साहित्य और सिनेमा की दुनिया के दिग्गज व्यक्तित्व एचएस वेंकटेशमूर्ति का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। 80 वर्षीय वेंकटेशमूर्ति लंबे समय से उम्र से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे थे और कुछ समय पहले उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
HS Venkateshamurthy Death: आज, 30 मई 2025 को कन्नड़ साहित्य और सिनेमा की दुनिया ने अपना एक अमूल्य रत्न खो दिया। वरिष्ठ गीतकार, कवि, लेखक और नाटककार एच.एस. वेंकटेशमूर्ति ने बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 80 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे थे। उनके निधन से कर्नाटक के सांस्कृतिक और साहित्यिक जगत में शोक की लहर फैल गई है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे वेंकटेशमूर्ति
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति सिर्फ एक गीतकार नहीं थे, बल्कि वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे जिन्होंने शिक्षा, साहित्य, रंगमंच और सिनेमा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उनका लेखन सिर्फ मनोरंजन नहीं था, वह समाज की गहराइयों को छूता था और मानवीय संवेदनाओं को शब्दों में पिरोता था। वे गीतकार के रूप में जितने सफल रहे, उतने ही प्रभावी वह एक शिक्षक और साहित्यकार के तौर पर भी थे।
उन्होंने अपने जीवन में कन्नड़ भाषा के प्रचार-प्रसार को एक मिशन की तरह लिया। उनकी लेखनी में पारंपरिक संस्कृति के साथ-साथ आधुनिकता की झलक भी साफ नजर आती थी।
100 से अधिक पुस्तकें, सैकड़ों छात्र, हजारों प्रशंसक
23 जून 1944 को दावणगेरे जिले में जन्मे वेंकटेशमूर्ति ने बैंगलोर विश्वविद्यालय से कन्नड़ साहित्य में एम.ए. किया। इसके बाद उन्होंने बेंगलुरु के सेंट जोसेफ कॉमर्स कॉलेज में लगभग तीन दशकों तक कन्नड़ के प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दीं। उनकी शिक्षण शैली और साहित्यिक समझ ने न जाने कितने विद्यार्थियों की दिशा बदली।
एक लेखक के तौर पर उन्होंने कन्नड़ में 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें कविता संग्रह, नाटक, निबंध और आलोचनात्मक लेख प्रमुख हैं। उनका लिखा नाटक 'हूवी' इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसे ICSE बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया, जिससे नई पीढ़ी को उनकी रचनाओं से रूबरू होने का अवसर मिला।
सिनेमा से साहित्य तक का सफर
वेंकटेशमूर्ति का सिनेमा से भी गहरा नाता रहा। उन्होंने कई कन्नड़ फिल्मों में गीत और संवाद लिखे। वे ऐसी रचनाओं के लिए जाने जाते थे जिनमें भावनाओं की गहराई और भाषा की सादगी दोनों ही मौजूद होती थीं। उन्होंने रश्मिका मंदाना की सुपरहिट फिल्म 'किरिक पार्टी' के लोकप्रिय गीत 'थुगु मंचदल्ली कूथु' के बोल लिखे थे, जो आज भी युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय है।
इसके अलावा उन्होंने कई टीवी धारावाहिकों के लिए भी संवाद और गीत लिखे, जिससे उन्हें जनमानस तक पहुंचने में मदद मिली। उनकी लेखनी हर वर्ग के लिए थी शिक्षित, ग्रामीण, युवा और वृद्ध सभी उनसे जुड़ते थे।
अंत नहीं, विरासत की शुरुआत
एच.एस. वेंकटेशमूर्ति अब भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका कार्य और योगदान अमर है। उन्होंने जो शब्दों की दुनिया रची, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। उनकी रचनाओं में जो मानवीय मूल्यों की झलक मिलती है, वह उन्हें केवल एक लेखक नहीं, बल्कि एक विचारक बनाती है।कर्नाटक के मुख्यमंत्री, साहित्यिक संस्थानों और फिल्म उद्योग से जुड़े कई बड़े नामों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
राज्य सरकार द्वारा उनके सम्मान में राजकीय श्रद्धांजलि की घोषणा की गई है। उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं, जो उनके साहित्यिक कार्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत हैं।