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हार्वर्ड विवाद: अरबों दान के बाद भी भारतीय छात्रों के लिए बंद हुए अमेरिकी यूनिवर्सिटीज के दरवाज़े

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भारतीयों ने हार्वर्ड व अन्य अमेरिकी यूनिवर्सिटीज को अरबों का दान दिया, लेकिन ट्रंप सरकार ने 7,000 विदेशी छात्रों को ट्रांसफर या वीजा खत्म करने का आदेश दिया, जिससे भारतीय छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।

Indian Donations US: पिछले कुछ दशकों में भारतीय उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों और व्यवसायियों ने अमेरिका की टॉप यूनिवर्सिटियों को बड़ी मात्रा में दान दिया है। हार्वर्ड, MIT, UCLA और NYU जैसे नामी संस्थानों को भारतीयों की ओर से करोड़ों डॉलर का सहयोग मिला है। इन दानों का मकसद शिक्षा, रिसर्च और ग्लोबल सॉल्यूशंस को मजबूत करना रहा है। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन की नई नीति ने इंटरनेशनल स्टूडेंट्स, खासकर भारतीयों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।

ट्रंप सरकार का इंटरनेशनल स्टूडेंट्स पर सख्त रुख

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीन के समर्थन और इजरायल के विरोध में लगातार हो रहे प्रदर्शन ट्रंप प्रशासन को नागवार गुजरे हैं। इन प्रदर्शनों और यूनिवर्सिटी की स्वतंत्र नीति के चलते व्हाइट हाउस ने पहले तो यूनिवर्सिटी की फंडिंग रोक दी और अब इंटरनेशनल छात्रों को बाहर निकालने की तैयारी कर ली है।

करीब 7,000 विदेशी छात्र, जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय भी शामिल हैं, को आदेश दिया गया है कि वे या तो दूसरे स्कूल में ट्रांसफर लें या अमेरिका छोड़ दें। यह आदेश उनकी वैध स्टे पर्मिट को रद्द करने जैसा है।

भारतीयों ने अमेरिकी शिक्षा संस्थानों को कितना दिया दान?

आनंद महिंद्रा – महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन ने हार्वर्ड के महिंद्रा ह्यूमैनिटीज सेंटर के लिए $10 मिलियन (₹83 करोड़) दान किए।

रतन टाटा – टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन ने 2010 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में टाटा हॉल के निर्माण के लिए $50 मिलियन (₹415 करोड़) दिए।

डॉ. किरण और डॉ. पल्लवी पटेल – फ्लोरिडा की नोवा साउथईस्टर्न यूनिवर्सिटी को $50 मिलियन और यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा को $30.5 मिलियन, कुल ₹1300 करोड़ से अधिक का दान। इस फंड से फ्लोरिडा और भारत में मेडिकल कॉलेज भी बने।

गुरुराज देशपांडे – MIT के टेक्नोलॉजी इनोवेशन सेंटर के लिए $20 मिलियन (₹166 करोड़)। 2011 में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू ब्रंसविक (कनाडा) को $2.5 मिलियन (₹20 करोड़)।

मणि एल. भौमिक – UCLA को $11 मिलियन (₹91 करोड़) और बाद में $3 मिलियन का अतिरिक्त दान, कुल ₹127 करोड़।

चंद्रिका टंडन – NYU के इंजीनियरिंग स्कूल को $100 मिलियन (₹830 करोड़), अब यह NYU टंडन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग कहलाता है।

मुकुंद पद्मनाभन – UCLA को माइक्रोसिस्टम्स लैब के लिए $2.5 मिलियन (₹20 करोड़), तीन बार $5 लाख (₹4 करोड़) अतिरिक्त सहयोग।

विनोद गुप्ता – यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का, GWU और अन्य संस्थानों को कुल ₹50 करोड़ से अधिक का दान।

एक ओर भारतीय दानदाता अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उसी शिक्षा व्यवस्था से उनके ही बच्चे बाहर किए जा रहे हैं।

भारतीय छात्रों पर असर

इन नीतियों का सीधा असर उन हज़ारों भारतीय छात्रों पर पड़ेगा जो अमेरिकी यूनिवर्सिटियों में उच्च शिक्षा के लिए गए हैं। F1 वीजा वाले छात्र, जिनकी पढ़ाई अब बाधित हो रही है, अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं।

क्या इस फैसले के पीछे राजनीति है?

ट्रंप प्रशासन की इस नीति को अमेरिकी राजनीति और मध्य-पूर्व मुद्दों से जोड़कर देखा जा रहा है। हार्वर्ड जैसे संस्थानों में फिलिस्तीन के समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों ने प्रशासन को नाराज़ किया है। यह कदम उन संस्थानों को सबक सिखाने की कोशिश है, जो प्रशासन की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं।

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