हिंदू पंचांग के मुताबिक, वर्ष 2025 की अगली मासिक कालाष्टमी मंगलवार, 20 मई को पड़ रही है। यह दिन भगवान शिव के उग्र रूप, काल भैरव की आराधना के लिए विशेष रूप से पावन माना जाता है और देशभर में इसे गहरी आस्था और धार्मिक उल्लास के साथ मनाया जाएगा। कालाष्टमी हर चंद्र मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, और इसे अष्टमी का व्रत भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा, भय, रोग और शत्रु बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
कालाष्टमी क्या है महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 'काल' का अर्थ है 'समय' और 'भैरव' शिव का उग्र रूप। अतः काल भैरव को समय का देवता माना जाता है। कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की उपासना से न केवल भौतिक कष्टों से राहत मिलती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी मार्ग प्रशस्त होता है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मध्य सृष्टि की प्रधानता को लेकर विवाद हुआ।
इसी दौरान ब्रह्मा के अहंकार से कुपित होकर भगवान शिव ने महाकालेश्वर रूप धारण कर ब्रह्मा का पाँचवाँ सिर काट दिया। तभी से इस उग्र रूप को काल भैरव के नाम से पूजा जाने लगा।
कालाष्टमी 2025 की अगली तिथि और मुहूर्त
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 20 मई 2025, सुबह 5:52 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 21 मई 2025, सुबह 4:55 बजे
- विशेष दिन: मंगलवार, जो भगवान भैरव को समर्पित माना जाता है
- शेष समय आयोजन तक: 3 दिन
पूजा-विधि और व्रत अनुष्ठान
कालाष्टमी के दिन श्रद्धालु प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर व्रत का संकल्प लेते हैं। भगवान भैरव की पूजा में सरसों का तेल, काले तिल, धूप, दीप, नींबू, नारियल, उड़द और गुड़ आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजा के दौरान भैरव चालीसा, काल भैरव अष्टक, और मंत्र जाप विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं। इस दिन का एक विशेष अनुष्ठान है – कुत्तों को भोजन कराना, क्योंकि काला कुत्ता भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। भक्त कुत्तों को दूध, दही, मिठाई और पूड़ी खिलाते हैं।
साथ ही, कुछ श्रद्धालु रात्रि जागरण करते हैं और महाकालेश्वर की कथाएं सुनते हैं। कई भक्त अपने पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध कर्म भी इसी दिन करते हैं।
कालभैरव जयंती सबसे विशेष कालाष्टमी
हालाँकि साल में कुल 12 मासिक कालाष्टमी होती हैं, लेकिन मार्गशीर्ष मास में आने वाली कालाष्टमी को कालभैरव जयंती कहा जाता है और इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक होता है। साथ ही जब कालाष्टमी रविवार या मंगलवार को आती है, तो उसका प्रभाव और फल कई गुना बढ़ जाता है।
कहां होती है विशेष मान्यता
भारत के विभिन्न भागों में कालाष्टमी को लेकर स्थानीय मान्यताएं और परंपराएं प्रचलित हैं। विशेषकर वाराणसी (काशी), उज्जैन, हरिद्वार और दिल्ली में स्थित भैरव मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस दिन पूजा के लिए उमड़ते हैं। काशी के काल भैरव मंदिर में इस दिन विशेष पूजा, भोग और भैरव रथयात्रा का आयोजन किया जाता है।
2025 की सभी कालाष्टमी तिथियाँ
माह |
तिथि |
अष्टमी का प्रारंभ – समापन समय |
जनवरी |
21 (मंगलवार) |
21 जनवरी, दोपहर 12:40 बजे – 22 जनवरी, दोपहर 3:18 बजे |
फरवरी |
20 (गुरुवार) |
20 फरवरी, सुबह 9:58 बजे – 21 फरवरी, दोपहर 11:58 बजे |
मार्च |
22 (शनिवार) |
22 मार्च, सुबह 4:24 बजे – 23 मार्च, सुबह 5:23 बजे |
अप्रैल |
21 (सोमवार) |
20 अप्रैल, रात 7:01 बजे – 21 अप्रैल, रात 6:59 बजे |
मई |
20 (मंगलवार) |
20 मई, सुबह 5:52 बजे – 21 मई, सुबह 4:55 बजे |
जून |
18 (बुधवार) |
18 जून, दोपहर 1:35 बजे – 19 जून, सुबह 11:56 बजे |
जुलाई |
17 (गुरुवार) |
17 जुलाई, रात 7:09 बजे – 18 जुलाई, शाम 5:02 बजे |
अगस्त |
16 (शनिवार) |
15 अगस्त, रात 11:50 बजे – 16 अगस्त, रात 9:35 बजे |
सितंबर |
14 (रविवार) |
14 सितंबर, सुबह 5:04 बजे – 15 सितंबर, सुबह 3:06 बजे |
अक्टूबर |
13 (सोमवार) |
13 अक्टूबर, दोपहर 12:24 बजे – 14 अक्टूबर, सुबह 11:10 बजे |
नवंबर |
12 (बुधवार) |
11 नवंबर, रात 11:09 बजे – 12 नवंबर, रात 10:58 बजे |
दिसंबर |
11 (गुरुवार) |
11 दिसंबर, दोपहर 1:57 बजे – 12 दिसंबर, दोपहर 2:57 बजे |