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यूपीआई ने बदली भुगतान की तस्वीर, घट रही सिक्कों की जरूरत और मांग

यूपीआई ने बदली भुगतान की तस्वीर, घट रही सिक्कों की जरूरत और मांग

दुकानों, बाजारों और आम जनजीवन में अब छोटे लेनदेन के लिए भी मोबाइल पेमेंट को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे यह साफ है कि यूपीआई ने भारत की भुगतान प्रणाली को तेजी से डिजिटल बना दिया है।

एक वक्त था जब खरीदारी के बाद दुकानदार से 'चिल्लर' मांगना एक आम बात थी। जेब में पड़े खनकते सिक्के न सिर्फ जरूरत बन चुके थे, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा भी थे। लेकिन अब वह दौर बीत चुका है। डिजिटल पेमेंट और खासकर यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) ने वित्तीय लेनदेन की तस्वीर बदल दी है। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि सिक्कों का चलन लगातार घट रहा है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यूपीआई की लोकप्रियता है।

सिक्कों की घटती मांग: क्या कहता है डेटा

रिजर्व बैंक की 2024-25 की रिपोर्ट बताती है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक बाजार में कुल 13.7 लाख सिक्के सर्कुलेशन में थे, जिनकी कुल वैल्यू 36,589 करोड़ रुपये थी। इनमें से 1 रुपये, 2 रुपये और 5 रुपये के सिक्कों की संख्या कुल सिक्कों का 81.6 प्रतिशत थी, जबकि इनका मूल्य कुल मूल्य का 64.2 प्रतिशत रहा।

हालांकि, 2015-16 की तुलना में 2016-17 में सिक्कों की संख्या में 8.5 प्रतिशत और मूल्य में 14.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, लेकिन 2024-25 में यह ग्रोथ घटकर क्रमशः 3.6 प्रतिशत और 9.6 प्रतिशत रह गई। इससे स्पष्ट होता है कि सिक्कों की मांग में गिरावट आ रही है।

यूपीआई: जिसने बदल दी लेनदेन की परिभाषा

यूपीआई अप्रैल 2016 में लॉन्च हुआ और तभी से इसने भारत में डिजिटल ट्रांजेक्शन को एक नई दिशा दी। एनपीसीआई (नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2017 में यूपीआई के जरिए 6.4 मिलियन ट्रांजेक्शन हुए थे, जिनकी कुल कीमत 2,425 करोड़ रुपये थी। लेकिन 2025 तक आते-आते, मार्च महीने में ही 18.3 अरब ट्रांजेक्शन हुए, जिनकी कुल कीमत 24,77,221 करोड़ रुपये रही।

यह ग्रोथ दर्शाती है कि लोगों ने डिजिटल ट्रांजेक्शन को तेजी से अपनाया है और नकदी, विशेषकर सिक्कों का इस्तेमाल सीमित हो गया है। चाय की दुकान से लेकर हाई-एंड रेस्टोरेंट तक, अब अधिकतर जगहों पर ‘स्कैन करो, पे करो’ का चलन है।

कोविड-19 बना बदलाव का टर्निंग पॉइंट

2020-21 वह समय था जब पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी। इस दौरान नकदी से परहेज और संपर्करहित लेनदेन की मांग तेजी से बढ़ी। इस समय सिक्कों की ग्रोथ सबसे कम दर्ज हुई। उस साल सिक्कों के मूल्य में सिर्फ 2.1 प्रतिशत और संख्या में केवल 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यही वह वक्त था जब डिजिटल पेमेंट को नई उड़ान मिली और यूपीआई मुख्यधारा में पूरी तरह स्थापित हो गया।

शहरों में डिजिटल, गांवों में अभी भी सिक्के जरूरी

हालांकि शहरों में यूपीआई का चलन सामान्य हो गया है, लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में सिक्कों की पूरी तरह से अनदेखी नहीं की जा सकती। ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे दुकानदारों, ऑटो चालकों और सार्वजनिक सेवाओं में आज भी सिक्कों की आवश्यकता बनी हुई है। विशेष रूप से 1, 2 और 5 रुपये के सिक्कों की मांग इन क्षेत्रों में बनी रहती है।

10 और 20 रुपये के सिक्कों का असर

बीते कुछ वर्षों में 10 और 20 रुपये के सिक्के भी बाजार में जारी किए गए, जिनका उद्देश्य नकदी के मूल्य को बढ़ाना था। हालांकि, इन सिक्कों की स्वीकार्यता को लेकर कुछ भ्रम रहा है, खासकर 10 रुपये के सिक्के को लेकर। लेकिन फिर भी इन सिक्कों के चलते कुल मूल्य में आंशिक बढ़ोतरी हुई है।

क्या सिक्कों का भविष्य खत्म हो गया है?

सवाल यह उठता है कि क्या आने वाले समय में सिक्के पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे? विशेषज्ञों का मानना है कि सिक्कों का चलन एकदम खत्म नहीं होगा, लेकिन इसकी जरूरत सिर्फ सीमित उपयोगों तक रह जाएगी। डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ने के साथ-साथ छोटे लेनदेन भी डिजिटल होते जाएंगे।

फायदे और नुकसान: यूपीआई बनाम सिक्के

यूपीआई के फायदे

  • लेनदेन में आसानी और गति
  • ट्रैकिंग और रिकॉर्ड की सुविधा
  • नकदी की जरूरत नहीं

सिक्कों के फायदे

  • छोटे लेनदेन में उपयोगी
  • ग्रामीण और ऑफलाइन क्षेत्रों में सहायक
  • तकनीकी विफलता की स्थिति में कारगर

सरकार और आरबीआई की भूमिका

भारतीय रिजर्व बैंक डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत बदलाव कर रहा है। साथ ही सिक्कों का उत्पादन धीरे-धीरे सीमित किया जा रहा है। आरबीआई का उद्देश्य कैशलेस इकोनॉमी को प्राथमिकता देना है, लेकिन वह यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि समाज के हर वर्ग को भुगतान के लिए समान अवसर मिलें।

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