भारत सहित दुनिया के अनेक हिस्सों में मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक पर्व है — ईद-ए-मिलादुन्नबी, जिसे मौलिद-उन-नबी या बारावफात के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व इस्लाम धर्म के अंतिम पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह पर्व मुसलमानों के लिए केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रेरणा, आस्था, भक्ति और जीवन के आदर्शों को पुनः स्मरण करने का अवसर होता है।
ईद-ए-मिलादुन्नबी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इस्लाम धर्म में हज़रत मुहम्मद साहब को अंतिम पैगंबर माना गया है, जिन्हें "रहमतुल्लिल आलमीन" यानी संपूर्ण सृष्टि के लिए रहमत कहा गया। उनका जन्म 571 ईस्वी में अरब देश के मक्का शहर में 12 रबी-उल-अव्वल को हुआ था। इसी दिन को मुसलमान ईद-ए-मिलाद के रूप में मनाते हैं।
हज़रत मुहम्मद साहब का जीवन सत्य, करुणा, समानता, ईमानदारी और इंसानियत की मिसाल है। वे न केवल एक धार्मिक नेता थे, बल्कि समाज सुधारक, नीति-निर्माता और सच्चे मार्गदर्शक भी थे। उन्होंने तौहीद (एक ईश्वर की उपासना), इंसाफ (न्याय), और खिदमत (सेवा) की शिक्षा दी।
मिलादुन नबी का नामकरण और अर्थ
"मिलाद" का अर्थ है जन्म, और "नबी" का मतलब होता है पैगंबर। अतः "मिलाद-उन-नबी" का तात्पर्य है — पैगंबर के जन्म का दिन। इसे कुछ स्थानों पर "मौलिद" भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ भी जन्म होता है।
यह उत्सव भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, तुर्की, मिस्र, इराक, ईरान सहित कई अफ्रीकी और यूरोपीय देशों में बड़े हर्षोल्लास और भक्ति भाव से मनाया जाता है। हालांकि, कुछ मुस्लिम समुदाय जैसे सलफी और वहाबी इसे धार्मिक उत्सव के रूप में नहीं मानते, फिर भी अधिकांश सुन्नी मुसलमान इस दिन को अत्यंत श्रद्धा, सम्मान और उत्साह के साथ मनाते हैं।
हज़रत मुहम्मद साहब का जीवन: प्रेरणाओं का स्रोत
हज़रत मुहम्मद साहब का जीवन हर इंसान के लिए प्रेरणास्पद है। उन्होंने हर हाल में सच बोलने, धैर्य रखने, और दूसरों की मदद करने की सीख दी। उन्होंने समाज में फैली बुराइयों, अंधविश्वासों और असमानताओं के विरुद्ध आवाज उठाई और लोगों को नेक राह पर चलने की प्रेरणा दी।
उन्होंने महिलाओं को सम्मान, बच्चों को प्रेम, और वृद्धों को आदर देना सिखाया। उनके सिद्धांत आज भी विश्व मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं।
ईद-ए-मिलाद कैसे मनाई जाती है?
