Chicago

सिर्फ 5 साल के लिए मिलेगा सैटेलाइट स्पेक्ट्रम, TRAI की नई सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पॉलिसी पर Starlink क्या करेगा

TRAI ने सैटेलाइट सर्विस के लिए स्पेक्ट्रम की अवधि तय की है, जिसमें शुरुआत में कुछ साल के लिए अलोकेशन होगा और बाजार की स्थिति के अनुसार आगे बढ़ाया जाएगा।

भारत में अब जल्द ही सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस को लेकर बड़ा बदलाव आने वाला है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं को लेकर कुछ नई सिफारिशें सरकार को भेजी हैं, जो सीधे तौर पर Elon Musk की Starlink, Bharti Airtel, Reliance Jio और Amazon Kuiper जैसी कंपनियों से जुड़ी हैं। इन सिफारिशों में सबसे अहम बात यह है कि अब इन कंपनियों को सैटेलाइट स्पेक्ट्रम सिर्फ 5 साल के लिए ही दिया जाएगा। इसके बाद अगर जरूरत पड़ी और मार्केट कंडीशन सही रही तो इसे दो साल और बढ़ाया जा सकेगा।

5 साल के अलॉटमेंट पर सहमति

TRAI ने सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस के लिए नया नियम सुझाया है, जिसके तहत कंपनियों को स्पेक्ट्रम सिर्फ 5 साल के लिए ही मिलेगा। Elon Musk की कंपनी Starlink चाहती थी कि भारत सरकार उन्हें 20 साल के लिए स्पेक्ट्रम दे, ताकि वे सस्ती कीमत में सेवा दे सकें और लंबे समय का बिजनेस मॉडल बना सकें। लेकिन TRAI ने यह मांग फिलहाल ठुकरा दी है।

उनका मानना है कि पहले सर्विस को नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से शुरू किया जाए, फिर आगे मार्केट की स्थिति देखकर समय बढ़ाया जा सकता है। इससे सैटेलाइट सेक्टर में संतुलन बना रहेगा।

इन कंपनियों पर भी लागू होंगी ये शर्तें

TRAI की नई सिफारिशें सिर्फ Starlink पर ही नहीं बल्कि Airtel, Reliance Jio और Amazon Kuiper जैसी दूसरी सैटेलाइट कंपनियों पर भी लागू होंगी। इससे मार्केट में बराबरी बनी रहेगी और सभी कंपनियों को एक जैसा मौका मिलेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, भूस्थैतिक कक्षा यानी Geostationary Orbit से चलने वाली सेवाओं और मोबाइल सैटेलाइट सेवाओं के लिए टेलीकॉम कंपनियों को उनके कुल कमाई (Adjusted Gross Revenue) का 4% शुल्क देना होगा। इसके अलावा हर MHz के लिए कम से कम 3,500 रुपये का स्पेक्ट्रम चार्ज देना अनिवार्य होगा, जिससे सरकार को रेगुलेटेड रेवेन्यू भी मिलेगा और सेक्टर में ट्रांसपेरेंसी बनी रहेगी।

नॉन-GEO सर्विस पर एक्स्ट्रा चार्ज

TRAI ने नॉन-भूस्थैतिक कक्षा यानी Non-GEO सैटेलाइट सेवाओं के लिए एक खास चार्ज का सुझाव दिया है। इस नियम के मुताबिक, जो कंपनियां GEO (Geostationary Orbit) की जगह LEO (Low Earth Orbit) जैसे सैटेलाइट सिस्टम का इस्तेमाल करेंगी, उन्हें हर एक सब्सक्राइबर के लिए हर साल 500 रुपये का अतिरिक्त शुल्क देना होगा। इसका सीधा असर उन कंपनियों पर पड़ेगा जो लो अर्थ ऑर्बिट टेक्नोलॉजी पर आधारित इंटरनेट सर्विस मुहैया कराती हैं, जैसे कि एलन मस्क की Starlink। TRAI का मानना है कि इस तरह का चार्ज लागू करने से स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल संतुलित होगा और मार्केट में बराबरी बनी रहेगी। साथ ही सरकार को रेगुलेशन से जुड़ी लागतों की भरपाई भी आसानी से हो सकेगी।

नई सुरक्षा शर्तें भी होंगी लागू

भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करने से पहले कंपनियों को अब दूरसंचार विभाग (DoT) की नई और सख्त सुरक्षा शर्तों का पालन करना होगा। इन शर्तों में लगभग 29 से 30 अलग-अलग सुरक्षा मापदंड शामिल हैं, जैसे वेबसाइट ब्लॉकिंग, कानूनी सर्विलांस और नेटवर्क सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था। खास बात यह है कि इन कंपनियों को भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के 50 किलोमीटर के भीतर “स्पेशल सर्विलांस ज़ोन” बनाना होगा, ताकि सीमावर्ती क्षेत्रों में भी नेटवर्क की निगरानी और कंट्रोल बेहतर ढंग से किया जा सके। ये नियम देश की साइबर और डेटा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लागू किए गए हैं।

Starlink का भारत में बड़ा प्लान

Starlink भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है और इसके लिए उसने Reliance Jio और Airtel जैसी बड़ी टेलीकॉम कंपनियों के साथ साझेदारी की है। Starlink के डिवाइस अब इन कंपनियों के रिटेल स्टोर्स पर उपलब्ध होंगे, जिससे यूज़र्स आसानी से इनकी सर्विस का लाभ उठा सकेंगे। कंपनी चाहती थी कि भारत सरकार उन्हें लंबे समय यानी 20 साल के लिए स्पेक्ट्रम अलॉट करे ताकि वे सस्ती और स्थायी इंटरनेट सेवा दे सकें। लेकिन TRAI की नई सिफारिश के अनुसार अब कंपनियों को सिर्फ 5 साल के लिए ही स्पेक्ट्रम मिलेगा, जिसे बाद में 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है। इससे Starlink को अपने भारत प्लान में कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं।

Leave a comment