अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रोस्टेट कैंसर से ग्रसित होने की खबर सामने आने के बाद दुनियाभर में इस बीमारी को लेकर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके शरीर में यह कैंसर एक उन्नत स्तर तक पहुंच चुका है और हड्डियों तक फैल चुका है। यह न सिर्फ एक चिंता का विषय है, बल्कि सभी पुरुषों के लिए एक चेतावनी भी है कि प्रोस्टेट कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
प्रोस्टेट कैंसर क्या होता है
प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला एक आम लेकिन गंभीर रोग है। प्रोस्टेट एक छोटी सी ग्रंथि होती है, जो पुरुषों के प्रजनन तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह ग्रंथि मूत्राशय के ठीक नीचे स्थित होती है और ऐसा तरल बनाती है, जो शुक्राणु के साथ मिलकर उसे सुरक्षा और पोषण देता है। जब इस ग्रंथि की कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और उनका विकास काबू से बाहर हो जाता है, तो उसे प्रोस्टेट कैंसर कहा जाता है।
यह बीमारी आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ होती है और 60 साल से ऊपर के पुरुषों में इसके मामले ज़्यादा देखे जाते हैं। हालांकि, अब 50 साल से कम उम्र के लोगों में भी यह कैंसर पाया जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरुआत में इसके लक्षण बहुत हल्के या बिल्कुल न के बराबर होते हैं, जिससे यह बिना पहचान के शरीर में फैल सकता है। इसी कारण इसे ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है, क्योंकि जब तक इसके लक्षण साफ नजर आते हैं, तब तक बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। इसलिए समय पर जांच और सतर्कता बेहद जरूरी है।
जो बाइडेन का मामला क्यों बना चेतावनी?
हाल ही में एक आधिकारिक बयान में बताया गया कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को प्रोस्टेट कैंसर का बहुत गंभीर और एडवांस्ड स्टेज है। इस बीमारी का यह स्टेज इतना गंभीर होता है कि कैंसर की कोशिकाएं उनके शरीर की हड्डियों तक फैल चुकी हैं। इस स्थिति को मेटास्टेटिक प्रोस्टेट कैंसर कहा जाता है, जो इलाज में काफी चुनौतीपूर्ण और खतरनाक होता है।
डॉक्टरों का कहना है कि इस स्टेज पर हार्मोन थेरेपी, कीमोथेरेपी और हड्डियों पर प्रभाव डालने वाली खास दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इलाज की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर कितनी तेजी से बढ़ रहा है और मरीज की उम्र व शारीरिक स्थिति कैसी है। जो बाइडेन का मामला इसलिए भी खास है क्योंकि यह बीमारी अक्सर देर से पकड़ी जाती है, इसलिए समय पर जांच और इलाज बेहद जरूरी है।
प्रोस्टेट कैंसर के प्रमुख लक्षण जिन्हें नजरअंदाज न करें
प्रोस्टेट कैंसर की शुरुआती पहचान करना बेहद जरूरी है ताकि समय रहते इसका इलाज किया जा सके। इस बीमारी के कुछ खास लक्षण होते हैं, जिनसे आप सावधान हो सकते हैं।
पेशाब से जुड़ी दिक्कतें: सबसे आम लक्षण पेशाब करने में परेशानी होती है। जैसे पेशाब करते समय जलन या दर्द महसूस होना, बार-बार पेशाब आना, खासकर रात में जागना, पेशाब रुक-रुक कर आना या पेशाब का बहाव धीमा होना। कभी-कभी पेशाब या वीर्य में खून भी दिखाई दे सकता है, जो बहुत गंभीर संकेत होता है।
हड्डियों में दर्द: अगर कैंसर हड्डियों तक फैल जाता है तो पीठ के निचले हिस्से, कूल्हों या पेल्विक क्षेत्र में तेज और लगातार दर्द होने लगता है। यह दर्द आराम करने या दवाइयां लेने पर भी कम नहीं होता और मरीज की रोजमर्रा की जिंदगी पर बुरा असर डालता है।
थकान और कमजोरी: प्रोस्टेट कैंसर के कारण शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है। मरीज को बिना किसी खास वजह के थकावट, कमजोरी और चक्कर आने की शिकायत हो सकती है। इसका कारण कैंसर की वजह से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना होता है।
अचानक वजन में गिरावट: अगर आप बिना डाइट बदले या एक्सरसाइज किए अचानक वजन कम महसूस कर रहे हैं, तो इसे गंभीरता से लें। यह संकेत हो सकता है कि शरीर में कुछ ठीक नहीं चल रहा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी इसका कारण हो सकती है।
इरेक्टाइल डिसफंक्शन (स्तंभन दोष): प्रोस्टेट कैंसर की वजह से पुरुषों को सेक्सुअल इश्यूज का सामना करना पड़ सकता है, खासकर इरेक्टाइल डिसफंक्शन। जब कैंसर ग्रंथि पर दबाव डालता है, तो यह समस्या होने लगती है, जिससे संभोग में कठिनाई आती है।
कैसे पता चलता है प्रोस्टेट कैंसर?
