आज यानी 26 मई 2025 को भारत के सबसे चर्चित पहलवानों में से एक, सुशील कुमार 41 वर्ष के हो गए। कभी देश की उम्मीदों का चेहरा, ओलंपिक पोडियम पर तिरंगा फहराने वाला योद्धा, आज तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे बैठा है। उनकी जिंदगी ऐसी पटकथा बन चुकी है जिसमें शिखर और पतन दोनों के दृश्य बेहद तीव्र हैं – एक ऐसा सफर जो युवाओं के लिए प्रेरणा भी है और सबक भी।
कुश्ती से जिंदगी की शुरुआत: मिट्टी के अखाड़े से दुनिया के मंच तक
सुशील कुमार का जन्म 26 मई 1983 को दिल्ली के नजफगढ़ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। बचपन से ही कुश्ती के प्रति दीवानगी थी। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कोच सतपाल सिंह के सान्निध्य में ट्रेनिंग शुरू की। सादगी, अनुशासन और कड़ी मेहनत के बल पर सुशील ने खुद को भारतीय कुश्ती का चमकता सितारा बना दिया।
उनका पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय जलवा 2008 बीजिंग ओलंपिक में देखने को मिला, जब उन्होंने 66 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। तब देश को पहली बार एहसास हुआ कि भारतीय पहलवान ओलंपिक स्तर पर भी दम दिखा सकते हैं।
यह सिर्फ शुरुआत थी। 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता और फिर 2012 के लंदन ओलंपिक में रजत पदक हासिल कर भारतीय कुश्ती के इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। वे पहले ऐसे भारतीय पहलवान बने, जिन्होंने दो ओलंपिक पदक जीते हों।
सम्मानों की बारिश: देश का हीरो बना सुशील
सुशील की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, राजीव गांधी खेल रत्न और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किए। वे लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके थे। स्कूलों, अखाड़ों और खेल अकादमियों में उनकी मिसाल दी जाती थी। वे खेल मंत्रालय और कुश्ती महासंघ के विश्वस्त चेहरे बन चुके थे।
2021: जब सुर्खियां बनीं शर्म का कारण
लेकिन 2021 की एक घटना ने सब कुछ बदल दिया। मई महीने में छत्रसाल स्टेडियम परिसर में एक झगड़ा हुआ, जिसमें जूनियर रेसलर सागर धनखड़ की मौत हो गई। मामले में सुशील कुमार को मुख्य आरोपी बताया गया। बताया गया कि सुशील अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर सागर को स्टेडियम परिसर से जबरन ले गए और फिर उसके साथ बर्बर मारपीट की, जिससे उसकी मौत हो गई।
दिल्ली पुलिस ने उन्हें काफी दिनों की तलाश के बाद हरियाणा से गिरफ्तार किया। उनके ऊपर हत्या, आपराधिक षड्यंत्र, अपहरण और धमकी जैसे गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। यह खबर पूरे देश को चौंका देने वाली थी – एक राष्ट्रीय हीरो अब एक आपराधिक मामले में जेल की हवा खा रहा था।
तिहाड़ में जन्मदिन: अंधकार में डूबे सितारे की यादें
आज जब सुशील कुमार 41 साल के हुए हैं, वे तिहाड़ जेल में हैं, न्यायिक प्रक्रिया जारी है। कभी जो दिन उनके लिए जश्न का हुआ करता था, आज वह आत्ममंथन का अवसर बन गया है। कुश्ती प्रेमी, प्रशंसक, खिलाड़ी और समाज के लोग उन्हें दो नजरिए से याद कर रहे हैं – एक, देश का गौरव रहे ओलंपियन के रूप में, और दूसरा, संयम की कमी से पतन का शिकार हुए खिलाड़ी के रूप में।
क्या कहती है सुशील की कहानी?
सुशील कुमार की कहानी एक दर्पण की तरह है – जो बताती है कि ऊंचाई पर पहुंचने के बाद खुद को संभालना कितना जरूरी है। सफलता के साथ जिम्मेदारी आती है, और अगर आप उसका निर्वाह नहीं करते, तो आपकी पहचान ही बदल सकती है। युवा खिलाड़ी उनकी उपलब्धियों से प्रेरणा ले सकते हैं, लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि संयम, विनम्रता, और कानूनी सीमाओं की समझ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी जीत और पदक।