Chicago

जाति जनगणना पर मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक: 'मंडल 2.0' से 'कमंडल' का नया गठजोड़

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जाति जनगणना के मुद्दे को लेकर गंभीर रूप से काम कर रही है और इसे राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश कर रही है। पार्टी का मुख्य उद्देश्य ओबीसी और दलित वर्ग के वोटों को फिर से आकर्षित करना है, जिनकी ओर इन वर्गों से पिछले कुछ वर्षों में दूरी बढ़ी है।

Caste Census BJP Plan: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जाति जनगणना पर बड़ा फैसला लेकर देश की राजनीति में एक नया मोड़ लाने की तैयारी कर ली है। पहले जिस मुद्दे को केवल विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आरजेडी का एजेंडा माना जाता था, अब वही मुद्दा भाजपा के राजनीतिक केंद्र में आ चुका है। 

यह सिर्फ एक नीतिगत कदम नहीं, बल्कि एक सोची-समझी सामाजिक और राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसे 'मंडल 2.0' का नाम दिया जा रहा है। इस नई रणनीति के तहत, भाजपा अपने पारंपरिक हिंदुत्व के एजेंडे 'कमंडल' को पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व से जोड़कर एक व्यापक सामाजिक गठजोड़ खड़ा करना चाहती है।

राजनीतिक समीकरण बदलने की तैयारी

2014 से लेकर 2019 तक, भाजपा ने देशभर में सामाजिक वर्गों का एक ऐसा गठबंधन तैयार किया था, जिसमें अगड़ी जातियों के साथ-साथ गैर-प्रमुख ओबीसी और एससी/एसटी वर्ग भी शामिल थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओबीसी पृष्ठभूमि और जन-कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से पार्टी ने ग्रामीण और गरीब तबकों में गहरी पैठ बनाई। 

लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा जैसे राज्यों में भाजपा को ओबीसी और दलित वोटों के मामले में झटका लगा, और इन वोटों का एक हिस्सा INDIA गठबंधन की ओर चला गया।

अब भाजपा इस वोटबैंक को वापस लाने के लिए जाति जनगणना के सहारे फिर से अपना आधार मजबूत करना चाहती है। पार्टी की योजना साफ है—ओबीसी और दलित समुदायों को यह भरोसा दिलाना कि भाजपा सिर्फ 'सबका साथ-सबका विकास' की बात नहीं करती, बल्कि उसके लिए ठोस कदम भी उठाती है।

ओबीसी नेतृत्व और मोदी की छवि को मज़बूती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा लगातार एक ऐसे नेता के रूप में पेश करती रही है जो न केवल ओबीसी वर्ग से आते हैं, बल्कि जिन्होंने गरीबों के उत्थान के लिए कई ऐतिहासिक फैसले लिए हैं। जाति जनगणना के फैसले से पार्टी मोदी की इस छवि को और मज़बूती देने की कोशिश कर रही है। साथ ही, भाजपा यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि उसके ओबीसी नेता जैसे कि उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बिहार में नीतीश कुमार जैसे सहयोगी पार्टी के साथ मजबूती से जुड़े रहें।

राज्य स्तर पर स्वतंत्र पहलों पर रोक की रणनीति

जातिगत आंकड़ों को लेकर अब तक कई राज्य अपने-अपने स्तर पर सर्वेक्षण कर चुके हैं। बिहार में नीतीश सरकार ने 2023 में जाति सर्वेक्षण कराया और आरक्षण नीति में बदलाव की बात भी की। कर्नाटक और तेलंगाना में भी कांग्रेस सरकारें इस मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठा रही हैं। केंद्र सरकार अब इस पहल को खुद हाथ में लेकर राज्यों की स्वतंत्र पहलों को रोकना चाहती है। इसके पीछे मकसद है कि आरक्षण और सामाजिक न्याय से जुड़ी नीतियां बिखरी हुई न होकर, एक समान और आंकड़ा-आधारित हों।

सोशल इंजीनियरिंग का नया अध्याय

भाजपा ने 2014 के बाद से अपने सामाजिक समीकरण में कई बदलाव किए हैं। एक ओर जनधन योजना, उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाएं थीं, जो गरीब तबकों के बीच लोकप्रिय हुईं। दूसरी ओर, भाजपा ने ऊंची जातियों को साधने के लिए 10% ईडब्ल्यूएस कोटा भी लागू किया। लेकिन अब पार्टी का फोकस 'गैर-प्रमुख' जातियों पर अधिक है जैसे निषाद, कुर्मी, कुशवाहा, लोहार, तेली, कश्यप इत्यादि जिनका प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति में निर्णायक होता है।

जाति जनगणना के बहाने व्यापक जनसंपर्क अभियान

जाति जनगणना सिर्फ आंकड़ों का संग्रह नहीं है, बल्कि भाजपा इसे एक व्यापक जनसंपर्क अभियान के तौर पर भी देख रही है। गांव-गांव, गली-गली तक यह संदेश पहुंचाना कि भाजपा हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करने में विश्वास करती है, पार्टी की सामाजिक स्वीकार्यता को और बढ़ा सकता है। खासकर यूपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में जहां सामाजिक पहचान ही राजनीति की धुरी है, वहां यह फैसला गेमचेंजर साबित हो सकता है।

'कमंडल' और 'मंडल' का नया मेल

भाजपा लंबे समय तक 'कमंडल' यानी राम मंदिर, हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जरिए चुनावी लाभ उठाती रही है। लेकिन अब पार्टी 'मंडल 2.0' यानी सामाजिक न्याय और जातीय प्रतिनिधित्व के साथ इस एजेंडे को जोड़ रही है। यह मेल राजनीति में एक नए युग की शुरुआत कर सकता है, जहां पार्टी धार्मिक और सामाजिक दोनों पक्षों को संतुलित कर अपने समर्थन आधार को और व्यापक बना सकती है।

Leave a comment