नरसिंह जयंती हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान विष्णु के चौथे अवतार, भगवान नरसिंह को समर्पित है। यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय, भक्त प्रह्लाद की रक्षा और ईश्वर की न्यायप्रियता का प्रतीक है। वर्ष 2025 में यह पर्व रविवार, 11 मई को मनाया जाएगा।
हर वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाने वाली नरसिंह जयंती न केवल धार्मिक श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह ईश्वर के न्याय और भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक भी है। यह पर्व उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति है जब भगवान विष्णु ने अपने चौथे अवतार नरसिंह रूप में हिरण्यकश्यप जैसे अत्याचारी का संहार किया और अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
नरसिंह जयंती का महत्व इसी में निहित है कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत, अधर्म पर धर्म की विजय और ईश्वर की कृपा से असंभव को संभव बनाने की प्रेरणा देता है।
नरसिंह जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त
- चतुर्दशी तिथि आरंभ: शनिवार, 10 मई 2025 को शाम 05:29 बजे
- चतुर्दशी तिथि समाप्त: रविवार, 11 मई 2025 को रात 09:19 बजे
- व्रत और पूजा का दिन: रविवार, 11 मई 2025
- सायंकालीन पूजा मुहूर्त: शाम 04:21 बजे से 07:03 बजे तक
- व्रत पारण (उपवास तोड़ने का समय): सोमवार, 12 मई 2025 को सूर्योदय के बाद
नरसिंह जयंती का धार्मिक और पौराणिक महत्व
नरसिंह जयंती केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह एक दैवीय हस्तक्षेप का प्रतीक है। यह दिन उस समय की याद दिलाता है जब हिरण्यकश्यप जैसे राक्षसी प्रवृत्ति वाले राजा के विरुद्ध बालक प्रह्लाद की सच्ची भक्ति ने भगवान विष्णु को नरसिंह रूप में प्रकट होने को विवश कर दिया। भगवान ने चतुर्मुख रूप में, न तो मानव और न ही पशु रूप में, सूर्यास्त के समय, घर के दरवाजे की देहली पर, अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध किया – जिससे ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए वरदान की शर्तें भी नहीं टूटीं और अधर्म का अंत भी हुआ।
नरसिंह जयंती व्रत और पूजन विधि (विस्तारपूर्वक)
इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजन करने से जीवन में भय, संकट, रोग, क्लेश और मानसिक तनाव दूर होता है। यहां जानिए पूजा की संपूर्ण विधि:
स्नान और संकल्प
- प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- मन, वाणी और कर्म से शुद्ध रहकर व्रत का संकल्प लें- मैं श्री नरसिंह भगवान की कृपा प्राप्ति हेतु चतुर्दशी व्रत एवं पूजन का संकल्प करता/करती हूँ।
पूजा स्थल की तैयारी
- पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- एक चौकी पर लाल या पीले रंग का स्वच्छ कपड़ा बिछाएं।
- भगवान नरसिंह की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि नरसिंह की प्रतिमा उपलब्ध न हो, तो भगवान विष्णु का चित्र भी मान्य है।
भगवान नरसिंह का पंचामृत अभिषेक
- प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से स्नान कराएं।
- इसके बाद स्वच्छ जल से स्नान कराकर वस्त्र अर्पित करें।
श्रृंगार और भोग
- भगवान को चंदन, केसर, हल्दी, कुमकुम से तिलक करें।
- उन्हें पीले या लाल वस्त्र पहनाएं।
- पीले फूलों की माला और तुलसी दल अर्पित करें।
- भोग में गुड़-चना, फल, मिठाई और पंचामृत अर्पण करें।
दीप प्रज्वलन और मंत्र जाप
- घी का दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
निम्न मंत्रों का 108 बार जाप करें
- ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नमः।
- ॐ उग्रवीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
- नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥
आरती और क्षमा प्रार्थना
- भगवान नरसिंह की आरती करें और साष्टांग दंडवत प्रणाम करें।
- पूजा के दौरान जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
दान और सेवा
- अपने सामर्थ्य अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, तिल, और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करें।
- गौ सेवा, निर्धन भोजन, मंदिर सेवा इत्यादि करना विशेष पुण्यदायक होता है।
नरसिंह अवतार की कथा
पुराणों के अनुसार, हिरण्यकश्यप एक असुर राजा था जिसे ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि वह न तो किसी मनुष्य से मरेगा, न पशु से, न दिन में मरेगा, न रात में, न आकाश में, न जमीन पर, न घर में, न बाहर, न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह बहुत अहंकारी हो गया और खुद को भगवान मानने लगा। उसने सभी को आदेश दिया कि वे उसकी पूजा करें और भगवान विष्णु की भक्ति से दूर रहें।
लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हर समय विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। हिरण्यकश्यप ने कई बार उसे समझाने, डराने और मारने की कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद टस से मस नहीं हुआ। अंत में, क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा, तेरा विष्णु कहां है? प्रह्लाद ने कहा, वह सर्वत्र है – हर जगह।
हिरण्यकश्यप ने क्रोध में एक खंभे की ओर इशारा करते हुए पूछा, "क्या वह इस खंभे में भी है? प्रह्लाद ने उत्तर दिया – हां। तभी भगवान विष्णु ने खंभे को चीरते हुए नरसिंह रूप में अवतार लिया:
- न वह पूर्ण मनुष्य थे, न पूर्ण पशु (सिंह-मुख और मानव शरीर)।
- उन्होंने हिरण्यकश्यप को गोधूलि बेला में (ना दिन, ना रात),
- घर की चौखट पर (ना घर के अंदर, ना बाहर),
- गोद में उठाकर (ना जमीन पर, ना आकाश में),
- और नाखूनों से फाड़कर (ना अस्त्र, ना शस्त्र) उसका वध किया।
इस तरह भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के वरदान को तोड़े बिना ही अधर्म का नाश किया और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
नरसिंह जयंती के लाभ और प्रभाव
- इस दिन व्रत रखने से भय, रोग और आकस्मिक संकटों से मुक्ति मिलती है।
- शत्रु बाधा, ग्रह दोष, वास्तु दोष एवं बुरी शक्तियों से रक्षा होती है।
- मानसिक बल, आत्मविश्वास और अध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
- नरसिंह मंत्रों का जाप जीवन में सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
भारत के प्रमुख नरसिंह मंदिर
- सिंहाचलम मंदिर (आंध्र प्रदेश)
- अहोबिलम नरसिंह मंदिर (तेलंगाना)
- यदगिरीगुट्टा मंदिर (हैदराबाद)
- मंगलगिरी नरसिंह मंदिर (विजयवाड़ा)
- दुर्गापुर नरसिंह मंदिर (पश्चिम बंगाल)
नरसिंह जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि ईश्वर की शक्ति, न्याय, भक्ति और साहस का संदेश है। यह दिन हमें सिखाता है कि सत्य और श्रद्धा की विजय निश्चित है, चाहे संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो। इस पावन अवसर पर भगवान नरसिंह की उपासना करके हम अपने जीवन के संकटों से छुटकारा पा सकते हैं और दिव्य सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।