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मौसम का मिजाज क्यों हुआ गड़बड़? जलवायु परिवर्तन की दस्तक या चेतावनी! जानें विशेषज्ञ की राय

मौसम का मिजाज क्यों हुआ गड़बड़? जलवायु परिवर्तन की दस्तक या चेतावनी! जानें विशेषज्ञ की राय
अंतिम अपडेट: 24-05-2025

देश में मौसम का मिजाज इस समय सामान्य नहीं कहा जा सकता। मई, जो आमतौर पर झुलसाने वाली गर्मी के लिए जाना जाता है, इस बार अपेक्षा से कहीं कम गर्म रहा है। न सिर्फ गर्मी, बल्कि सर्दी और बारिश के महीनों में भी अब मौसम का व्यवहार परंपरागत ढर्रे से हटकर हो गया है।

नई दिल्ली: मई की तपती दोपहरी हो या दिसंबर की कंपकंपाती ठंड भारतीय मौसम की इन दो स्पष्ट छवियों को इस बार प्रकृति ने झुठला दिया है। देशभर में इस साल मौसम ने जो रूप दिखाया है, उसने आम लोगों से लेकर वैज्ञानिकों तक को चौंका दिया है। न मई में चुभती गर्मी देखने को मिली, न दिसंबर में सर्दी ने अपना रौद्र रूप दिखाया। मौसम में आ रहा यह असंतुलन, अब केवल एक अस्थायी बदलाव नहीं, बल्कि एक गंभीर जलवायु संकट का संकेत बन गया है।

बार-बार सक्रिय हो रहे पश्चिमी विक्षोभ

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, इस वर्ष मई में पश्चिमी विक्षोभों की संख्या असामान्य रूप से अधिक रही है। आमतौर पर ये विक्षोभ शीत ऋतु में अधिक प्रभावी रहते हैं, लेकिन इस बार गर्मी के मौसम में ही ये बार-बार सक्रिय हो रहे हैं। इसका परिणाम यह रहा कि उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में मई में भी तापमान औसत से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस नीचे रहा।

आईएमडी के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा का कहना है कि, “पश्चिमी विक्षोभों की लगातार सक्रियता और अनियमित वर्षा सीधे तौर पर वैश्विक जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हैं। यह बदलाव आने वाले समय में और अधिक गंभीर हो सकते हैं, यदि हमने समय रहते कदम नहीं उठाए।

क्यों नहीं पड़ी मई में भीषण गर्मी?

2024 के मुकाबले 2025 की गर्मी अभी तक काफी हल्की रही है। अप्रैल और मई में जहां पिछले वर्षों में तापमान 45 डिग्री के पार चला जाता था, वहीं इस साल अधिकांश स्थानों पर अधिकतम तापमान 40 डिग्री से नीचे बना रहा। मई की केवल पहली तारीख को ही देश के कुछ हिस्सों में हीटवेव जैसी स्थिति देखने को मिली, लेकिन उसके बाद मौसम अपेक्षाकृत शांत रहा।

मौसम वैज्ञानिक इसे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के रूप में देख रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी की सतह गर्म हो रही है, लेकिन इसके विपरीत प्रभाव के रूप में ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली जेट स्ट्रीम की गति और दिशा में बदलाव आ रहा है। यह जेट स्ट्रीम अब पश्चिमी विक्षोभों को बार-बार और अधिक तीव्रता से भारत की ओर खींच रही है।

खेती और स्वास्थ्य पर भी खतरे के बादल

मौसम के इस असामान्य व्यवहार का सीधा असर किसानों और आम लोगों के जीवन पर पड़ रहा है। बेमौसम बारिश और असमय तापमान में बदलाव ने खरीफ और रबी दोनों फसलों की उत्पादकता को प्रभावित किया है। गेहूं और आम की फसल विशेष रूप से प्रभावित हुई हैं। वहीं दूसरी ओर, मौसम में बार-बार हो रहे बदलावों से लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। 

अस्पतालों में वायरल बुखार, फ्लू और एलर्जी से ग्रसित मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। खासकर बच्चों और बुजुर्गों में गर्मी व उमस की वजह से स्वास्थ्य समस्याएं अधिक सामने आ रही हैं।

अब जरूरी है नीतिगत बदलाव

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है जब जलवायु परिवर्तन को केवल पर्यावरणीय विषय न मानकर विकास नीति का केंद्रबिंदु बनाया जाए। जल विशेषज्ञ डॉ. रेखा वर्मा कहती हैं, हमें जल संरक्षण, हरित ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन में कटौती को नीतियों का अहम हिस्सा बनाना होगा। वरना प्रकृति हमें आने वाले वर्षों में और भी भयावह रूप दिखा सकती है।

विज्ञानियों का स्पष्ट मानना है कि यदि यही रुझान बना रहा, तो भारत में मौसम का कोई स्थायी स्वरूप नहीं रह जाएगा। सर्दी और गर्मी का चक्र और भी बेतरतीब हो जाएगा। यह न केवल खेती, बल्कि खाद्य सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और जनस्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

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