नासा और इसरो का यह संयुक्त मिशन है – NISAR मिशन, जिसका पूरा नाम है: NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar (NISAR) यह मिशन धरती की बदलती स्थिति, जैसे कि ग्लेशियरों का पिघलना, जंगलों की कटाई, भूकंप, ज्वालामुखी, और समुद्री सतह की ऊंचाई में बदलाव जैसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय बदलावों की बारीकी से निगरानी करेगा।
Mission Nisar: आने वाले समय में भूकंप, भूस्खलन और समुद्री तूफानों से पहले ही लोगों को चेतावनी मिल सकती है। इसका श्रेय जाएगा भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और अमेरिका की नासा द्वारा मिलकर बनाए जा रहे महत्वाकांक्षी उपग्रह मिशन "निसार" (NISAR) को। यह मिशन न केवल आपदाओं की पूर्व चेतावनी देगा, बल्कि पृथ्वी की बदलती संरचना और पर्यावरणीय बदलावों पर भी पैनी नजर रखेगा। इस परियोजना को भविष्य की प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने के सबसे क्रांतिकारी हथियार के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या है निसार मिशन?
NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) एक उन्नत रडार इमेजिंग उपग्रह है, जिसे पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थापित किया जाएगा। इस उपग्रह का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर होने वाले भौगोलिक, पारिस्थितिक और जलवायु से जुड़े बदलावों की निगरानी करना है। इसका सबसे खास पहलू यह है कि यह उपग्रह हर 12 दिन में पूरे ग्लोब का स्कैन करेगा और किसी क्षेत्र में हुए छोटे से छोटे बदलाव को भी दर्ज करेगा।
निसार का निर्माण संयुक्त रूप से इसरो और नासा द्वारा किया जा रहा है। नासा ने एल-बैंड रडार और इसकी प्रणालियों का निर्माण किया है, जबकि इसरो ने एस-बैंड रडार, उपग्रह की बस और लॉन्चिंग की जिम्मेदारी संभाली है। इस उपग्रह को भारत के GSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा, जिसकी योजना अब 2025 की शुरुआत में की जा रही है।
क्यों है यह मिशन खास?
निसार मिशन की सबसे खास बात इसकी सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक है, जो बादलों, अंधेरे या किसी भी मौसम की स्थिति में भी पृथ्वी की साफ-सुथरी तस्वीरें लेने में सक्षम है। इसका उपयोग पर्वतों की ऊंचाई में बदलाव, भूकंप से पूर्व होने वाली दरारों, हिमनदों के पिघलने, जलस्तर में उतार-चढ़ाव, और यहां तक कि भूजल स्तर की निगरानी के लिए किया जाएगा।
भविष्य की आपदा चेतावनी प्रणाली के रूप में, निसार वैज्ञानिकों को बताएगा कि किस क्षेत्र में जमीन में हलचल शुरू हो गई है। इसका अर्थ है कि अगर कोई बड़ा भूकंप आने वाला है, तो उसके पहले की भूगर्भीय हलचलों को उपग्रह रिकॉर्ड करेगा और वैज्ञानिक उसे डिकोड कर संभावित खतरे की जानकारी दे सकेंगे।
कैसे करेगा काम?
NISAR में दो प्राथमिक रडार सिस्टम हैं:
- एल-बैंड (L-band): नासा द्वारा निर्मित यह सिस्टम पृथ्वी की गहराई में हो रहे बदलावों की निगरानी करेगा।
- एस-बैंड (S-band): इसरो द्वारा विकसित यह प्रणाली सतही बदलावों जैसे वनस्पति, कृषि भूमि, और मिट्टी की नमी का विश्लेषण करेगी।
ये दोनों बैंड साथ मिलकर 3D मैपिंग करेंगे और वैज्ञानिकों को धरती के सबसे संवेदनशील हिस्सों का विस्तृत डेटा देंगे। यह उपग्रह हर दिन टेराबाइट्स में आंकड़े जमा करेगा, जिन्हें भारत और अमेरिका के वैज्ञानिक सेंटर्स में विश्लेषण किया जाएगा।
कौन-कौन से खतरे होंगे ट्रैक?
- भूकंप से पहले की हलचल
- ज्वालामुखीय गतिविधि
- हिमखंडों का टूटना
- समुद्र के जलस्तर में वृद्धि
- भूस्खलन और भू-स्खलन क्षेत्र
- तटीय इलाकों का क्षरण
- बड़े पैमाने पर वन कटाव
क्यों है यह मिशन भारत के लिए महत्वपूर्ण?
भारत एक भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील देश है, जहां हिमालयी क्षेत्र से लेकर पूर्वोत्तर तक अक्सर भूकंप आते रहते हैं। इसके अलावा, तटीय राज्यों में चक्रवात और समुद्री तूफानों का खतरा भी बना रहता है। ऐसे में निसार मिशन भारत को आपदाओं से पहले चेतावनी देने में मदद करेगा और आपदा प्रबंधन में क्रांति ला सकता है।