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करणी माता मंदिर: चूहों के दर्शन में दिव्यता और आस्था का अद्भुत संगम

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राजस्थान की धरती चमत्कारों और आस्था की कहानियों से भरी पड़ी है। इन्हीं चमत्कारी स्थलों में से एक है बीकानेर के देशनोक कस्बे में स्थित करणी माता मंदिर, जो न सिर्फ अपनी धार्मिक महिमा बल्कि हजारों चूहों की उपस्थिति के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां चूहों को देवता की तरह पूजा जाता है और यदि किसी श्रद्धालु को सफेद चूहा दिख जाए तो इसे अत्यंत शुभ और सौभाग्य का संकेत माना जाता है। 

करणी माता कौन थीं? आसान भाषा में जानकारी

करणी माता को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि वे 14वीं शताब्दी में राजस्थान में प्रकट हुई थीं और उन्होंने अपने जीवन में कई चमत्कार किए। उन्होंने लोगों की मदद की, असहायों को सहारा दिया और समाज में अच्छाई फैलाने का काम किया। वे बीकानेर और जोधपुर के राजपरिवारों की कुलदेवी भी मानी जाती हैं, जिनकी पीढ़ियों से पूजा होती आ रही है। उनका जीवन साधना, सेवा और त्याग से भरा था।

मान्यता है कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी के दिन करणी माता ने ज्योतिर्लीन होकर अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया। इसके बाद देशनोक गांव में उनका मंदिर बनवाया गया, जहां आज भी लाखों भक्त उनकी पूजा करते हैं। करणी माता का यह मंदिर चूहों के कारण भी बहुत प्रसिद्ध है, जिनमें से सफेद चूहों को विशेष शुभ माना जाता है।

क्यों पूजे जाते हैं चूहे?

करणी माता मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां निवास करने वाले करीब 25,000 चूहे हैं, जिन्हें श्रद्धा से "काबा" कहा जाता है। इन्हें देवता के समान सम्मान मिलता है। ये चूहे मंदिर के हर कोने में खुलेआम घूमते हैं, प्रसाद खाते हैं, श्रद्धालुओं के पास आते हैं लेकिन कभी किसी को काटते या नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां तक कि मंदिर में भोग पहले इन्हीं चूहों को अर्पित किया जाता है, फिर भक्तों में प्रसाद वितरित होता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, करणी माता के एक भक्त परिवार के पुत्र की मृत्यु हो गई थी। जब माता ने यमराज से उस बालक को जीवित करने की प्रार्थना की, तो यमराज ने उसे चूहे के रूप में पुनर्जन्म देने की अनुमति दी। इसके बाद करणी माता ने आदेश दिया कि उनके भक्त मृत्यु के पश्चात चूहे के रूप में इस मंदिर में जन्म लेंगे। यही कारण है कि इन चूहों को श्रद्धा से पूजा जाता है।

सफेद चूहे का दिखना क्यों होता है शुभ?

करणी माता मंदिर में जहां हजारों चूहे काले रंग के होते हैं, वहीं कुछ बहुत ही कम संख्या में सफेद चूहे भी दिखाई देते हैं। इन सफेद चूहों को बहुत पवित्र और खास माना जाता है। मान्यता है कि ये चूहे करणी माता और उनके परिवार के प्रतीक होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी भक्त को मंदिर में सफेद चूहा दिखाई दे जाए, तो यह बहुत शुभ संकेत होता है। यह माना जाता है कि उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी होंगी। इसलिए भक्त सफेद चूहे के दर्शन को सौभाग्य और ईश्वरीय कृपा का प्रतीक मानते हैं।

