वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में केंद्र सरकार ने गंभीर और दुर्लभ बीमारियों की दवाओं पर कस्टम ड्यूटी में छूट देने की घोषणा कर मरीजों को राहत देने का इरादा जताया है।
Budgat: केंद्र सरकार ने बजट 2025-26 में जीवन रक्षक और दुर्लभ बीमारियों की दवाओं पर कस्टम ड्यूटी में छूट देने का बड़ा ऐलान किया है। यह कदम स्वास्थ्य क्षेत्र में एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों और हेल्थ एक्टिविस्ट का मानना है कि इस फैसले का असली फायदा मरीजों तक शायद पहुंच नहीं पाएगा। पेटेंट कानूनों और आयात नियमों की जटिलताओं के कारण दवाओं की क़ीमतें बनी रहेंगी और इस छूट का असर सामान्य मरीजों पर न के बराबर होगा।
कस्टम ड्यूटी छूट के बाद भी दवाओं की महंगाई बनी रहेगी
हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में जीवन रक्षक दवाओं और दुर्लभ बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त दवाओं पर कस्टम ड्यूटी में छूट देने का ऐलान किया, लेकिन यह केवल एक औपचारिक राहत है। स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकारों के अनुसार, ज्यादातर दवाएं पेटेंट के दायरे में हैं, जिससे जेनेरिक दवाओं का उत्पादन संभव नहीं है और दवाओं की कीमतें अधिक ही बनी रहती हैं। पेटेंट का यह एकाधिकार दवाओं की आपूर्ति और उनकी कीमतों को नियंत्रित करता है, जिससे आम मरीज महंगी दवाओं की पहुंच से वंचित रहते हैं।
जेनेरिक दवाओं के उत्पादन की अनुमति जरूरी
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क (AIDAN) के सह-संयोजक चिनु श्रीनिवासन ने इस समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि सरकार को पेटेंट नियमों में बदलाव करके भारतीय दवा निर्माताओं को जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने की अनुमति देनी चाहिए। इससे दवाओं की कीमतें 99% तक कम हो सकती हैं और आम लोगों को सस्ती दवाएं मिल सकेंगी। इसके अलावा, उन्होंने देश में उपलब्ध दवाओं पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) में भी छूट की मांग दोहराई है, जो अभी तक पूरी तरह लागू नहीं हुई है।
दुर्लभ बीमारियों की दवाओं पर छूट का सीमित प्रभाव
फार्मा सेक्टर और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट लीना मेनघाने ने कहा, "कई दुर्लभ और महंगी दवाओं पर आयात शुल्क में छूट अच्छी बात है, लेकिन यह केवल एक तात्कालिक समाधान है। पेटेंट नियम स्थानीय उत्पादन को रोकते हैं, जिसके कारण दवाओं की कीमतें हमेशा ऊंची रहेंगी।" उनका मानना है कि सिर्फ कस्टम ड्यूटी में कटौती से मरीजों को स्थायी राहत नहीं मिलेगी।
आयात पर निर्भरता और टैक्स छूट की जरूरत
केंद्र सरकार द्वारा कस्टम ड्यूटी में छूट देने के बाद भी, दवाओं का आयात बहुत सीमित संख्या में ही संभव है। हेल्थ एक्टिविस्ट ने बताया कि भारत में केवल कुछ दवाओं को ही ड्रग रेगुलेटर की अनुमति मिलती है, जिनके लिए छूट प्रभावी होगी। वे दवाएं जिनका स्थानीय उत्पादन नहीं होता, वे कस्टम ड्यूटी छूट से कुछ हद तक सस्ती हो सकती हैं, लेकिन यह लाभ व्यापक स्तर पर महसूस नहीं होगा।
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) की दवाओं पर छूट नहीं
एक दुर्लभ और घातक बीमारी, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA), जिसके इलाज के लिए प्रयोग होने वाली दवा रिस्डिप्लम (Risdiplam) को कस्टम ड्यूटी में छूट की सूची में शामिल किया गया है, लेकिन अभी तक मरीजों को इसका कोई बड़ा लाभ नहीं मिल पाया है। SMA फाउंडेशन ऑफ इंडिया की अर्चना पंडा कहती हैं कि इस दवा पर 12% GST छूट जरूरी है, क्योंकि भारत में यह दवा महंगी होने के कारण सिर्फ कुछ मरीज ही इसे खरीद पाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दी है नीति बनाने की जिम्मेदारी
अर्चना पंडा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि GST में छूट देना सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय का नीतिगत निर्णय है, जिसमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा। इसलिए सरकार को ही यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वास्थ्य क्षेत्र की जरूरतों के मुताबिक कर प्रणाली में सुधार हो और दवाओं की कीमतों को कम किया जाए।
महंगी दवाओं का उदाहरण: रोश फार्मा की Evrysdi
भारत में SMA के इलाज के लिए रोश फार्मा की Evrysdi नामक दवा उपलब्ध है, जिसका निर्माण भारत में नहीं होता। यह दवा आयातित विकल्पों से सस्ती है लेकिन फिर भी आम मरीज के लिए किफायती नहीं है। उदाहरण के लिए, 60 किलो वजन वाले मरीज के लिए इस दवा की वार्षिक लागत लगभग ₹72 लाख होती है, जो आम जनता की पहुंच से बहुत दूर है।
मरीजों की आवाज: टैक्स छूट और पेटेंट नियमों में बदलाव की मांग
मरीजों के परिजन और हेल्थ एक्टिविस्ट लगातार सरकार से दवाओं पर GST छूट, पेटेंट नियमों में संशोधन, और अनिवार्य लाइसेंस जैसे विकल्प अपनाने की मांग कर रहे हैं। अनिवार्य लाइसेंस से सरकार ऐसी दवाएं अन्य कंपनियों को बनाने की अनुमति दे सकती है, जो पेटेंट के कारण महंगी हैं। इससे मरीजों को किफायती दवाएं उपलब्ध हो सकती हैं और उनकी आर्थिक बोझ कम हो सकती है।