सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने वक्फ कानून पर कहा कि वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। यह सिर्फ एक दान की प्रक्रिया है। वक्फ बोर्ड धर्मनिरपेक्ष निकाय है, जिसमें गैर मुस्लिमों की नियुक्ति जायज़ है।
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून को लेकर बुधवार को अहम सुनवाई हुई, जिसमें केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा कि वक्फ केवल एक इस्लामिक अवधारणा है, लेकिन इसे इस्लाम का "अनिवार्य हिस्सा" नहीं माना जा सकता। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में यह दलील दी। उन्होंने कहा कि "वक्फ" का मतलब इस्लाम में केवल दान से है और दान तो हर धर्म में होता है। ऐसे में इसे मजहबी अधिकार नहीं कहा जा सकता।
वक्फ बाय यूजर को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता
तुषार मेहता ने आगे कहा कि वक्फ बाय यूजर कोई Fundamental Right नहीं है, बल्कि यह सिर्फ एक वैधानिक व्यवस्था (Statutory Provision) है, जिसे कानून बनाकर या बदलकर हटाया भी जा सकता है। यह किसी भी समुदाय को संविधान से मिला हुआ मौलिक अधिकार नहीं है।
इसलिए, केंद्र का मानना है कि इस कानून को पूरी तरह धार्मिक भावना से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि वक्फ संपत्तियां कई बार धर्मनिरपेक्ष उपयोग जैसे स्कूल, अस्पताल या अनाथालय के रूप में भी होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में सुनवाई जारी
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ कर रही है। सुनवाई वक्फ अधिनियम 1995 की वैधता और इसकी कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं के सिलसिले में हो रही है।
कई याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि वक्फ अधिनियम संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह सिर्फ एक धर्म विशेष के लिए कानून बनाता है। इस पर केंद्र की सफाई आई है कि वक्फ कानून धर्मनिरपेक्ष तरीके से काम करता है और इसका उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण है।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति को बताया जायज़
एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब सॉलिसिटर जनरल ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड केवल धार्मिक संस्था नहीं है, बल्कि यह एक धर्मनिरपेक्ष निकाय है, जो स्कूल, अस्पताल, अनाथालय आदि के संचालन जैसे काम करता है। ऐसे में इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
हिंदू बंदोबस्ती और वक्फ में अंतर पर दी गई सफाई
सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती और मुस्लिम वक्फ संपत्ति के बीच के फर्क को भी समझाया। उन्होंने कहा कि हिंदू बंदोबस्ती पूरी तरह से धार्मिक होती है, जैसे मंदिर में पुजारी की नियुक्ति, जिसे सरकारी अधिकारी कर सकते हैं। लेकिन वक्फ संपत्ति मस्जिद, दरगाह के अलावा स्कूल और अस्पताल भी हो सकती है, जो धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों से जुड़ी होती है।
याचिकाकर्ताओं ने क्या सवाल उठाए?
इस पूरे मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ अधिनियम एकतरफा है और यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ है। वे मांग कर रहे हैं कि इस कानून की समीक्षा हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी धर्मों के लिए समान कानून हों।