करणी माता मंदिर की अद्भुत विशेषताएं

करणी माता मंदिर का निर्माण राजपूताना वास्तुकला के अनुसार हुआ है, जो इसे बेहद सुंदर और भव्य बनाता है। मंदिर के मुख्य द्वार और खंभों पर सफेद संगमरमर की खूबसूरत नक्काशी की गई है, जो किसी भी भक्त का मन मोह लेती है। मंदिर के दरवाजे चांदी के बने हैं और इन पर देवी करणी माता के जीवन से जुड़ी कहानियों के चित्र उकेरे गए हैं, जो यहां आने वालों को उनके जीवन और चमत्कारों की याद दिलाते हैं।

इस मंदिर का पहला निर्माण बीकानेर के राजा जय सिंह ने करवाया था। बाद में, महाराजा गंगा सिंह के समय में इसका विस्तार हुआ और इसे आज का भव्य स्वरूप मिला। वर्ष 1999 में हैदराबाद के कुंदन लाल वर्मा ने भी मंदिर का कुछ भाग और सुंदर तरीके से बनवाया। यही कारण है कि यह मंदिर आज न सिर्फ धार्मिक, बल्कि वास्तुशिल्प दृष्टि से भी बेहद खास माना जाता है।

वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना करणी माता मंदिर

करणी माता मंदिर में हजारों चूहे रहते हैं, फिर भी वहां कभी किसी तरह की बीमारी या संक्रमण की खबर नहीं आती। यह बात वैज्ञानिकों के लिए बहुत ही हैरानी की है। आमतौर पर जहां इतने चूहे होते हैं, वहां गंदगी, दुर्गंध और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन इस मंदिर में माहौल बिल्कुल साफ-सुथरा और शांत रहता है।

यहां के चूहे भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते और बड़े शांत स्वभाव के होते हैं। वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को समझने के लिए कई बार शोध किए, लेकिन अभी तक यह समझ नहीं पाया गया कि इतने चूहों के होते हुए भी यहां स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं क्यों नहीं होतीं। यह स्थान विज्ञान के लिए भी आज तक एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।

मंदिर में दर्शन और यात्रा की जानकारी

करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले में, देशनोक नामक कस्बे में स्थित है। यह बीकानेर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए बीकानेर रेलवे स्टेशन से टैक्सी, जीप या बस की सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं। साथ ही, देशनोक का रेलवे स्टेशन मंदिर के बहुत पास है, जिससे ट्रेन से यात्रा करना भी काफी सुविधाजनक रहता है।

यहां पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान मंदिर में विशेष मेले का आयोजन होता है। इन मेलों में हजारों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर परिसर के आसपास धर्मशालाएं और होटल भी मौजूद हैं, जिससे यात्रा आरामदायक हो जाती है।

श्रद्धालुओं के लिए जरूरी बातें

करणी माता मंदिर में प्रवेश करते समय श्रद्धालुओं को यह विशेष ध्यान देना होता है कि किसी भी चूहे को चोट न पहुंचे। यहां चूहे पूजा का हिस्सा माने जाते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यदि किसी श्रद्धालु से भूलवश कोई चूहा मर जाता है, तो उसे उसकी क्षतिपूर्ति के रूप में चांदी का चूहा बनवाकर मंदिर में अर्पित करना पड़ता है। यह परंपरा चूहों के प्रति सम्मान और श्रद्धा को दर्शाती है।

मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर परिसर के पास धर्मशालाओं और ठहरने की अच्छी व्यवस्था की है। यहां आने वाले भक्त शांति और भक्ति के वातावरण में समय बिताते हैं और मां करणी के दर्शन करके अपने जीवन को पुण्य से भरते हैं।

करणी माता मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक चमत्कारिक अनुभव भी है जो भक्तों को अध्यात्म, श्रद्धा और रहस्य की गहराइयों से जोड़ता है। यहां चूहों की उपस्थिति नकारात्मकता नहीं बल्कि आस्था और चमत्कार का प्रतीक मानी जाती है। करणी माता की महिमा आज भी लोगों के जीवन में विश्वास और शक्ति का संचार करती है। यदि आप कभी बीकानेर जाएं तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें और उस चमत्कारिक अनुभव को महसूस करें जिसे शब्दों में बयां करना कठिन है।

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