भारत एक आस्थावान देश है जहां देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा और भक्ति जीवन का अहम हिस्सा है। इन्हीं आस्था के पर्वों में एक अत्यंत पावन दिन आता है 'महेश नवमी' का, जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। यह पर्व खासतौर पर मारवाड़ी समाज में बड़ी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है, लेकिन अब यह संपूर्ण हिंदू समाज में आस्था का पर्व बन चुका है।
साल 2025 में महेश नवमी 4 जून, बुधवार को पड़ रही है। यह दिन शिव उपासकों के लिए बहुत ही शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन व्रत रखने, शिव चालीसा पढ़ने, पूजा-पाठ और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है।
महेश नवमी का धार्मिक महत्व
महेश नवमी विशेष रूप से भगवान शिव (जिन्हें महेश भी कहा जाता है) और माता पार्वती की आराधना का पर्व है। यह तिथि हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आती है। मान्यता है कि इस दिन ही महेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी और तभी से यह दिन उनके कुल देवता भगवान महेश के पूजन के रूप में मनाया जाता है।
लेकिन इसके आध्यात्मिक मायने कहीं गहरे हैं। यह दिन हमें शिव तत्व की शक्ति, संहार और कल्याण के संतुलन की याद दिलाता है। यह वह दिन है जब हम शिव-पार्वती की पूजा कर यह प्रार्थना करते हैं कि वे हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त करें और मोक्ष का मार्ग दिखाएं।
कैसे मनाएं महेश नवमी?
महेश नवमी का व्रत और पूजन सूर्योदय से पहले शुरू किया जाता है। व्रती स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और फिर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, आक और पुष्प अर्पित करते हैं। माता पार्वती को चंदन, सिंदूर, साड़ी, श्रृंगार सामग्री और मीठा नैवेद्य अर्पण किया जाता है।
विशेष पूजा विधि:
- स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत रखने का संकल्प लें कि आप पूरे मन से यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के लिए करेंगे।
- मूर्ति या चित्र की स्थापना: घर में साफ जगह या पूजा स्थान पर शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- अभिषेक करें: सबसे पहले शुद्ध जल से शिवलिंग या मूर्ति का अभिषेक करें, फिर पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर) से स्नान कराएं।
- पूजा सामग्री अर्पण करें: बेलपत्र, भांग, धतूरा, सफेद फूल, चावल और अक्षत भगवान शिव को अर्पित करें।
- धूप-दीप और आरती: धूप और दीप जलाकर शिवजी और पार्वतीजी की आरती करें। यह चरण पूजा में बहुत पवित्र माना जाता है।
- शिव पाठ करें: आप शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। यह मंत्र मन की शांति और इच्छाओं की पूर्ति के लिए उत्तम माने जाते हैं।
- फलाहार और संध्या आरती: पूरे दिन फलाहार करें यानी फल, दूध या उपवास वाले भोजन लें। शाम को फिर से शिव-पार्वती की आरती करें और व्रत का समापन करें।
क्यों करें शिव चालीसा का पाठ?
महेश नवमी पर शिव चालीसा का पाठ विशेष फलदायी माना गया है। शिव चालीसा भगवान शिव की महिमा का सार है। इसके पाठ से मानसिक शांति मिलती है, जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और आरोग्यता प्राप्त होती है। मान्यता है कि शिव चालीसा पढ़ने से:
- पापों का नाश होता है
- शत्रु नष्ट होते हैं
- रोगों से मुक्ति मिलती है
- धन-संपत्ति में वृद्धि होती है
- विवाह और संतान संबंधी समस्याएं हल होती हैं
शिव चालीसा पढ़ते समय शुद्ध भाव और ध्यान का होना अत्यंत आवश्यक है। इसे सुबह या शाम को घी का दीपक जलाकर पढ़ा जाए तो विशेष लाभ होता है।
महेश नवमी का सामाजिक पक्ष
यह पर्व सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। महेश नवमी के दिन कई स्थानों पर भंडारा, यज्ञ, भजन-कीर्तन और झांकी निकाली जाती है। मंदिरों में विशेष श्रृंगार होता है और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। कई जगहों पर सामूहिक शिव पूजन और रुद्राभिषेक का आयोजन होता है, जो सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देता है।
व्रत रखने के लाभ
व्रत रखना न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक होता है, बल्कि यह शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी माना जाता है। महिलाएं व्रत के माध्यम से अपने पति की लंबी उम्र और संतान की भलाई की कामना करती हैं, जबकि पुरुष इसे परिवार की सुख-शांति और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति के लिए रखते हैं। व्रत रखने से आत्मसंयम बढ़ता है, मन में सकारात्मकता आती है और शुद्धता का अनुभव होता है। यह न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि शरीर को भी विषैले तत्वों से मुक्त कर स्वस्थ रखने में मदद करता है।
क्या न करें महेश नवमी पर?
- इस दिन निंदा, झूठ, क्रोध, छल और मांसाहार से बचना चाहिए।
- मानसिक शुद्धता और सात्त्विक आहार का पालन करना चाहिए।
- पूजा में प्रयुक्त वस्तुओं की पवित्रता बनाए रखें।
- महिलाओं को विशेष रूप से व्रत और पूजन करते समय शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
महेश नवमी से जुड़ी एक प्रेरणादायक कथा
एक समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में शिवभक्त महिला ने महेश नवमी का व्रत किया। पूरे श्रद्धा से उसने शिव चालीसा का पाठ किया और जल से ही शिवलिंग का अभिषेक किया। वर्षभर उसकी कठिनाइयाँ समाप्त होती गईं। कुछ ही समय में उसके घर में समृद्धि आने लगी और उसके पति को नौकरी मिली, संतान का सुख भी प्राप्त हुआ। तब से यह परंपरा उस गांव में चली आ रही है कि हर महिला महेश नवमी पर शिव चालीसा पढ़े और व्रत रखे।
महेश नवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का अवसर है। यह दिन हमें शिव की असीम शक्ति, करुणा और कृपा को याद दिलाता है। शिव ही संहारकर्ता हैं तो वही कल्याणकारी भी हैं। यदि आप जीवन में सुख, समृद्धि और शांति चाहते हैं, तो महेश नवमी के दिन शिव-पार्वती की पूजा करें, व्रत रखें और शिव चालीसा का पाठ करें।