देश की अर्थव्यवस्था में MSME (सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम) सेक्टर का महत्व किसी से छिपा नहीं है। यह सेक्टर न केवल रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है, बल्कि निर्यात और उत्पादन में भी इसकी हिस्सेदारी अहम है। हाल ही में नीति आयोग ने ‘डिजाइनिंग ए पॉलिसी फॉर मीडियम एंटरप्राइजेज’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें मझोले उद्योगों की वर्तमान स्थिति, उनके संभावित योगदान और विकास के सामने आने वाली चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यदि मझोले उद्योगों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हो, तो इससे देश में करीब 12 लाख नए रोजगार सृजित हो सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों देश के माइक्रो और स्मॉल उद्योग मझोले उद्योग में परिवर्तित होना पसंद नहीं कर रहे? आइए, नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर इस विषय को समझते हैं।
मझोले उद्योगों का देश की अर्थव्यवस्था में महत्व
भारत की कुल GDP में MSME सेक्टर का योगदान लगभग 29 प्रतिशत है। इसके अलावा, इस सेक्टर का ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) में 31.8 प्रतिशत और कुल निर्यात में करीब 45 प्रतिशत हिस्सा है। देश के लगभग 62 प्रतिशत कार्यबल MSME सेक्टर में कार्यरत है। ये आंकड़े ही इस सेक्टर के महत्व को स्पष्ट करते हैं।
MSME क्षेत्र में करीब 6 करोड़ गैर-कृषि इकाइयां कार्यरत हैं, जिनमें से अधिकांश माइक्रो और स्मॉल श्रेणी की हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 0.3 प्रतिशत ही मझोले उद्योग हैं। संख्या के लिहाज से यह बहुत कम है, जबकि रोजगार और निर्यात के मामले में मझोले उद्योगों का योगदान disproportionate यानी अधिक है।
मझोले उद्योग प्रति यूनिट रोजगार के मामले में माइक्रो और स्मॉल से काफी आगे हैं। एक मझोले उद्योग में औसतन 89.4 कर्मचारी काम करते हैं, जबकि स्मॉल में 19.11 और माइक्रो में केवल 5.70 कर्मचारी होते हैं। यही कारण है कि मझोले उद्योगों में निवेश और विकास का महत्व और भी बढ़ जाता है।
निर्यात के क्षेत्र में भी मझोले उद्योगों का योगदान विशेष रूप से अहम है। कुल MSME निर्यात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा मझोले उद्योगों का है, जबकि 91 प्रतिशत निर्यात इकाइयां माइक्रो और स्मॉल श्रेणी की हैं जो 60 प्रतिशत निर्यात करती हैं। मझोले उद्योगों का औसत विदेशी मुद्रा आय 39.5 करोड़ रुपये है, जो स्मॉल (8.3 करोड़) और माइक्रो (1.39 करोड़) से कई गुना अधिक है।
विकास के सामने बड़ी बाधाएं
नीति आयोग की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि माइक्रो और स्मॉल उद्योग मझोले उद्योगों में परिवर्तित होने से क्यों कतराते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है सरकारी योजनाओं और क्रेडिट सहायता का वितरण। अधिकांश सरकारी योजनाएं और फंडिंग माइक्रो और स्मॉल उद्यमों के लिए ज्यादा उपलब्ध हैं।
वित्त वर्ष 2022-23 में MSME सेक्टर के लिए कुल 5,442 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन केवल 17.81 प्रतिशत ही मझोले उद्योगों के लिए रखा गया। अधिकांश फंड प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना और पीएम विश्वकर्मा योजना जैसी योजनाओं पर खर्च होता है, जो विशेष रूप से मझोले उद्योगों के लिए नहीं हैं।
इसका सीधा परिणाम यह होता है कि माइक्रो और स्मॉल उद्योग छोटे बने रहने को प्राथमिकता देते हैं ताकि वे सरकारी मदद और सब्सिडी प्राप्त कर सकें। ऐसे में वे अपने व्यवसाय का विस्तार कर मझोले उद्योग बनने का जोखिम नहीं उठाते। यह मानसिकता देश की आर्थिक वृद्धि के लिए एक बड़ी बाधा बन रही है।
साथ ही, मझोले उद्योगों के लिए टारगेटेड स्कीमों की कमी के कारण वे वैश्विक बाजार में पूरी क्षमता से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। इस वजह से भारत के आर्थिक विकास में मझोले उद्योगों का योगदान अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाता।
आगे का रास्ता: नीति में बदलाव और समर्थन जरूरी
नीति आयोग की रिपोर्ट यह साफ कर देती है कि देश को MSME सेक्टर में मझोले उद्योगों के विकास पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार विशेष योजनाएं बनाकर मझोले उद्योगों को बेहतर क्रेडिट, तकनीकी मदद और मार्केट एक्सपोजर प्रदान करे।
मझोले उद्योगों का आकार बड़ा होने के कारण इनमें नवाचार (Innovation) और ऑपरेशनल दक्षता (Operational Efficiency) बढ़ाने की अधिक संभावना होती है। अगर इन्हें सही दिशा में प्रोत्साहित किया जाए, तो वे रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकते हैं और देश की निर्यात क्षमता को भी मजबूत कर सकते हैं।
इसके साथ ही, सरकारी नीतियां इस तरह होनी चाहिए कि माइक्रो और स्मॉल उद्योग भी अपने व्यवसाय को बढ़ाकर मझोले उद्योग बन सकें, बिना किसी डर या वित्तीय बाधा के। इससे न केवल उनकी उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी अपनी जगह मजबूत कर पाएंगे।
नीति आयोग की यह रिपोर्ट हमारे MSME सेक्टर की वर्तमान स्थिति और उसकी संभावनाओं की एक स्पष्ट तस्वीर पेश करती है। यह बताती है कि अगर मझोले उद्योगों को उचित सहयोग और वित्तीय सहायता दी जाए, तो वे 12 लाख से अधिक रोजगार पैदा कर सकते हैं और देश की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।