जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद से जुड़े गंभीर आरोपों के चलते मंगलवार, 3 जून को तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया। इन कर्मचारियों पर लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन (HM) जैसे आतंकवादी संगठनों के लिए काम करने का आरोप था।
जम्मू-कश्मीर: राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी कठोर नीति को जारी रखते हुए तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने का बड़ा निर्णय लिया है। 3 जून 2025 को इन कर्मचारियों को लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन (HM) जैसे आतंकवादी संगठनों से जुड़े होने के आरोप में सेवा से हटा दिया गया है। यह कदम आतंकवाद के खिलाफ चल रही कार्रवाई में प्रशासन की सक्रियता और प्रभावी नीति का हिस्सा माना जा रहा है।
आतंकवाद के समर्थन में सरकारी तंत्र में सेंध
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अगस्त 2020 में पदभार ग्रहण करने के बाद से आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उनका मकसद न केवल सक्रिय आतंकवादियों को निशाना बनाना है, बल्कि उनके सहायक नेटवर्क को भी खत्म करना है। इनमें ओवरग्राउंड वर्कर (OGW) और उन लोगों को भी शामिल किया गया है जो सरकारी संस्थानों में काम करते हुए आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। सरकारी तंत्र के अंदर ऐसे लोग आतंकवादी गतिविधियों को सहयोग प्रदान करते हैं, जो सुरक्षा और शांति के लिए गंभीर खतरा हैं।
तीनों बर्खास्त कर्मचारियों के खिलाफ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत कार्रवाई की गई है, जो कि ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाने का कानूनी आधार प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार यदि कोई सरकारी कर्मचारी आतंकवाद को बढ़ावा देने या सहयोग करने में शामिल पाया जाता है, तो प्रशासन उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकता है।
कौन हैं बर्खास्त कर्मचारी?
3 जून को बर्खास्त किए गए तीनों सरकारी कर्मचारी निम्नलिखित हैं:
1. मलिक इश्फाक नसीर – जम्मू-कश्मीर पुलिस में कांस्टेबल।
मलिक इश्फाक 2007 से पुलिस में सेवा दे रहे थे। जांच में पता चला कि वे लश्कर-ए-तैयबा के सक्रिय सहयोगी थे। उनका परिवार भी आतंकवाद से जुड़ा है; उनके भाई मलिक आसिफ नसीर पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादी थे, जिन्हें 2018 में सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। पुलिस में रहते हुए भी मलिक इश्फाक हथियारों और विस्फोटकों की तस्करी में मदद करते रहे।
2. एजाज अहमद – स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक।
एजाज ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए आतंकवादी संगठनों को जानकारियां और सहायता प्रदान की। शिक्षा विभाग में रहते हुए भी वह आतंकवाद के नेटवर्क में सक्रिय था, जिससे छात्रों और समाज के लिए खतरा पैदा हुआ।
3. वसीम अहमद खान – सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर में जूनियर असिस्टेंट।
वसीम ने सुरक्षा बलों और नागरिकों के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में मदद की। चिकित्सा क्षेत्र में होने के बावजूद, उसने आतंकवाद को समर्थन देने वाले कृत्य किए।
फरवरी में भी हुए थे तीन कर्मचारी बर्खास्त
यह पहली बार नहीं है जब उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद से जुड़े सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया हो। इसी साल फरवरी 2025 में भी तीन कर्मचारियों को इसी तरह के आरोपों के चलते बर्खास्त किया गया था। इनमें पुलिस कांस्टेबल फिरदौस अहमद भट, शिक्षक मोहम्मद अशरफ भट, और फॉरेस्ट विभाग के अर्दली निसार अहमद खान शामिल थे। यह साफ दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन इस दिशा में लगातार निगरानी और कड़ी कार्रवाई कर रहा है।
आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति
मनोज सिन्हा की अगुवाई में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीति को मजबूती मिली है। उनकी सरकार ने न केवल आतंकियों को निशाना बनाया है बल्कि उनके सहायक नेटवर्क को भी कमजोर करने के लिए कठोर कदम उठाए हैं। आतंकवाद का समर्थन करने वाले ओवरग्राउंड वर्कर और सरकारी तंत्र में घुसे समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई से क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई है।
इस नीति से आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई को नई गति मिली है और यह संदेश भी गया है कि सरकार किसी भी स्तर पर आतंकवाद का समर्थन बर्दाश्त नहीं करेगी। सरकारी कर्मचारियों द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को सहयोग देना न केवल कानून की अवहेलना है बल्कि देश के खिलाफ राष्ट्रद्रोह भी है। इसलिए ऐसे लोगों को तुरंत बर्खास्त करना और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना आवश्यक था।