Chicago

बेतला राष्ट्रीय उद्यान: झारखंड की जैव विविधता का अनमोल खजाना

🎧 Listen in Audio
0:00

झारखंड राज्य में स्थित बेतला राष्ट्रीय उद्यान अपनी समृद्ध जैव विविधता और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के कारण पर्यावरणीय और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उद्यान राज्य के पश्चिमी सिंहभूम जिले में, खूबसूरत पलामू क्षेत्र में स्थित है। बेतला को पहले पलामू अभ्यारण्य के नाम से जाना जाता था, लेकिन 1986 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ। यह राष्ट्रीय उद्यान न केवल वन्यजीवों का आदर्श आवास है, बल्कि यह पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण केंद्र है।
 
स्थान और इतिहास

बेतला राष्ट्रीय उद्यान झारखंड राज्य के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है और यह 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत भारत के पहले 9 टाइगर रिजर्व में शामिल किया गया था। यह पार्क पलामू जिले के निकट स्थित है, और इसका नाम "BETLA" उस क्षेत्र के वृक्षों के नामों के पहले अक्षरों से लिया गया है — Bamboo, Elephant, Teak, Lac, and Arjun।

प्राकृतिक संरचना और जैव विविधता

बेतला राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 1026.23 वर्ग किलोमीटर है और यह हिमालयी घाटी और चोटानागपुर पठार के बीच स्थित है। यहां की भौगोलिक स्थिति और पारिस्थितिकी की विविधता के कारण यह क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है। यह उद्यान न केवल वन्यजीवों के लिए आदर्श निवास स्थान प्रदान करता है, बल्कि यहां कई नदी-नाले, जलप्रपात और घने जंगल भी हैं, जो पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

बेतला का पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का संरक्षण करता है, जिसमें उष्णकटिबंधीय गीले जंगल, शुष्क दलदली क्षेत्र, और घास के मैदान शामिल हैं। इन पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में हिरण, हाथी, बाघ, तेंदुआ, सांभर, जंगली सूअर और काले भालू जैसी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

वन्यजीवों का संरक्षण और संघर्ष

बेतला राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीवों की प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहां के हाथी झारखंड के वन्यजीवों में सबसे प्रमुख हैं। हालांकि, बेतला में हाथियों की संख्या में उतार-चढ़ाव आया है, लेकिन अब इस क्षेत्र को संरक्षण की दृष्टि से एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में माना जाता है। यहाँ लगभग 50 से 60 हाथियों का स्थायी समूह रहता है।

बेतला में बाघों की संख्या भी बढ़ी है, और यहाँ टाइगर रिजर्व क्षेत्र का संरक्षण भारतीय बाघों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, जंगली सूअर, सांभर, चीतल, काले भालू, और नकली काले भालू जैसी प्रजातियाँ भी इस क्षेत्र में पाई जाती हैं।

यहां के पक्षी प्रेमियों के लिए भी एक आदर्श स्थल है, क्योंकि यहाँ सारस, गुलाबी पक्षी, पेलिकन, और हेरॉन जैसी दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

पर्यटन और गतिविधियाँ

बेतला राष्ट्रीय उद्यान न केवल वन्यजीवों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख स्थल बन चुका है। यहां आने वाले पर्यटकों को जीप सफारी, ट्रैकिंग, और बर्ड वॉचिंग जैसी गतिविधियों का आनंद लेने का अवसर मिलता है। इन गतिविधियों के माध्यम से पर्यटक न केवल वन्यजीवों को देख सकते हैं, बल्कि यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनुभव कर सकते हैं।

बेतला सफारी में पर्यटक हाथियों, बाघों, और अन्य वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देख सकते हैं। इसके अलावा, गंगा नदी और कटकमघाट जलप्रपात जैसे स्थलों पर भी पर्यटक अपनी यात्रा का आनंद ले सकते हैं।

इसके अलावा, बेतला में नदी पार करने के ट्रैकिंग रूट्स और गहरी वन यात्राएँ भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्रैकिंग मार्गों पर जाकर पर्यटक दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव-जंतु देख सकते हैं।

जैव विविधता का खजाना

बेतला राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाने वाली जैव विविधता इसे भारत के प्रमुख वन्यजीव स्थलों में शुमार करती है। यहां आप कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों को देख सकते हैं:

मुख्य स्तनधारी प्रजातियां

  • बंगाल टाइगर (हालांकि दुर्लभ दृश्य)
  • हाथी
  • चीतल (स्पॉटेड डियर)
  • सम्भर हिरण
  • नीलगाय
  • भालू
  • लंगूर और मकाक बंदर
  • भेड़िया और जंगली कुत्ते

पक्षी प्रजातियां

बेतला पक्षी प्रेमियों के लिए भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां बया, मोर, हॉर्नबिल, लकड़बग्घा, उल्लू, गिद्ध, कठफोड़वा जैसी सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं।

  • मॉनिटर लिज़र्ड
  • कोबरा
  • पायथन
  • और अनेक प्रजातियों के कीट-पतंगे और तितलियां

संरक्षण प्रयास और स्थानीय समुदाय की भूमिका

बेतला राष्ट्रीय उद्यान का संरक्षण भारतीय वन्यजीवों के संरक्षण में एक प्रमुख योगदान देता है। यहां के राष्ट्रीय उद्यान और रिजर्व फॉरेस्ट के तहत वन्यजीवों की सुरक्षा की जाती है। इसके साथ ही, यहाँ गुप्त संरक्षित क्षेत्र, सिंह स्थल, और हाथी अभ्यारण्य जैसी संरचनाएँ बनाई गई हैं, जो जैविक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं।

झारखंड सरकार और विभिन्न वन्यजीव संरक्षण संगठन इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को भी इस संरक्षण प्रयास में शामिल किया गया है, ताकि वे प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग कर सकें और क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रख सकें।

Leave a comment