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सिद्धबली मंदिर कोटद्वार: बजरंगबली स्वयं बनते हैं भक्तों के प्रहरी, जानिए इसका इतिहास

सिद्धबली मंदिर कोटद्वार: बजरंगबली स्वयं बनते हैं भक्तों के प्रहरी, जानिए इसका इतिहास
अंतिम अपडेट: 20-05-2025

उत्तराखंड की देवभूमि यूं ही नहीं कहलाती  यहां की वादियों में न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित होती है, बल्कि यहां हर पर्वत, नदी और मंदिर के पीछे कोई गूढ़ रहस्य और धार्मिक कथा छिपी होती है। इन्हीं स्थलों में एक अत्यंत प्रसिद्ध और श्रद्धालुओं के विश्वास का प्रतीक है सिद्धबली मंदिर, जो उत्तराखंड के पौड़ी जनपद में स्थित कोटद्वार नगर के निकट है। यह मंदिर केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी इसे अन्य मंदिरों से विशिष्ट बनाती है।

मंदिर का भौगोलिक महत्व

सिद्धबली मंदिर कोटद्वार नगर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर, खोह नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर एक ऊँचे टीले पर स्थित है, जहां तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। ऊपर से नीचे बहती नदी और चारों ओर फैले हरियाली से आच्छादित पहाड़ों के बीच यह मंदिर आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराता है।

यह मंदिर ना सिर्फ उत्तराखंड बल्कि उत्तर भारत के हनुमान भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि यहां आने वाला भक्त खाली हाथ नहीं लौटता, यदि सच्चे मन से कोई मुराद मांगी जाए तो सिद्धबली बाबा अवश्य उसे पूर्ण करते हैं।

पौराणिक कथा: सिद्धबली नाम की उत्पत्ति कैसे हुई?

सिद्धबली मंदिर के पीछे जो प्रमुख कथा प्रचलित है, वह गुरू गोरखनाथ और बजरंगबली हनुमान जी से जुड़ी है। गोरखपुराण और अन्य नाथ संप्रदाय की मान्यताओं के अनुसार, गुरु गोरखनाथ एक बार अपने गुरु मच्छेंद्रनाथ को त्रिया राज्य की रानी मैनाकनी से मुक्त कराने के लिए निकले थे। जब वे इस स्थान पर पहुंचे तो पवनपुत्र हनुमान ने उनका मार्ग रोक लिया और दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ।

दोनों ही अत्यंत शक्तिशाली थे, और कोई भी एक-दूसरे को परास्त नहीं कर सका। अंत में जब गोरखनाथ ने अपनी साधना का परिचय दिया तो हनुमान जी उनके तपोबल से प्रसन्न हो गए और उन्हें वर मांगने को कहा।

गोरखनाथ ने विनम्रता से यही वरदान मांगा कि हनुमान जी इस स्थान पर प्रहरी के रूप में सदैव निवास करें और भक्तों की रक्षा करें। हनुमान जी ने इसे स्वीकार किया और तब से इस स्थान को ‘सिद्धबली’ कहा जाने लगा - ‘सिद्ध’ यानी सिद्ध साधक गोरखनाथ और ‘बली’ यानी हनुमान जी।

मंदिर की मान्यताएं और आस्था

  • यह मंदिर मनोकामना पूर्ण करने वाला स्थल माना जाता है।
  • यहां आने वाले श्रद्धालु विशेष रूप से भंडारे का आयोजन करवाते हैं जब उनकी कोई मुराद पूरी होती है।
  • मान्यता है कि संतान प्राप्ति, नौकरी, विवाह, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के लिए बाबा सिद्धबली विशेष रूप से कृपा करते हैं।
  • प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।

प्रमुख उत्सव और आयोजन

हनुमान जयंती के अवसर पर यहां विशेष पूजा और विशाल भंडारे का आयोजन होता है। यह समय भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और इस दौरान कोटद्वार शहर में मेले जैसा माहौल रहता है। दीपावली, दशहरा और श्रावण मास में भी मंदिर में विशेष भीड़ देखी जाती है। सिद्धबली मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का संगम है। 

मंदिर से दिखने वाला खोह नदी का नज़ारा, आस-पास के पहाड़ों की हरियाली और मंदिर परिसर में व्याप्त दिव्यता, हर आगंतुक को मानसिक शांति देती है।पर्यटक यहां आने के बाद पास ही स्थित कण्वाश्रम, झंडाचौड़ मैदान, और सेंचुरी (वन्य जीव विहार) जैसे स्थानों का भी दौरा करते हैं। इस कारण यह मंदिर धार्मिक पर्यटन का भी मुख्य केंद्र बन चुका है।

मंदिर का प्रबंधन और सुविधाएं

सिद्धबली मंदिर का रखरखाव एक मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। यहां यात्रियों के लिए जल, शौचालय, प्रसाद वितरण और विश्राम हेतु पर्याप्त व्यवस्था की गई है। मंदिर तक सड़क मार्ग, रेल और पैदल सभी रास्तों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सिद्धबली मंदिर कोटद्वार केवल एक मंदिर नहीं है — यह श्रद्धा, विश्वास, और अध्यात्म की त्रिवेणी है। 

यहां की कथाएं केवल धार्मिक विश्वासों का हिस्सा नहीं बल्कि उस भारत की झलक भी हैं जहां देवता और साधक एक साथ साधना करते हैं, और जहां भक्तों की आस्था चमत्कार में बदल जाती है।

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