अगर आपको प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण लगातार महसूस हो रहे हैं, तो समय पर डॉक्टर से जांच कराना बहुत जरूरी है। इसके लिए कुछ खास टेस्ट किए जाते हैं, जो इस बीमारी का पता लगाने में मदद करते हैं।
PSA टेस्ट (प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटिजन टेस्ट): यह एक ब्लड टेस्ट होता है, जिसमें आपके खून में प्रोस्टेट ग्रंथि से निकलने वाले एक खास प्रोटीन यानी PSA का स्तर मापा जाता है। अगर PSA का स्तर सामान्य से ज्यादा होता है, तो यह प्रोस्टेट कैंसर या ग्रंथि में सूजन का संकेत हो सकता है। यह टेस्ट सबसे आम और शुरुआती जांच है, जिससे डॉक्टर आगे की प्रक्रिया तय करते हैं।
डिजिटल रेक्टल एग्जाम (DRE): इस टेस्ट में डॉक्टर अपने अंगुली के जरिए मरीज के मलाशय (रेक्टम) के अंदर जाकर प्रोस्टेट ग्रंथि की जांच करते हैं। इससे डॉक्टर को यह पता चलता है कि प्रोस्टेट ग्रंथि सामान्य है या उसमें कोई असामान्यता है जैसे गांठ या सख्ती। यह टेस्ट सरल और जल्दी किया जाने वाला तरीका है, जिससे शुरुआती जानकारी मिल जाती है।
MRI और बायोप्सी: अगर PSA टेस्ट और DRE में संदेह होता है, तो अगला कदम MRI स्कैन और बायोप्सी होता है। MRI से प्रोस्टेट और आसपास के अंगों की विस्तार से जांच होती है। बायोप्सी में प्रोस्टेट से छोटा सा टिशू सैंपल लेकर उसकी जांच की जाती है, जिससे पता चलता है कि कैंसर है या नहीं और उसकी गंभीरता कितनी है। यह टेस्ट प्रोस्टेट कैंसर के सही निदान और इलाज के लिए जरूरी होते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज कैसे होता है?
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज कई तरह से किया जाता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर किस स्टेज पर है, मरीज की उम्र क्या है और उनकी सेहत कैसी है। सही समय पर इलाज शुरू करने से इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है।
सर्जरी (Prostatectomy): अगर कैंसर शुरुआती चरण में हो और सिर्फ प्रोस्टेट ग्रंथि तक सीमित हो, तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं। इस प्रक्रिया में पूरी या कैंसर से प्रभावित प्रोस्टेट ग्रंथि को शरीर से निकाल दिया जाता है। इससे कैंसर पूरी तरह खत्म हो सकता है। हालांकि, सर्जरी के बाद कुछ लोगों को पेशाब या सेक्स संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन इलाज के लिए आधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं।
रेडिएशन थेरेपी: रेडिएशन थेरेपी में शरीर के कैंसर वाले हिस्से पर नियंत्रित तरीके से रेडिएशन (उच्च ऊर्जा किरणें) दी जाती हैं, जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। यह तरीका खासकर उन मरीजों के लिए अच्छा होता है, जिनकी सर्जरी संभव नहीं होती या वे सर्जरी से बचना चाहते हैं। इसके कुछ सामान्य साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं जैसे थकान या त्वचा पर जलन।
हॉर्मोन थेरेपी: प्रोस्टेट कैंसर टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन की मदद से बढ़ता है। हॉर्मोन थेरेपी में इस हार्मोन को कम किया जाता है ताकि कैंसर की ग्रोथ रुके। यह थेरेपी अकेले या सर्जरी और रेडिएशन के साथ भी दी जा सकती है। हॉर्मोन थेरेपी से कैंसर को नियंत्रण में रखा जाता है, खासकर एडवांस स्टेज में।
कीमोथेरेपी: अगर कैंसर तेजी से फैल रहा हो या शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंच चुका हो, तो कीमोथेरेपी की जाती है। इसमें खास दवाओं का उपयोग कर कैंसर कोशिकाओं को मारा जाता है। कीमोथेरेपी से शरीर में कैंसर की ग्रोथ धीमी हो जाती है और मरीज की जिंदगी बेहतर हो सकती है। हालांकि इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं जैसे बाल झड़ना, उल्टी या कमजोरी।
बोन-टार्गेटेड थेरेपी: जब प्रोस्टेट कैंसर हड्डियों तक फैल जाता है, तो उसे बोन-टार्गेटेड थेरेपी से इलाज किया जाता है। इसमें ऐसी दवाएं दी जाती हैं जो हड्डियों में कैंसर के प्रभाव को कम करती हैं और हड्डियों को मजबूत बनाती हैं। इससे दर्द में राहत मिलती है और हड्डियों के टूटने का खतरा कम होता है।
प्रोस्टेट कैंसर से बचाव के आसान तरीके
- प्रोस्टेट कैंसर को पूरी तरह रोक पाना मुश्किल है, लेकिन कुछ सरल आदतें अपनाकर आप इसके खतरे को कम कर सकते हैं।
- फल, सब्जियां, और फाइबर से भरपूर डाइट लें। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कैंसर के जोखिम को कम करते हैं।
- बहुत ज्यादा लाल मांस (रेड मीट) और फास्ट फूड खाने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए इनका सेवन सीमित करें।
- रोजाना कम से कम 30 मिनट टहलना या कोई भी हल्का व्यायाम करना शरीर को स्वस्थ रखता है और कैंसर से लड़ने में मदद करता है।
- धूम्रपान और ज्यादा शराब पीना सेहत के लिए हानिकारक होता है और कैंसर का खतरा बढ़ाता है। इन्हें छोड़ना जरूरी है।
50 साल से ऊपर के पुरुषों को नियमित रूप से डॉक्टर से जांच करानी चाहिए ताकि अगर कोई समस्या हो तो समय पर पता चल सके और इलाज शुरू हो सके।जो बाइडेन के मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रोस्टेट कैंसर कितना खतरनाक हो सकता है, खासकर जब उसका इलाज देर से शुरू किया जाए। यह बीमारी धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर देती है। इसलिए जरूरी है कि हम इसके लक्षणों को नजरअंदाज न करें और समय पर सही जांच और इलाज करवाएं।