Chicago

5G नेटवर्क से नहीं है इंसानों को कोई खतरा: वैज्ञानिकों की नई रिसर्च ने फवाहों को किया खारिज

🎧 Listen in Audio
0:00

जब से भारत और दुनिया में 5G तकनीक की शुरुआत हुई है, तब से इसके फायदे तो चर्चा में रहे ही हैं, लेकिन साथ ही इससे जुड़े खतरे भी बहस का विषय बनते रहे हैं। खासकर सोशल मीडिया और कुछ अफवाह फैलाने वाले प्लेटफॉर्म्स पर यह दावा किया गया कि 5G नेटवर्क की तरंगें न केवल पक्षियों के लिए जानलेवा हैं, बल्कि इंसानों के लिए भी हानिकारक हो सकती हैं। ऐसे दावे लोगों के मन में डर पैदा करते रहे हैं, जिससे तकनीक को लेकर संशय की स्थिति बनी रही। लेकिन अब वैज्ञानिकों की एक ताज़ा रिसर्च ने इस भ्रम को पूरी तरह साफ कर दिया है।

5G और इंसानी शरीर: क्या सच में कोई खतरा?

5G यानी फिफ्थ जनरेशन नेटवर्क, इंटरनेट की वो नई तकनीक है जो बेहद तेज़ स्पीड और बहुत कम रुकावट के साथ डेटा ट्रांसफर करने की क्षमता रखती है। लेकिन जब से 5G तकनीक आई है, तब से यह चर्चा में रही है कि इसकी तरंगें यानी रेडियो वेव्स, इंसानी शरीर खासकर त्वचा की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती हैं। कई लोगों को डर था कि ये रेडिएशन शरीर के अंदर जाकर हमारे डीएनए या जीन को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।

इन्हीं आशंकाओं को दूर करने के लिए जर्मनी की कंस्ट्रक्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक गहरी रिसर्च की। इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने इंसानी त्वचा की कोशिकाओं को 5G की हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स के संपर्क में रखा। रिसर्च के नतीजे काफी राहत देने वाले रहे क्योंकि इसमें पाया गया कि इन तरंगों का डीएनए या जीन की गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ा। इसका साफ मतलब है कि सामान्य स्थिति में 5G तकनीक इंसानी शरीर के लिए खतरनाक नहीं है।

रिसर्च में किस तरह किया गया परीक्षण?

इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने इंसानी त्वचा की दो प्रमुख कोशिकाओं – केराटिनोसाइट्स और फाइब्रोब्लास्ट – को चुना। इन कोशिकाओं को 27 GHz और 40.5 GHz की हाई-फ्रीक्वेंसी 5G तरंगों के संपर्क में 2 से 48 घंटे तक रखा गया। इसका मकसद यह जांचना था कि थोड़े या लंबे समय तक इन तरंगों के संपर्क में रहने से सेल्स पर कोई असर होता है या नहीं।

रिसर्च टीम ने खासतौर पर इन कोशिकाओं के डीएनए और जीन एक्टिविटी पर ध्यान दिया। वे यह जानना चाहते थे कि क्या 5G सिग्नल की तरंगें शरीर की जेनेटिक संरचना को नुकसान पहुंचा सकती हैं या उसमें कोई बदलाव ला सकती हैं।

नतीजे: DNA पर नहीं पड़ा कोई प्रभाव

रिसर्च के नतीजे काफी राहत देने वाले हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि जब स्किन सेल्स को 5G की हाई-फ्रीक्वेंसी तरंगों के संपर्क में लाया गया, तब भी उनके DNA में कोई नुकसान नहीं हुआ। खासकर DNA methylation में कोई बदलाव नहीं देखा गया, जो यह तय करता है कि जीन कैसे काम करेंगे।

आसान भाषा में कहें तो 5G रेडिएशन से इंसानी शरीर की कोशिकाएं बिल्कुल सुरक्षित रहीं। न तो जीन की बनावट बदली और न ही सेल्स को कोई तनाव या खतरा महसूस हुआ। इसका मतलब यह है कि 5G तकनीक से इंसानों को किसी तरह का जेनेटिक नुकसान नहीं होता।

