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दिल्ली विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम से हटाए विवादित विषय

दिल्ली विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम से हटाए विवादित विषय

डीन कार्यालय की ओर से भेजे गए ईमेल में यह साफ किया गया है कि NEP (नई शिक्षा नीति) के तहत तैयार किए गए UG और PG पाठ्यक्रमों की सभी सेमेस्टर यूनिट्स और रीडिंग लिस्ट से इन तीनों विषयों को पूरी तरह हटाया जाए।

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने दर्शनशास्त्र विभाग के स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों में बड़ा बदलाव करते हुए कुछ महत्वपूर्ण विचारकों और विषयों को हटाने का निर्देश जारी किया है। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से 12 जून 2025 को जारी निर्देश के अनुसार अब पाठ्यक्रम में प्रसिद्ध शायर और दार्शनिक मुहम्मद इकबाल, प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति और पाकिस्तान से संबंधित किसी भी प्रकार की सामग्री को शामिल नहीं किया जाएगा।

डीन ऑफ एकेडमिक अफेयर्स द्वारा भेजे गए ईमेल के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत किए जा रहे समायोजन का हिस्सा है। संबंधित विभागों को 16 जून तक पाठ्यक्रम की समीक्षा पूरी करने के निर्देश भी दिए गए हैं।

पाठ्यक्रम से हटाई जा रही हैं तीन प्रमुख विषय-वस्तुएं

दिल्ली विश्वविद्यालय के अनुसार, यह निर्णय विश्वविद्यालय परिसर में सामाजिक समरसता बनाए रखने की दृष्टि से लिया गया है। प्रशासन का कहना है कि समाज को विभाजित करने वाले या विवाद को जन्म देने वाले विषयों को उच्च शिक्षा के मंच से हटाना आवश्यक है। इस निर्णय के तहत जो तीन प्रमुख घटक हटाए जा रहे हैं, वे हैं:

  • मुहम्मद इकबाल से जुड़ी दर्शन और काव्य सामग्री
  • मनुस्मृति से संबंधित सामाजिक या नैतिक विमर्श
  • पाकिस्तान से संबंधित दार्शनिक अथवा राजनीतिक विश्लेषण

फिलॉसफी विभाग के सभी फैकल्टी सदस्यों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने-अपने कोर्स की रीडिंग लिस्ट और यूनिट्स की गहन समीक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि इनमें उपरोक्त विषयों की कोई उपस्थिति न हो।

इकबाल पर विवाद का पुराना इतिहास

मुहम्मद इकबाल को लेकर पहले भी विश्वविद्यालय में विवाद होते रहे हैं। इकबाल ने ही प्रसिद्ध देशभक्ति गीत सारे जहां से अच्छा लिखा था, परंतु बाद में वे पाकिस्तान के विचारधारात्मक आधार का हिस्सा बने और वहां के राष्ट्रीय कवि घोषित किए गए। वर्ष 2023 में पहले ही बीए ऑनर्स पॉलिटिकल साइंस कोर्स से इकबाल पर आधारित एक यूनिट को हटाया जा चुका है।

फिलॉसफी विभाग के कुछ शिक्षकों का मानना है कि इकबाल एक जटिल और बहुआयामी दार्शनिक रहे हैं, जिनकी रचनाओं और विचारों को पूरी तरह से हटाना ज्ञान के विस्तार में बाधक हो सकता है। हालांकि विश्वविद्यालय का यह तर्क है कि शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक एकता बनाए रखना भी है, इसलिए ऐसे विषयों को सीमित किया जाना चाहिए।

मनुस्मृति पर बढ़ती असहमति

प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति भी लंबे समय से सामाजिक और शैक्षणिक बहस का विषय रहा है। इसके भीतर वर्ण व्यवस्था और स्त्री अधिकारों से जुड़े कई विवादास्पद अंश हैं, जिन पर समय-समय पर दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई है। विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि इन अंशों को पढ़ाना छात्रों के मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकता है, खासकर जब वे समावेशी और प्रगतिशील दृष्टिकोण को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हों।

पाकिस्तान से जुड़ी सामग्री क्यों हटाई गई

विश्वविद्यालय के अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान वैश्विक और क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान से जुड़ी सामग्री को पाठ्यक्रम में शामिल करना राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकता है। यह निर्णय विशेषकर उन यूनिट्स पर केंद्रित है जो भारत-पाकिस्तान संबंधों या पाकिस्तान की वैचारिक संरचना पर आधारित थीं। प्रशासन का यह कहना है कि विश्वविद्यालय को एक गैर-राजनीतिक और समरस माहौल बनाए रखना चाहिए, जहां छात्र बिना किसी पक्षपात के ज्ञान अर्जित कर सकें।

बायोपॉलिटिक्स कोर्स भी रद्द

फिलॉसफी विभाग द्वारा प्रस्तावित नया कोर्स बायोपॉलिटिक्स भी इस बदलाव की जद में आ गया है। पहले इसे पॉलिटिकल साइंस से संबंधित बताकर खारिज किया गया और फिर इसे पूरी तरह से पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। कुछ शिक्षकों का मानना है कि यह विषय समकालीन दर्शन और समाजशास्त्र के लिए अत्यंत प्रासंगिक था, परंतु समय की कमी और विभागीय दबाव के चलते इसका विरोध नहीं हो सका।

सामाजिक एकता की ओर एक कदम

यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि यह निर्णय सिर्फ अकादमिक सामग्री के आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक एकता और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, वर्तमान समय में छात्रों के बीच विचारों की विविधता को स्वीकार करते हुए भी यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की असामंजस्य की स्थिति उत्पन्न न हो।

विश्वविद्यालय इस बात पर जोर दे रहा है कि भविष्य के पाठ्यक्रमों में गांधी, बुद्ध, स्वामी विवेकानंद और डॉ अंबेडकर जैसे भारतीय विचारकों को अधिक स्थान दिया जाएगा, ताकि छात्रों में नैतिक मूल्यों, समरसता और विवेकशीलता का विकास हो।

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