इसरो को सैटेलाइट EOS-09 की लॉन्चिंग में सफलता नहीं मिल पाई है। बताया जा रहा है कि लॉन्चिंग के तीसरे चरण (Stage) में तकनीकी खराबी आ गई, जिसके कारण यह मिशन असफल हो गया। इस मिशन के तहत EOS-09 को पृथ्वी की निगरानी से संबंधित उद्देश्यों के लिए भेजा जाना था।
श्री हरिकोटा: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है। बहुप्रतीक्षित EOS-09 (अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-09) मिशन को लेकर देश की उम्मीदें उस समय धूमिल हो गईं जब PSLV-C61 रॉकेट की तीसरी स्टेज में आई तकनीकी खामी के कारण यह मिशन अधूरा रह गया। यह मिशन शनिवार सुबह 5:59 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
तीसरी स्टेज बनी बाधा, मिशन रह गया अधूरा
ISRO प्रमुख वी. नारायणन ने मिशन की असफलता की जानकारी देते हुए बताया कि EOS-09 के प्रक्षेपण की पहली और दूसरी स्टेज सामान्य रूप से पूरी हुईं, लेकिन तीसरी स्टेज में तकनीकी दिक्कतें आ गईं, जिससे सैटेलाइट को तय कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि अब इस पूरी प्रक्रिया का डेटा-आधारित विश्लेषण किया जाएगा, जिसके बाद ही इस खामी के मूल कारणों का पता लगाया जा सकेगा।
EOS-09: एक महत्वपूर्ण पृथ्वी अवलोकन मिशन
EOS-09 को सूर्य समकालिक कक्षा (Sun Synchronous Polar Orbit) में स्थापित करने की योजना थी। इस सैटेलाइट को विशेष रूप से पृथ्वी की सतह की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेने के लिए डिजाइन किया गया था। इसका उद्देश्य रिमोट सेंसिंग के जरिए कृषि, पर्यावरण निगरानी, शहरी नियोजन, और रक्षा जैसे क्षेत्रों में उपयोग के लिए नियमित और सटीक डेटा प्रदान करना था।
EOS-09 को अत्याधुनिक रडार इमेजिंग तकनीक से लैस किया गया था, जो दिन-रात और हर मौसम में कार्य करने में सक्षम था। इसकी सबसे खास बात यह थी कि यह बादल, कोहरा या अंधकार जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्पष्ट और हाई-रिजॉल्यूशन इमेज प्रदान कर सकता था। इस सैटेलाइट की क्षमता भारत को सटीक भू-स्थानिक जानकारी उपलब्ध कराने में अत्यंत सहायक हो सकती थी।
रक्षा क्षेत्र के लिए था रणनीतिक महत्व
इस मिशन की रणनीतिक अहमियत भी काफी अधिक थी। EOS-09 को देश की सीमाओं की निगरानी, अवैध गतिविधियों का पता लगाने, आतंकवाद रोधी ऑपरेशनों में सहायता और रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग के लिए एक आवश्यक उपकरण माना जा रहा था। इसके माध्यम से सेना को वास्तविक समय की तस्वीरें और खुफिया डेटा मिल सकता था, जिससे सुरक्षा तंत्र और मजबूत होता।
हालांकि PSLV को अब तक का सबसे भरोसेमंद प्रक्षेपण यान माना जाता रहा है, लेकिन यह विफलता दिखाती है कि अत्याधुनिक तकनीकों में भी सतत निगरानी और सुधार की आवश्यकता है। ISRO के पूर्व प्रमुखों ने भी कहा है कि अंतरिक्ष अभियानों में असफलता नई सीख लेकर आती है, जिससे भविष्य के मिशनों को और बेहतर बनाया जा सकता है।
ISRO फिर से करेगा मिशन का विश्लेषण
ISRO के वैज्ञानिकों की टीम अब इस विफल मिशन से जुड़े सभी तकनीकी डेटा का बारीकी से अध्ययन करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक अस्थायी झटका है और संगठन इससे शीघ्र उबरकर नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेगा। EOS-09 जैसे मिशन भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में इनकी भूमिका अहम है।