इस पवित्र दिन की शुरुआत लोग विशेष नमाज़ अदा करके करते हैं, साथ ही पैगंबर मोहम्मद साहब की शान में दरूद और सलाम पढ़े जाते हैं। मस्जिदों को खूबसूरती से सजाया जाता है, घरों में रौशनी की जाती है और कई स्थानों पर श्रद्धालु भव्य जुलूस निकालते हैं, जिनमें लोग पैगंबर की शिक्षाओं का गुणगान करते हैं।
- मस्जिदों और घरों की सजावट
इस दिन मस्जिदों को हरे रंग की रोशनी और बैनरों से सजाया जाता है, क्योंकि हरा रंग इस्लाम में शुभ माना जाता है। घरों में भी दीये और रोशनी की जाती है।
- जुलूस-ए-मोहम्मदी
कई जगहों पर जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला जाता है, जिसमें लोग झंडे लेकर पैगंबर साहब की शान में नाते (भजन जैसे गीत) पढ़ते हुए चलते हैं। इसमें बच्चे, बूढ़े, महिलाएँ सभी हिस्सा लेते हैं।
- नात शरीफ और महफिलें
इस दिन खास नात शरीफ (पैगंबर की शान में कविताएँ) पढ़ी जाती हैं। जगह-जगह मिलाद महफिलें आयोजित की जाती हैं, जहाँ पैगंबर के जीवन और शिक्षाओं पर चर्चा होती है।
- दान और सेवा
ईद-ए-मिलाद के दिन लोग गरीबों और ज़रूरतमंदों को खाना, कपड़े, और पैसे देकर मदद करते हैं। इस दिन खिदमत-ए-खल्क (मानव सेवा) को सबसे बड़ी इबादत माना जाता है।
- विशेष भोज और मिठाइयाँ
इस दिन कई जगहों पर सामूहिक भोजन का आयोजन होता है, जिसे 'नियाज़' कहा जाता है। सेवइयाँ, खीर, बिरयानी और हलवा जैसी पारंपरिक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
ईद-ए-मिलाद के अवसर पर पढ़े जाने वाले दुआ और दरूद
इस दिन लोग हज़रत मुहम्मद साहब की शान में दरूद शरीफ पढ़ते हैं:
"اللهم صل على محمد وعلى آل محمد"
इसका अर्थ है: "हे अल्लाह! मुहम्मद और उनके परिवार पर अपनी रहमतें और शांति नाज़िल फरमा।"
आज के युग में मिलादुन नबी का महत्व
आज जब पूरी दुनिया आतंक, भेदभाव, और असहिष्णुता से जूझ रही है, ऐसे में हज़रत मुहम्मद साहब की शिक्षा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। उन्होंने हमेशा प्रेम, संयम, क्षमा और सामाजिक न्याय की बात की।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म का वास्तविक उद्देश्य है:
- इंसानियत की सेवा करना
- सच बोलना
- निर्धनों की मदद करना
- अमन और भाईचारा फैलाना
- मिलादुन नबी और बच्चों की भागीदारी
इस पर्व के माध्यम से बच्चों को नैतिक शिक्षा, धार्मिक संस्कार और अनुशासन सिखाने का अवसर मिलता है। स्कूलों, मदरसों और समाजिक संस्थानों में प्रतियोगिताएँ, भाषण, नात रेसाइटेशन आदि होते हैं।
बच्चों को यह बताया जाता है कि नबी की शिक्षाएँ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक अच्छे इंसान बनने की राह हैं।
ईद-ए-मिलाद और वैश्विक भाईचारा
ईद-ए-मिलाद इस्लाम धर्म के सार्वभौमिक मूल्यों — शांति, सहिष्णुता और न्याय — को उजागर करता है। इस दिन विभिन्न समुदायों के लोग भी एक-दूसरे को बधाइयाँ देते हैं और मिलजुल कर पर्व का आनंद लेते हैं। यह धार्मिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का उदाहरण है।
ईद-ए-मिलाद पर कुछ प्रेरक कथन
"जो अपने लिए पसंद करते हो, वही दूसरों के लिए भी पसंद करो।" — पैगंबर मुहम्मद
उत्तम मुसलमान वही है, जिसके बोल और कर्मों से किसी को कष्ट न पहुँचे।"
"ज्ञान प्राप्त करना हर मुस्लिम पुरुष और महिला का कर्तव्य है।"
ईद-ए-मिलादुन्नबी एक ऐसा पर्व है जो हमें जीवन की सच्ची राह दिखाता है। यह सिर्फ एक जश्न नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है — सत्य, सेवा, करुणा और न्याय की। पैगंबर मुहम्मद साहब का जीवन हमें यह सिखाता है कि कैसे हर परिस्थिति में ईमानदारी, धैर्य और इंसानियत को बनाए रखा जा सकता है।
इस दिन हम केवल उत्सव नहीं मनाते, बल्कि अपने अंदर के श्रेष्ठ इंसान को जगाने का प्रयास करते हैं। हमें चाहिए कि हम नबी की शिक्षाओं को केवल किताबों में न रखें, बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारें और समाज में एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करें।