तापमान का प्रभाव: एकमात्र चेतावनी

वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि अगर 5G की तरंगें बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करें तो यह शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं। लेकिन इस रिसर्च में तापमान को पूरी तरह से कंट्रोल में रखा गया था, ताकि कोई अतिरिक्त गर्मी न बढ़े। इसलिए जब तक शरीर में ज्यादा गर्मी नहीं होती, 5G की तरंगें सुरक्षित रहती हैं।

इसका मतलब यह है कि अगर आपका फोन या नेटवर्क बहुत ज़्यादा गर्म नहीं होता, तो आपको 5G से डरने की जरूरत नहीं है। सामान्य हालत में 5G तकनीक इंसानों के लिए बिल्कुल सुरक्षित है और इससे कोई खतरा नहीं होता।

रिसर्च का वैज्ञानिक महत्व और प्रकाशन

यह रिसर्च PNAS Nexus नामक एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुई है, जो दुनियाभर के वैज्ञानिकों के बीच बहुत प्रसिद्ध और भरोसेमंद मानी जाती है। इस जर्नल में केवल ऐसे शोध को जगह मिलती है जो गहराई से जांचे गए हों और जिनमें पारदर्शिता हो। इसलिए इस अध्ययन की सटीकता और विश्वसनीयता को बहुत महत्व दिया जाता है। शोध में उपयोग किए गए तरीके और परिणामों की स्पष्टता ने इसे और भी भरोसेमंद बना दिया है।

अब जब वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि 5G तकनीक से इंसानी शरीर को कोई नुकसान नहीं होता, तो इस जानकारी को आम जनता तक पहुंचाना बेहद जरूरी हो गया है। इससे 5G को लेकर फैल रहे डर और गलतफहमियों को कम किया जा सकता है। लोगों को सही तथ्य समझाने से वे बिना किसी चिंता के नई तकनीक का इस्तेमाल कर सकेंगे और इसके फायदों का लाभ उठा पाएंगे। इस तरह वैज्ञानिक खोजें समाज के लिए सुरक्षित और लाभकारी साबित हो सकती हैं।

5G को लेकर फैली अफवाहों का अंत?

5G को लेकर बहुत सारी अफवाहें सामने आई हैं, जैसे कि यह पक्षियों की मौत का कारण बनता है, कैंसर फैलाता है, या बच्चों की सेहत पर बुरा असर डालता है। लेकिन इन सभी दावों का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। हाल ही में जर्मनी के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च की है जिसने इन सारी अफवाहों को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया है। इस अध्ययन में साफ किया गया है कि 5G नेटवर्क सामान्य और नियंत्रित परिस्थितियों में इंसानों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है और इससे स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता। इसलिए अब यह समझना जरूरी है कि 5G से जुड़ी डर और गलतफहमियां बेबुनियाद हैं।

भारत में 5G और जागरूकता की जरूरत

भारत में 5G नेटवर्क की सेवा शुरू हो चुकी है और लोग इसे लेकर काफी उत्साहित भी हैं। लेकिन इसके साथ ही कुछ जगहों पर अभी भी 5G को लेकर डर और गलतफहमियां फैली हुई हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों और उन इलाकों में जहां तकनीकी जानकारी कम है। वहां के लोग सोचते हैं कि 5G टावर की तरंगें स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं या बीमारियां फैला सकती हैं। ऐसे में सरकार और टेक कंपनियों का जिम्मा बनता है कि वे इस तरह की अफवाहों को खत्म करें और लोगों को सही जानकारी दें। वैज्ञानिक रिसर्च के प्रमाणों के जरिए लोगों को समझाना जरूरी है कि 5G पूरी तरह सुरक्षित तकनीक है और इससे कोई नुकसान नहीं होता। इससे न केवल लोगों का भरोसा बढ़ेगा बल्कि 5G के फायदे भी सही तरीके से पहुंच पाएंगे।

इस रिसर्च से जो सबसे अहम संदेश निकलकर सामने आया है, वह यह है कि नई तकनीकों से डरने की बजाय उन्हें समझना चाहिए। 5G नेटवर्क न केवल इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला रहा है, बल्कि यह हमारे जीवन को और भी स्मार्ट, तेज़ और सुविधाजनक बना रहा है। अगर इसके इस्तेमाल से कोई बड़ा स्वास्थ्य जोखिम होता, तो वैज्ञानिक और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाएं इसे कभी अनुमति नहीं देतीं।

Leave a comment