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पूर्व RBI गवर्नर का सुझाव: UPSC परीक्षा में कम प्रयास और उम्र सीमा ज्यादा होनी चाहिए

पूर्व RBI गवर्नर का सुझाव: UPSC परीक्षा में कम प्रयास और उम्र सीमा ज्यादा होनी चाहिए

RBI के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने UPSC सिविल सेवा परीक्षा की उम्र सीमा 40 साल और प्रयासों की संख्या घटाकर तीन करने का सुझाव दिया। उनका मानना है कि इससे प्रशासन में अनुभव बढ़ेगा और योग्य उम्मीदवारों का चयन बेहतर होगा।

Education: RBI के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव ने UPSC सिविल सेवा परीक्षा की मौजूदा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि UPSC जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में छह बार तक प्रयास देना और 32 साल तक उम्र सीमा रखना सही नहीं है। इससे उम्मीदवार परीक्षा की तकनीक में तो पारंगत हो जाते हैं, लेकिन असली योग्यता का सही आकलन नहीं हो पाता।

कम प्रयास से चयन प्रक्रिया में सुधार की उम्मीद

सुब्बाराव का तर्क है कि छह प्रयास देने से उम्मीदवार बार-बार परीक्षा में बैठते रहते हैं और तकनीकी तैयारी में माहिर हो जाते हैं। इससे चयन प्रक्रिया में दो बड़ी समस्याएं आती हैं: पहली, योग्य उम्मीदवार का चयन न हो पाना (Type II Error) और दूसरी, किसी कम योग्य उम्मीदवार का चयन हो जाना (Type I Error)। उनका कहना है कि UPSC जैसी परीक्षा में तकनीकी तैयारी के बजाय असली योग्यता और अनुभव को महत्व दिया जाना चाहिए। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि UPSC के प्रयासों की संख्या घटाकर तीन कर देनी चाहिए ताकि उम्मीदवार की असली क्षमता का आकलन हो सके।

उम्र सीमा 40 साल क्यों होनी चाहिए?

सुब्बाराव ने एक और अहम सुझाव दिया कि UPSC परीक्षा में उम्मीदवारों की न्यूनतम उम्र सीमा 40-42 साल होनी चाहिए। उनका तर्क है कि युवा उम्मीदवारों के पास जीवन का अनुभव कम होता है और वे शासन की जटिलताओं को पूरी तरह समझ नहीं पाते।

जबकि 40 साल से अधिक उम्र के उम्मीदवारों के पास अनुभव होता है, वे जीवन के कई पहलुओं को समझ चुके होते हैं और समाज व प्रशासन की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं।

युवा उम्मीदवारों की भूमिका पर भी राय

हालांकि, सुब्बाराव ने यह भी स्पष्ट किया कि वे सिर्फ अनुभवी उम्मीदवारों को ही मौका देने के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि सिविल सेवा में युवाओं की ऊर्जा, उत्साह और नई सोच भी जरूरी है। इसलिए उन्होंने एक संतुलित सुझाव दिया कि 27 साल तक उम्र सीमा और तीन प्रयासों की व्यवस्था लागू की जाए, ताकि युवा उम्मीदवार भी मौका पा सकें और साथ ही 40 साल तक के अनुभवी लोग भी प्रशासन में अपनी भूमिका निभा सकें।

सुब्बाराव के अनुभव का हवाला

पूर्व गवर्नर ने 1970 के दशक के अपने अनुभव को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि उस समय UPSC में केवल दो प्रयास की अनुमति थी और प्रक्रिया काफी कठिन मानी जाती थी। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आज की तुलना में उस दौर की सिविल सेवा व्यवस्था अलग थी और समय के साथ परीक्षा की प्रक्रिया में कई सुधार हुए हैं।

मानसिक दबाव पर भी जताई चिंता

सुब्बाराव ने युवाओं पर बढ़ते मानसिक दबाव का मुद्दा भी उठाया। उनका कहना है कि जब युवा उम्मीदवार बार-बार असफल होते हैं, तो वे ‘डूबे हुए खर्च के भ्रम’ (Sunk Cost Fallacy) में फंस जाते हैं। वे सोचते हैं कि अब तक का प्रयास और निवेश बेकार न जाए, इसलिए बार-बार परीक्षा देते रहते हैं, चाहे वे इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त हों या नहीं। इस वजह से कई युवा अपनी जिंदगी के कीमती साल गंवा देते हैं।

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