फिल्म ‘कंपकंपी’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म है जो शुरू में बहुत उम्मीदें जगाती है, लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगती है। यह फिल्म दिवंगत निर्देशक संगीत सिवन की अंतिम पेशकश है।
- फिल्म रिव्यू: कंपकंपी
- स्टार रेटिंग: 2/5
- पर्दे पर: 23.05.2025
- डायरेक्टर: संगीत सिवन
- शैली: हॉरर कॉमेडी
एंटरटेनमेंट: श्रेयस तलपड़े और तुषार कपूर की नई फिल्म ‘कपकपी’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है। यह फिल्म एक हॉरर-कॉमेडी के रूप में प्रचारित हुई, लेकिन देखने पर पता चलता है कि यह दोनों ही ज़रूरी तत्वों में कहीं न कहीं कमजोर साबित हुई है। दिवंगत निर्देशक संगीत सिवन की यह अंतिम फिल्म है, जो उनके प्रशंसकों के लिए खास उम्मीद लेकर आई थी, लेकिन अंततः दर्शकों को निराशा ही मिली।
कहानी: दिलचस्प थी, पर कमजोर पटकथा
‘कपकपी’ की कहानी मनु (श्रेयस तलपड़े) और उसके दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो ओइजा बोर्ड के माध्यम से अनामिका नामक एक आत्मा को बुलाते हैं। शुरुआत में यह एक मजेदार खेल जैसा लगता है, लेकिन धीरे-धीरे यह घटना डरावनी मोड़ लेती है। मनु के साथ कबीर (तुषार कपूर) भी जुड़ जाता है, जो रहस्यमयी रूप से कहानी में प्रवेश करता है।
हालांकि कहानी में संभावनाएं थीं, लेकिन पटकथा इतनी असंगत और बिखरी हुई है कि दर्शक कहीं खो सा जाता है। कई घटनाएं बिना स्पष्ट कारण के सामने आती हैं और कहानी का फोकस धुंधला हो जाता है।
निर्देशन और लेखन: सपने अधूरे ही रह गए
निर्देशक संगीत सिवन का यह अंतिम प्रयास शायद उनकी फिल्मी करियर की सबसे कमजोर कड़ी साबित हो गई है। पटकथा और निर्देशन में ऐसा लगता है कि कहानी के कई हिस्से अनसुलझे रह गए। फिल्म में कई सबप्लॉट्स हैं जो एक-दूसरे से जुड़ते नहीं, जिससे फिल्म की लय खराब हो जाती है। हॉरर-कॉमेडी का मिश्रण सही ढंग से नहीं बन पाया, जिससे न तो डर का माहौल बन पाया और न ही हास्य की परतें प्रभावी लग सकीं। एक दृश्य से दूसरे दृश्य में ट्रांजिशन बहुत खराब है, जो दर्शकों को भ्रमित करता है।
अभिनय: श्रेयस तलपड़े और तुषार कपूर का प्रदर्शन
श्रेयस तलपड़े ने फिल्म में पूरी ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई है। उनके कुछ दृश्य प्रभावी हैं, विशेषकर ज़ाकिर हुसैन के साथ उनका संवाद। तुषार कपूर का किरदार कबीर रहस्यमयी तो है, लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं रहा। उनकी भूमिका का स्क्रीन पर कम इस्तेमाल और देर से प्रवेश होने के कारण वह फीके पड़ गए। ज़ाकिर हुसैन ने अपने हिस्से को बखूबी निभाया, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट ने उनके अभिनय को भी सीमित कर दिया। एक अन्य अभिनेता दिव्येंदु भट्टाचार्य का कैमियो नज़र आता है, जो थोड़ा ताज़गी लाता है, लेकिन वह जल्दी कहानी से गायब हो जाते हैं।
तकनीकी पक्ष: कमजोर विजुअल्स और बिखरी एडिटिंग
फिल्म के तकनीकी पक्ष में भी काफी कमियां देखने को मिलीं। वीएफएक्स साधारण और अनप्रभावी लगे। हॉरर सीन में ज़रूरी टेंशन और डर पैदा नहीं हो पाया। एडिटिंग इतनी बेतरतीब थी कि कई सीन अधूरे और जल्दबाज़ी में कटे हुए महसूस हुए। बैकग्राउंड स्कोर भी न तो डरावना था और न ही कॉमेडी के लिए उपयुक्त। शुरुआत के कुछ हल्के-फुल्के कॉमिक पलों के बावजूद पूरी फिल्म में एकरसता और कमजोरी साफ झलकती है।
फिल्म देखें या न देखें?
‘कपकपी’ एक ऐसी फिल्म है जो अपने आइडिया के बोझ तले दब जाती है। कुछ अच्छे दृश्य और कलाकार जरूर हैं, लेकिन कमजोर पटकथा, असंगत निर्देशन और तकनीकी कमज़ोरियों के कारण यह हॉरर-कॉमेडी अपनी छाप छोड़ने में असफल रहती है। फिल्म न तो दर्शकों को डराती है और न ही हास्य से भरपूर मनोरंजन देती है। अगर आप किसी हॉरर कॉमेडी का मज़ा लेना चाहते हैं तो ‘कपकपी’ इस लिहाज से निराशाजनक रहेगी।