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गया सेंट्रल जेल की पहली और आखिरी फांसी: शहीद बने स्वतंत्रता सेनानी बैकुंठ शुक्ल

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गया सेंट्रल जेल में 14 मई 1934 को शहीद हुए बैकुंठ शुक्ल को महज 27 साल की उम्र में फांसी दी गई थी, और यह सजा इस जेल की पहली और आखिरी फांसी थी। बैकुंठ शुक्ल का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अहम स्थान रखता है। अब, स्थानीय लोग यह मांग कर रहे हैं कि जिस तरह मुजफ्फरपुर और भागलपुर सेंट्रल जेल का नाम शहीदों के नाम पर रखा गया है, वैसे ही गया सेंट्रल जेल का नाम भी शहीद बैकुंठ शुक्ल के नाम पर रखा जाए, ताकि उनके योगदान को सम्मान मिल सके।

बैकुंठ शुक्ल का प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

बैकुंठ शुक्ल का जन्म 1860 में वैशाली जिले के जलालपुर गांव में हुआ था। बचपन से ही वे स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित थे और जल्द ही अपने परिवार के सदस्य योगेंद्र शुक्ला के संपर्क में आकर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। योगेंद्र शुक्ला, शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथ सक्रिय रहे थे, और हाजीपुर का गांधी आश्रम उस समय क्रांतिकारियों का एक प्रमुख केंद्र था, जहां देशभर के क्रांतिकारी एकत्र होते थे।

भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी

8 अप्रैल 1929 को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने दिल्ली असेंबली में बम फोड़ा था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत को देश की आवाज सुनाना था। इसके बाद अंग्रेज सरकार ने सैकड़ों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया और उन पर अत्याचार किए। फणीन्द्रनाथ घोष जैसे कुछ क्रांतिकारी अंग्रेजों के जुल्मों के आगे टूटकर सरकारी गवाह बन गए। उनकी गवाही के आधार पर शहीद भगत सिंह सहित कई अन्य क्रांतिकारी गिरफ्तार हुए और उन्हें सजा मिली।

फणीन्द्रनाथ घोष की हत्या

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनी जान की बाजी लगाने वाले क्रांतिकारी बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह ने फणीन्द्रनाथ घोष को मौत के घाट उतारने का साहसिक कदम उठाया। फणीन्द्रनाथ घोष को सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेतिया भेजा गया था। बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह ने साइकिल से बेतिया का रुख किया और वहां मीना बाजार में फणीन्द्रनाथ घोष को पकड़ लिया और उनकी हत्या कर दी। पुलिस ने बाजार में खड़ी साइकिल और धोती को पहचानकर दोनों को गिरफ्तार किया और उन्हें जेल भेज दिया।

बैकुंठ शुक्ल की शहादत

ट्रायल के दौरान, बैकुंठ शुक्ल ने पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए चंद्रमा सिंह को चुप करा लिया और फणीन्द्रनाथ घोष की हत्या का पूरा दोष अपने ऊपर ले लिया। इसके बाद बैकुंठ शुक्ल को गया सेंट्रल जेल में भेजा गया, जहां 14 मई 1934 को उन्हें फांसी दी गई। उनका यह शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उस सशक्त अध्याय का प्रतीक बन गया, जब क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर देश की स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष को अमर किया। बैकुंठ शुक्ल का बलिदान आज भी उन साहसी सेनानियों के जज़्बे और निष्ठा की मिसाल पेश करता है, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति दी।

पार्क के कायाकल्प की मांग

गया में हर साल 14 मई को बैकुंठ शुक्ल के शहादत दिवस के मौके पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस बार भी 14 मई को गया के एपी कॉलोनी स्थित चाणक्यपुरी में शहीद बैकुंठ शुक्ल के नाम से बने पार्क में उनका 90वां शहादत समारोह आयोजित किया गया। इस मौके पर समाजसेवियों और स्थानीय नागरिकों ने शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की।

हालांकि, कार्यक्रम के दौरान यह देखा गया कि पार्क में आवश्यक सुविधाओं और लाइटिंग की कमी है, जिससे वहां आने वाले लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। इस पर समाजसेवी लालजी प्रसाद, रंजीत सिंह और गजेंद्र सिंह ने जिला प्रशासन, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और राज्य सरकार से मांग की है कि इस ऐतिहासिक पार्क का कायाकल्प किया जाए। उनका कहना है कि इस पार्क को शहीदों की स्मृतियों के अनुरूप सजाया जाए, ताकि बैकुंठ शुक्ल जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी की यादें और सम्मान हर आने वाले पीढ़ी तक पहुंच सके।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • बैकुंठ शुक्ल को 14 मई 1934 को केवल 27 वर्ष की आयु में फांसी की सजा दी गई।
  • यह सजा गया सेंट्रल जेल की पहली और आखिरी फांसी थी।
  • बैकुंठ शुक्ल का बलिदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • गया सेंट्रल जेल का नाम बैकुंठ शुक्ल के नाम पर रखने की स्थानीय लोगों ने की मांग।
  • 90वें शहादत दिवस पर पार्क के कायाकल्प की मांग की गई, ताकि शहीद बैकुंठ शुक्ल की यादें सम्मानित की जा सकें।

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