भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में एक नाम ऐसा है, जिसकी आवाज़ ने न सिर्फ दिलों को छुआ, बल्कि हर दौर की भावनाओं को स्वर देकर अमर कर दिया। वह नाम है—मोहम्मद रफ़ी। उन्हें रफ़ी साहब या शहंशाह-ए-तरन्नुम के नाम से भी जाना जाता है। रफ़ी साहब की मधुर और भावनाओं से भरी आवाज ने बॉलीवुड के कई सितारों को पर्दे पर एक नई पहचान दी। 24 दिसंबर 1924 को जन्मे रफ़ी साहब ने अपने जीवन में करीब 5000 से ज्यादा गीत गाए और हर शैली में खुद को साबित किया।
बचपन की एक आवाज़ से जन्मा स्वरसाधक
रफ़ी साहब का बचपन लाहौर में बीता, जहां उनका परिवार रोज़गार की तलाश में आ बसा था। उनके परिवार का संगीत से कोई खास ताल्लुक नहीं था, लेकिन रफ़ी की आत्मा संगीत की ओर खिंचती चली गई। कहा जाता है कि सात साल की उम्र में एक फकीर की गाती हुई आवाज़ ने उन्हें इतना मोह लिया कि वे उसकी नकल करने लगे। यह सिलसिला नाई की दुकान से शुरू हुआ और फिर मोहल्ले के लोगों तक उनकी मधुरता की चर्चा फैलने लगी।
उनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से संगीत की शिक्षा दिलाई। एक दिन जब ऑल इंडिया रेडियो लाहौर में के.एल. सहगल का कार्यक्रम था और बिजली चली गई, तब भीड़ की बेचैनी को देखते हुए आयोजकों ने रफ़ी को गाने का मौका दिया। यही उनका पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था—जिसमें संगीतकार श्याम सुंदर भी मौजूद थे और रफ़ी की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए।
फिल्मी सफर की शुरुआत
रफ़ी साहब का पहला फिल्मी गाना 1944 में पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' के लिए था। इसके बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया और 1946 में उन्हें नौशाद साहब की फिल्म 'पहले आप' में गाने का मौका मिला। लेकिन पहचान मिली 'अनमोल घड़ी' (1946) के गीत 'तेरा खिलौना टूटा बालक' से।
संगीतकार नौशाद, शंकर-जयकिशन, ओ.पी. नैय्यर, सचिन देव बर्मन, मदन मोहन, रवि और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गजों ने रफ़ी की आवाज़ को बार-बार चुना। एक समय ऐसा आया कि लगभग हर प्रमुख अभिनेता के लिए पार्श्वगायन की पहली पसंद मोहम्मद रफ़ी बन गए।
संगीत की ऊंचाइयों तक पहुंचना
1950 से 1970 के दशक तक रफ़ी साहब का सुनहरा समय रहा। फिल्मों में उनके गाए गीतों की लंबी सूची में से कुछ आज भी अमर हैं—जैसे 'ओ दुनिया के रखवाले', 'तेरी प्यारी प्यारी सूरत को', 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे', 'बहारों फूल बरसाओ', 'लिखे जो खत तुझे' और 'ये रेशमी ज़ुल्फें'।
शम्मी कपूर तो इस कदर रफ़ी की आवाज़ के दीवाने थे कि उन्होंने कहा था, “मेरे अभिनय में जो जीवन दिखता है, वह रफ़ी की आवाज़ की वजह से है।” चाहे ‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ हो या ‘दीवाना हुआ बादल’, रफ़ी की आवाज़ शम्मी कपूर के अभिनय में जान डाल देती थी।
फिल्मफेयर और पद्मश्री सम्मान
रफ़ी साहब को अपने जीवनकाल में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। उन्हें पहला फिल्मफेयर पुरस्कार 1960 में फिल्म 'चौदहवीं का चाँद' के शीर्षक गीत के लिए मिला। इसके बाद 'तेरी प्यारी प्यारी सूरत' (1961), 'बहारों फूल बरसाओ' (1966), 'चाहूंगा मैं तुझे' (1965), 'क्या हुआ तेरा वादा' (1977) जैसे गीतों के लिए उन्हें और पुरस्कारों से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें 1965 में पद्मश्री से सम्मानित किया।
रफ़ी साहब की खासियत
रफ़ी साहब की आवाज़ की खास बात थी उसमें छिपी मासूमियत, रोमांस, दर्द और भक्ति की भावना। उनकी गायकी में परफेक्शन के साथ-साथ एक आत्मिक गहराई थी। वे जितनी सहजता से 'मधुबन में राधिका नाचे रे' गा सकते थे, उतनी ही शिद्दत से 'कर चले हम फिदा' जैसे देशभक्ति गीत भी।
वे गायक नहीं, कलाकार थे जो अपनी आवाज़ से दृश्य को जीवंत कर देते थे। यही वजह है कि दिलीप कुमार, देव आनंद, धर्मेंद्र, राजेंद्र कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर तक—हर अभिनेता ने उनकी आवाज़ को अपने अभिनय का पूरक माना।
एक युग का अंत, पर स्वर अमर
31 जुलाई 1980 को रफ़ी साहब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी अंतिम यात्रा में हजारों लोग उमड़े थे। पूरे देश में एक गहरा सन्नाटा छा गया था। जैसे स्वर थम गया हो।
हालांकि उनकी शारीरिक मौजूदगी चली गई, लेकिन उनका संगीत आज भी हर दिल की धड़कन बना हुआ है। 24 दिसंबर 2017 को उनके 93वें जन्मदिन पर Google ने एक डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी, जिसे मुंबई के चित्रकार साजिद शेख ने डिज़ाइन किया था।
प्रेरणा बनकर आज भी जिंदा है रफ़ी की आवाज़
रफ़ी साहब की गायकी ने सोनू निगम, मोहम्मद अज़ीज़, उदित नारायण जैसे गायकों को गहराई से प्रभावित किया। हालांकि इन सभी ने अपनी एक अलग पहचान बनाई, लेकिन वे खुद मानते हैं कि रफ़ी जैसा कोई नहीं।
आज जब भी कोई नया गायक अपनी आवाज़ से दिल जीतता है, तो कहीं न कहीं उसमें रफ़ी की परछाईं जरूर होती है। उनके गाने आज भी नई फिल्मों में रीमिक्स होते हैं, रेडियो पर चलते हैं और पुराने संगीत प्रेमियों की जान बने हुए हैं।
मोहम्मद रफ़ी एक ऐसे कलाकार थे, जिनकी आवाज़ ने हर भाव को जीवंत किया। वे भले ही आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी दिलों में बसी हुई है। उन्होंने अपने गायन से न केवल मनोरंजन किया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध भी किया। वे हर संगीतप्रेमी के दिल में आज भी जीवित हैं—एक अमर गायक के रूप में।