है, जबकि दूसरा पारिवारिक जीवन में स्थिर है और उसका एक बच्चा भी है।
इस पारिवारिक पृष्ठभूमि से यह स्पष्ट होता है कि प्रकाश शाह का झुकाव आध्यात्मिकता की ओर नया नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालिक सोच और साधना का परिणाम है।
रिलायंस में निभाई अहम भूमिका
प्रकाश शाह ने रिलायंस इंडस्ट्रीज में अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को नेतृत्व प्रदान किया। जामनगर पेटकोक गैसिफिकेशन प्रोजेक्ट और पेटकोक मार्केटिंग जैसे जटिल और बड़े प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक संचालित करना उनके प्रबंधन कौशल और तकनीकी विशेषज्ञता को दर्शाता है।
उनके कार्य को लेकर उद्योग जगत में एक अलग ही सम्मान की भावना रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जब उन्होंने नौकरी से रिटायर होने का फैसला किया, उस समय वे सालाना 75 करोड़ रुपये का पैकेज प्राप्त कर रहे थे। यह भारतीय कॉर्पोरेट जगत में एक बड़े वेतन में गिना जाता है।
कैसा है उनका नया जीवन?
रिटायरमेंट और दीक्षा के बाद प्रकाश शाह का जीवन पूरी तरह बदल चुका है। अब वे नंगे पांव चलते हैं, साधारण सफेद वस्त्र पहनते हैं और भिक्षा पर जीवन यापन करते हैं। वे जैन धर्म के सख्त अनुशासन का पालन करते हैं, जिसमें अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और तपस्या का प्रमुख स्थान होता है।
उनका दीक्षा समारोह मुंबई के बोरीवली में आयोजित किया गया था, जहां कई श्रद्धालु, व्यापारी वर्ग और धर्मगुरु शामिल हुए। इस दीक्षा के बाद वे अब सांसारिक पहचान से मुक्त होकर एक साधु के रूप में केवल आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति में लगे हुए हैं।
आधुनिकता और अध्यात्म का संगम
प्रकाश शाह की यह जीवन यात्रा आधुनिक कॉर्पोरेट जीवन और भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के बीच एक अद्भुत संगम को दर्शाती है। एक ओर जहां वे भारत के सबसे बड़े बिजनेस हाउस का अभिन्न अंग थे, वहीं दूसरी ओर अब वे सांसारिक मोह-माया से दूर साधना में रत हैं।
यह निर्णय दिखाता है कि भले ही कोई व्यक्ति कितना भी समृद्ध क्यों न हो, यदि आत्मा को शांति नहीं मिलती तो अंततः उसका लक्ष्य केवल आध्यात्मिक उन्नति बन जाता है। प्रकाश शाह का यह त्याग इस बात का प्रमाण है कि भारतीय समाज में अभी भी आध्यात्मिकता और मोक्ष की भावना जीवित है।
क्या कहता है समाज?
उनके इस निर्णय पर समाज में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है। जहां एक ओर कॉर्पोरेट क्षेत्र के लोग इसे अत्यंत आश्चर्यजनक और प्रेरक बता रहे हैं, वहीं धार्मिक समुदाय इसे एक साहसी और मोक्षाभिलाषी आत्मा का निर्णय मान रहा है।
कई लोगों के लिए यह उदाहरण बना है कि जीवन में केवल धन, पद या वैभव ही सब कुछ नहीं है। आत्मिक संतोष और जीवन की अंतिम सच्चाई को समझना और उसे अपनाना ही सच्चा ज्ञान है।