राजद के लिए हालात दिन-ब-दिन चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस और वीआईपी की बढ़ती मांगों के बीच अब वामदलों ने भी सीटों को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। 2025 के चुनाव को लेकर वाम दल मिलकर लगभग 65 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं।
पटना: बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है, लेकिन इस बार मुद्दा सीटों की बढ़ती मांग को लेकर है। 2025 विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सामने सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षाएं बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं। कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के बाद अब वाम दलों ने भी राजद पर सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
वाम दलों की आक्रामक दावेदारी
राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा देने वाली जानकारी यह है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इस बार कुल मिलाकर 65 सीटों पर दावेदारी ठोंकी है। पिछली बार इन तीनों दलों को कुल 29 सीटें दी गई थीं, जिनमें से 16 पर जीत दर्ज की गई थी। यह प्रदर्शन वाम दलों के लिए संबल बना और अब वे इससे दोगुनी सीटें मांग रहे हैं।
भाकपा (माले) ने राजद से इस बार 30 सीटों की मांग की है। मिथिलांचल प्रभारी और पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा ने इसकी पुष्टि की है। उनका कहना है कि 2020 के प्रदर्शन को देखते हुए यह मांग पूरी तरह जायज है। माले ने पिछली बार 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटें जीतकर वह महागठबंधन का मजबूत स्तंभ बनकर उभरी थी।
भाकपा और माकपा ने भी रखी अपनी मांग
इसी क्रम में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने 25 सीटों पर लड़ने की इच्छा जताई है। पिछली बार उसे महज छह सीटें मिली थीं, जिनमें से दो पर जीत हासिल हुई थी। बावजूद इसके, भाकपा अपनी संगठनात्मक ताकत और नए इलाकों में जनाधार का हवाला देकर सीटों की संख्या बढ़वाना चाहती है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी इस बार 10 सीटों पर दावा किया है। पिछली बार उसे चार सीटें दी गई थीं और दो पर विजय मिली थी।
माकपा के राज्य सचिव ललन चौधरी ने कहा कि राज्य कमेटी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ने की सिफारिश की है, हालांकि अंतिम फैसला केंद्रीय कमेटी द्वारा लिया जाएगा।
राजद के सामने चुनौती
कांग्रेस और VIP पहले से ही महागठबंधन में अधिक हिस्सेदारी मांग रहे हैं। कांग्रेस जहां अपने ऐतिहासिक आधार और अखिल भारतीय पहचान का हवाला देकर सीटें बढ़वाना चाहती है, वहीं VIP प्रदेश के कुछ अति-पिछड़े वर्गों में पकड़ को आधार बनाकर अपना हिस्सा तय कराने की जुगत में है। अब वाम दलों की यह आक्रामक मांगें राजद के लिए समीकरण साधना और भी कठिन बना रही हैं।
राजद नेतृत्व के लिए यह स्थिति असहज है क्योंकि एक ओर उसे सभी सहयोगी दलों को संतुष्ट रखना है तो दूसरी ओर खुद की सीटों की संख्या बनाए रखना भी जरूरी है। यदि सहयोगी दलों की मांगें मानी जाती हैं, तो यह राजद के सीटों पर सीधा असर डालेगा।
सीमांचल और दक्षिण बिहार पर वाम दलों की नजर
भाकपा (माले) ने सीमांचल और उत्तर बिहार में नई सीटों की मांग की है, जबकि भाकपा दक्षिण बिहार में अपने प्रभाव को विस्तार देना चाहती है। माकपा भी इस बार चुनावी दायरा बढ़ाने की योजना में है, जिससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि वाम दल अब सिर्फ परंपरागत क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहना चाहते। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि इन सीटों की मांगों को लेकर कोई सर्वमान्य समाधान नहीं निकला तो यह महागठबंधन की एकजुटता पर प्रश्नचिह्न लगा सकता है। सीट बंटवारे को लेकर जल्द कोई ठोस रणनीति नहीं बनी तो अंदरूनी खींचतान और असंतोष सार्वजनिक रूप ले सकता है।