निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पुण्यदायक और कठिन व्रत माना जाता है, जो इस वर्ष 18 जून 2025 को मनाया जाएगा। यह एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की होती है और इसमें बिना जल ग्रहण किए पूरे दिन उपवास रखने का नियम है। माना जाता है कि यह व्रत अकेले ही वर्ष भर की सभी एकादशियों के समान फल प्रदान करता है। इस लेख में हम जानेंगे निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा, व्रत विधि, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व, आधुनिक जीवन में इसकी प्रासंगिकता और कैसे इस उपवास से आत्मिक उन्नति प्राप्त की जा सकती है।
निर्जला एकादशी का परिचय
निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सर्वोत्तम और सबसे कठिन माना गया है। यह उपवास बिना जल ग्रहण किए रखा जाता है, इसीलिए इसे ‘निर्जला’ कहा जाता है। इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार पांडवों में से भीम ने सबसे पहले यह उपवास किया था।
निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत केवल आत्मशुद्धि ही नहीं, बल्कि आत्मसंयम और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी है।
पौराणिक कथा: भीमसेन और महर्षि व्यास का संवाद
महाभारत काल की कथा के अनुसार, पांडवों में भीम बलशाली तो थे, लेकिन भोजन के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे। उनके चारों भाई – युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव – श्रद्धापूर्वक सभी एकादशी व्रत करते थे।
भीम ने एक दिन महर्षि व्यास से पूछा कि क्या ऐसा कोई उपाय है जिससे वह साल की सभी एकादशियों का फल एक साथ पा सकें? तब व्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया, जिसमें एक दिन के लिए जल तक नहीं लिया जाता।
भीम ने साहस के साथ यह व्रत किया और तभी से इसे ‘भीम एकादशी’ भी कहा जाता है। यह एकादशी आत्मनियंत्रण और भगवान विष्णु के प्रति समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।
व्रत विधि: कैसे करें निर्जला एकादशी का पालन
निर्जला एकादशी का व्रत कठिन अवश्य है, लेकिन इसकी विधि श्रद्धा और आस्था से पालन की जाए तो सरल प्रतीत होती है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
व्रत पालन की विधि
संकल्प लेने के बाद पूरे दिन न जल, न भोजन ग्रहण करें।
पूरे दिन भगवान विष्णु की पूजा करें।
श्री विष्णु सहस्रनाम, गीता पाठ, या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
रात को भी व्रत जारी रखें (जागर करना अधिक पुण्यकारी माना जाता है)।
अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें और जल ग्रहण करें।
यदि स्वास्थ्य कारणों से कोई व्यक्ति निर्जल व्रत न कर सके, तो फलाहार या केवल जल के साथ व्रत कर सकता है, लेकिन इसे उतनी ही श्रद्धा से करना चाहिए।
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व
हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार, एकादशी व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु की कृपा का पात्र बनता है। लेकिन निर्जला एकादशी सभी एकादशियों से अलग है।
इस व्रत के प्रमुख लाभ
वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्यफल अकेले ही मिल जाता है।
पापों का क्षय होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मानसिक और आत्मिक शुद्धि होती है।
रोग, भय और क्लेशों से मुक्ति मिलती है।
इस दिन किए गए दान-पुण्य का भी विशेष महत्व होता है। जल, अन्न, वस्त्र और छाता का दान करने से व्यक्ति को अपार पुण्य प्राप्त होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निर्जला व्रत
यह व्रत जहाँ धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, वहीं इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। उपवास करने से शरीर के अंदर जमा हानिकारक तत्व बाहर निकलते हैं और पाचन प्रणाली को विश्राम मिलता है, जिससे स्वास्थ्य बेहतर होता है।
निर्जला उपवास के लाभ
शरीर की जल-नियंत्रण प्रणाल (hydration mechanism) मजबूत होती है।
आत्म-संयम की क्षमता विकसित होती है।
मानसिक एकाग्रता में वृद्धि होती है।
दिनभर संयम और ध्यान में रहने से मानसिक शांति मिलती है।
हालांकि, यह व्रत शारीरिक रूप से कमजोर, बीमार, बुजुर्ग या गर्भवती महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं होता। ऐसे लोगों को डॉक्टर की सलाह से ही उपवास करना चाहिए।
निर्जला एकादशी से जुड़ी विशेष मान्यताएं
ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति अगले जन्मों में भी उत्तम जीवन पाता है।
गंगा स्नान, तीर्थों की यात्रा और गरीबों को जल दान करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।