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भारत का महासागरीय चमत्कार: ‘समुद्रयान’ से खोले जाएंगे 6000 मीटर गहराई के रहस्य, जानें कब होगा लॉन्च?

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राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने मंगलवार को जानकारी दी कि गहरे समुद्र में भेजे जाने वाली मानवयुक्त पनडुब्बी वर्ष 2026 के अंत तक रवाना हो सकती है। 

नई दिल्ली: भारत वैज्ञानिक शोध और तकनीकी प्रगति की दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम बढ़ाने जा रहा है। अब तक अंतरिक्ष में परचम लहराने वाले भारत की निगाहें अब गहराइयों में छिपे महासागरों के रहस्यों पर टिकी हैं। 'समुद्रयान' नामक यह मिशन देश का पहला मानवयुक्त गहरे समुद्र अभियान होगा, जो समुद्र की सतह से 6000 मीटर (6 किलोमीटर) नीचे तक जाकर अनदेखी दुनिया का पता लगाएगा।

इस अभियान को राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है और इसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के निर्देशन में 2026 के अंत तक लॉन्च किए जाने की योजना है। संस्थान के निदेशक डॉ. बालाजी रामकृष्णन ने इसकी पुष्टि की है।

इंसान जाएंगे महासागर की गहराई में

समुद्रयान के जरिए तीन वैज्ञानिकों को गहरे समुद्र की यात्रा पर भेजा जाएगा, जहां वे समुद्र की संरचना, जैव विविधता, खनिज और पोषण से भरपूर जलवायु तंत्र का अध्ययन करेंगे। यह एक 25 टन भारी, चौथी पीढ़ी की सबमर्सिबल (पनडुब्बी) होगी, जिसकी बनावट में अत्याधुनिक टाइटेनियम हुल (पतवार) का उपयोग किया गया है। इसका डिजाइन अत्यधिक जलदाब और तापमान को सहन करने की क्षमता रखता है।

मिशन की विशेषताएं

  • 6000 मीटर गहराई तक इंसान भेजने की क्षमता
  • पनडुब्बी में तीन वैज्ञानिक होंगे सवार
  • 8 घंटे तक रहेगा समुद्र के भीतर का अभियान (4 घंटे अंदर जाने और 4 घंटे बाहर आने में)
  • उच्च दबाव और अंधेरे वातावरण में भी काम करने की क्षमता
  • नमूने संग्रह, जैव विविधता की पहचान, और खनिज मूल्यांकन जैसे महत्वपूर्ण कार्य करेगा

भारत को मिलेगा वैश्विक समुद्र विज्ञान में नया मुकाम

डॉ. रामकृष्णन का मानना है कि यह मिशन भारत के समुद्र विज्ञान और गहरे समुद्री अनुसंधान में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। अब तक गहरे समुद्रों की खोज अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन जैसे सीमित देशों तक ही सीमित रही है। भारत का यह प्रयास उसे गहरे समुद्र अनुसंधान के वैश्विक मंच पर सशक्त रूप से प्रस्तुत करेगा। समुद्रयान की पूर्ण लॉन्चिंग से पहले इसे 500 मीटर की गहराई तक परीक्षण के तौर पर भेजा जाएगा। यह परीक्षण इस साल के अंत तक प्रस्तावित है। 

इसके सफल होने के बाद अगला कदम 6000 मीटर की गहराई में मानव को भेजने का होगा। 'समुद्रयान' मिशन के साथ-साथ भारत ने गहरे समुद्र में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी युक्त मछली पिंजरा प्रणाली भी विकसित की है। यह तकनीक मछली की वृद्धि, जैवमास और जल गुणवत्ता को रीयल टाइम में मापने में सक्षम है। इस पहल से भारत की समुद्री खाद्य सुरक्षा को एक नई दिशा मिलेगी और ब्लू इकोनॉमी को बल मिलेगा।

क्यों है यह मिशन महत्वपूर्ण?

  • समुद्री जैव विविधता का मूल्यांकन: गहराई में छिपी अनोखी प्रजातियों की पहचान हो सकेगी।
  • खनिज संसाधनों की खोज: समुद्र की तलहटी में मौजूद मूल्यवान धातुएं और खनिजों की जानकारी मिलेगी।
  • जलवायु परिवर्तन के संकेत: समुद्र के गहरे स्तरों से वातावरण में हो रहे बदलावों को समझने में मदद मिलेगी।
  • समुद्री पर्यटन और रक्षा क्षेत्र में योगदान: भविष्य में गहरे समुद्र पर्यटन और सामरिक रणनीति में यह ज्ञान मददगार हो सकता है।

‘समुद्रयान’ सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि यह भारत की वैश्विक विज्ञान में नई पहचान बनाने की दिशा में किया गया अद्वितीय प्रयास है। जिस तरह चंद्रयान और गगनयान ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, उसी तरह ‘समुद्रयान’ हमें महासागर की गहराइयों में छिपी संभावनाओं से जोड़ने का कार्य करेगा।

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