सर्वोच्च अदालत ने आईआईटी खड़गपुर के छात्र की आत्महत्या के मामले में एफआईआर चार दिन की देरी से दर्ज किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई है। अदालत ने इस मामले को बेहद गंभीर बताया और कहा कि इन चीज़ों को बिल्कुल भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।
नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को एक बार फिर शिक्षा व्यवस्था के एक अंधेरे कोने पर अपनी पैनी नजर डाली। मौका था कोटा में लगातार बढ़ती छात्र आत्महत्याओं को लेकर एक याचिका की सुनवाई का, और इस बार सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को स्पष्ट शब्दों में फटकार लगाई। अदालत ने न केवल इन मामलों की गंभीरता को रेखांकित किया, बल्कि पूछा कि आखिर कोटा ही क्यों? देश में और भी कोचिंग सेंटर्स हैं, लेकिन कोटा का ही नाम हर बार इन दुखद घटनाओं से क्यों जुड़ता है?
कोटा: शिक्षा की राजधानी या दबाव का अड्डा?
राजस्थान का कोटा शहर दशकों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का केंद्र बना हुआ है। हर साल लाखों छात्र यहां NEET, JEE और अन्य परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह शहर शैक्षणिक सफलता के बजाय आत्महत्याओं की वजह से सुर्खियों में रहने लगा है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन शामिल थे, ने कहा, आप बतौर राज्य क्या कर रहे हैं?
क्या आपने इस बारे में कभी गंभीरता से विचार किया है कि कोटा में ही बच्चे क्यों जान दे रहे हैं? यह सवाल राजस्थान सरकार के उस जवाब के बाद आया जिसमें कहा गया कि आत्महत्याओं की जांच के लिए एसआईटी (विशेष जांच दल) बनाई गई है।
IIT छात्र की मौत पर भी उठे सवाल
यह सुनवाई केवल कोटा तक सीमित नहीं रही। सुप्रीम कोर्ट ने IIT खड़गपुर में एक छात्र द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले पर भी नाराजगी जाहिर की। अदालत ने पाया कि एफआईआर दर्ज करने में चार दिन की देरी हुई, जो प्रशासन की संवेदनहीनता को दर्शाती है। पीठ ने कहा, इन चीजों को बिल्कुल हल्के में न लें। ये बच्चों के जीवन से जुड़ी गंभीर बातें हैं।
सुनवाई के दौरान एक और मामला सामने आया, जिसमें नीट की तैयारी कर रही एक छात्रा को अपने कमरे में फांसी पर झूलता पाया गया। वह अपने माता-पिता के साथ कोटा में रह रही थी। इस घटना ने अदालत को यह सोचने पर मजबूर किया कि घरों में रह रहे छात्र भी इस मानसिक दबाव से अछूते नहीं हैं। यानी समस्या केवल हॉस्टल तक सीमित नहीं है, यह एक व्यवस्थागत विफलता है।
राष्ट्रीय स्तर पर टास्क फोर्स की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के एक पुराने निर्णय का हवाला दिया जिसमें छात्रों में बढ़ते मानसिक दबाव को देखते हुए एक नेशनल टास्क फोर्स गठित करने की सिफारिश की गई थी। पीठ ने कहा कि यह समय है जब उस सुझाव पर तत्काल अमल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी स्पष्ट करती है कि यह केवल राजस्थान सरकार की समस्या नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा प्रणाली, और युवाओं की मनोस्थिति इन तीनों पर केंद्र और राज्य दोनों को मिलकर काम करना होगा। छात्रों को केवल किताबों से लाद देना समाधान नहीं है, उन्हें मनोवैज्ञानिक सहारा, परामर्श और सहयोग की आवश्यकता है।