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दुर्गा अष्टमी शक्ति, श्रद्धा और स्त्री-सम्मान का पावन पर्व

दुर्गा अष्टमी शक्ति, श्रद्धा और स्त्री-सम्मान का पावन पर्व

भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का विशेष स्थान है, जो शक्ति की उपासना का पर्व है। इस नौदिवसीय महोत्सव का प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों को समर्पित होता है। इनमें से अष्टमी, जिसे महाअष्टमी भी कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना जाता है। यह दिन केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह नारी शक्ति, साहस और आत्मसम्मान का प्रतीक भी है।

दुर्गा अष्टमी शक्ति की उपासना का वह दिव्य दिन है, जब भक्तजन देवी दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप की आराधना करते हैं और उनसे शक्ति, ज्ञान और रक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन कन्या पूजन, हवन, जागरण, और विशेष अनुष्ठानों के माध्यम से श्रद्धालु देवी का आह्वान करते हैं।

दुर्गा अष्टमी का पौराणिक महत्व

दुर्गा अष्टमी से जुड़ी सबसे प्रमुख पौराणिक कथा महिषासुर वध से संबंधित है। देवी पुराण के अनुसार, महिषासुर एक अत्यंत बलशाली असुर था जिसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देवताओं को पराजित कर दिया था। उसकी पराजय से त्रस्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपनी शक्तियों का संयोग कर देवी दुर्गा को उत्पन्न किया। देवी दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक युद्ध किया और अष्टमी के दिन महिषासुर का वध कर संसार को आतंक से मुक्त किया।

इसलिए अष्टमी को बुराई पर अच्छाई की विजय और नारी शक्ति की महिमा के रूप में भी मनाया जाता है। यह दिन देवी के साहस, बुद्धिमत्ता और अद्भुत शक्ति का प्रतीक है।

दुर्गा अष्टमी की तिथि और समय

दुर्गा अष्टमी हर वर्ष शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन यानी अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। कभी-कभी अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन पड़ती हैं, जिसे महासंयोग कहा जाता है और इस दिन का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

दुर्गा अष्टमी के प्रमुख अनुष्ठान

  1. कन्या पूजन (कंजक पूजा)

यह इस दिन का सबसे प्रमुख और लोकप्रिय अनुष्ठान है। इसमें 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानकर श्रद्धा से पूजा की जाती है। उन्हें सम्मानपूर्वक भोजन कराया जाता है, उपहार भेंट किए जाते हैं और उनके चरण धोकर आशीर्वाद लिया जाता है।

कन्या पूजन भारतीय समाज में नारी सम्मान, समानता और शक्ति की पहचान का प्रतीक है। यह परंपरा यह संदेश देती है कि नारी में ही सृजन और संहार दोनों की शक्ति है।

  1. महास्नान और संकल्प

अष्टमी के दिन भक्त प्रातःकाल स्नान करके पवित्र वस्त्र पहनते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं। यह व्रत आत्मशुद्धि और मानसिक एकाग्रता के लिए किया जाता है।

  1. हवन और पूजन

दुर्गा सप्तशती, चंडी पाठ और नवदुर्गा स्तोत्र का पाठ कर हवन किया जाता है। इस हवन में विशेष सामग्री, जैसे जौ, तिल, घी, चंदन और पुष्प आदि अर्पित किए जाते हैं। यह पूजा नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मकता को आमंत्रित करती है।

  1. भंडारा और प्रसाद वितरण

कई स्थानों पर इस दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है, जहाँ सभी भक्तों को माँ दुर्गा का प्रसाद खिलाया जाता है। इसे सांझा भोजन भी कहा जाता है और यह सामाजिक समरसता का प्रतीक बनता है।

अष्टमी व्रत का महत्व

अष्टमी का व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन पुरुष भी इसे श्रद्धा और आस्था के साथ रखते हैं। यह व्रत केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक आत्म-शुद्धि का माध्यम भी है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति अष्टमी का व्रत करता है, उसे देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

दुर्गा अष्टमी का सांस्कृतिक स्वरूप

भारत विविधता में एकता वाला देश है और दुर्गा अष्टमी पूरे भारत में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाई जाती है:

पश्चिम बंगाल

यहाँ दुर्गा पूजा का विशेष महत्त्व है और अष्टमी को सबसे पवित्र दिन माना जाता है। लोग नए वस्त्र पहनते हैं, पंडालों में विशेष पूजा होती है और सिंदूर खेला जैसे अनुष्ठानों का आयोजन होता है।

उत्तर भारत

उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में कन्या पूजन और जागरण का आयोजन आम है। घर-घर में देवी की स्थापना होती है और सुंदरकांड व दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।

गुजरात

यहाँ अष्टमी के दिन गरबा और डांडिया का रंगारंग आयोजन होता है। नवरात्रि के नौ दिन तक लोग रात-रातभर नृत्य करते हैं और देवी के चरणों में भक्ति अर्पित करते हैं।

दक्षिण भारत

यहाँ देवी को अलग-अलग रूपों में पूजने की परंपरा है। विशेष रूप से सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें बच्चे पुस्तकों और वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं।

दुर्गा अष्टमी और स्त्री सशक्तिकरण

दुर्गा अष्टमी केवल धार्मिक अनुष्ठान का दिन नहीं है, यह हमें नारी शक्ति की याद दिलाता है। जिस प्रकार देवी दुर्गा ने अन्याय के विरुद्ध युद्ध किया, उसी प्रकार यह पर्व महिलाओं को अपने अधिकारों और आत्मबल के प्रति जागरूक करता है।

आज के युग में जब स्त्रियाँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं—शिक्षा, विज्ञान, राजनीति, रक्षा—तो दुर्गा अष्टमी का सन्देश और भी प्रासंगिक हो जाता है। यह दिन यह प्रेरणा देता है कि नारी न तो कमजोर है और न ही निर्बल, बल्कि वह सृजन और शक्ति का साकार रूप है।

दुर्गा अष्टमी से जुड़े विशेष मंत्र

  • या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
  • यह पावन मंत्र देवी के उस स्वरूप को समर्पित है, जो समस्त जीवों में शक्ति के रूप में विद्यमान हैं। यह श्लोक माँ की सर्वव्यापकता और उनकी शक्तिमयी उपस्थिति को नमन करता है।
  • "सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते॥"
  • इस मंत्र के माध्यम से माँ दुर्गा से जीवन के कल्याण, सुख-शांति और सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। यह स्तुति उनके करुणामयी, मंगलकारी और रक्षक स्वरूप को समर्पित है।
  • या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
  • यह पावन मंत्र देवी के उस स्वरूप को समर्पित है, जो समस्त जीवों में शक्ति के रूप में विद्यमान हैं। यह श्लोक माँ की सर्वव्यापकता और उनकी शक्तिमयी उपस्थिति को नमन करता है।
  • "सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते॥"
  • इस मंत्र के माध्यम से माँ दुर्गा से जीवन के कल्याण, सुख-शांति और सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। यह स्तुति उनके करुणामयी, मंगलकारी और रक्षक स्वरूप को समर्पित है।

दुर्गा अष्टमी केवल व्रत, पूजा और अनुष्ठानों का पर्व नहीं है, यह आत्मबल, नारी सम्मान, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, अगर हमारे भीतर आत्मविश्वास और शक्ति है, तो हम हर संकट को पार कर सकते हैं।

आइए, इस दुर्गा अष्टमी पर हम केवल देवी की पूजा न करें, बल्कि उनके गुणों को आत्मसात भी करें—साहस, करुणा, धैर्य और न्यायप्रियता को अपने जीवन में उतारें।

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