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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय, अब आश्रित पति भी पाएंगे मुआवजा, जानें क्या है पूरा मामला?

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सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी महिला के पति को केवल इसलिए आश्रित मानने से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक सक्षम (शारीरिक रूप से स्वस्थ) पुरुष है। 

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई पति अपनी पत्नी की आय पर निर्भर था और उसका खुद का आय स्रोत नहीं था, तो उसे भी मुआवजे का हकदार माना जाएगा। यह निर्णय समाज में पारंपरिक सोच को चुनौती देता है, जिसमें अक्सर यह मान लिया जाता है कि पति हमेशा कमाने वाला होता है और पत्नी उस पर निर्भर होती है। इस फैसले ने मुआवजा मामलों में 'आश्रित' शब्द की परिभाषा को और व्यापक बना दिया है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 22 फरवरी 2015 को हुए एक सड़क हादसे से जुड़ा है। एक महिला बाइक पर पीछे बैठी थी और हादसे में गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गई थी। इलाज के दौरान दो दिन बाद उसकी मौत हो गई। महिला के पति और दो नाबालिग बच्चों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष मुआवजे का दावा पेश किया।

MACT ने अपने निर्णय में कहा कि मृतका के पति को मुआवजा नहीं मिल सकता क्योंकि वह 40 वर्ष का "सक्षम पुरुष" है और इसलिए उसे आश्रित नहीं माना जा सकता। केवल बच्चों को आश्रित मानते हुए मुआवजा दिया गया। इस फैसले को बीमा कंपनी ने भी चुनौती दी और मामला पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन शामिल थे, ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि सिर्फ यह कहना कि पति सक्षम है, पर्याप्त नहीं है। यदि उसके पास आय का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, तो उसे अपनी पत्नी की आमदनी पर निर्भर माना जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल उसके लिंग और आयु के आधार पर स्वचालित रूप से आत्मनिर्भर मान लेना न्यायसंगत नहीं है। यदि कोई पुरुष आर्थिक रूप से अपनी पत्नी पर निर्भर था, और उसकी आय का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, तो उसे आश्रित मानना चाहिए। इस आधार पर कोर्ट ने पति और दोनों बच्चों को आश्रित मानते हुए कुल 17 लाख 84 हजार रुपये का मुआवजा निर्धारित किया।

कानूनी व्याख्या का विस्तार

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह दोहराया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत "कानूनी प्रतिनिधि" और "आश्रित" जैसे शब्दों की व्याख्या संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं की जानी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि मुआवजे का अधिकार उन सभी को होना चाहिए जो मृतक की आमदनी पर आर्थिक रूप से निर्भर थे, चाहे उनका कानूनी संबंध पारंपरिक ढांचे में परिभाषित हो या नहीं।

यह निर्णय भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, खासतौर पर मुआवजे से जुड़े मामलों में। यह उन पुरुषों के लिए एक राहत की खबर है जो विभिन्न कारणों से कमाई नहीं कर पा रहे थे और अपने जीवनसाथी की आय पर निर्भर थे। इससे समाज में लैंगिक बराबरी की दिशा में एक और कदम बढ़ा है।

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